2024 के आम चुनाव दस साल-अन्याय काल के अंत की लड़ाई है, तिहत्तर फीसदी आबादी के लिए न्याययुद्ध की शुरुआत है.
दरसल 7 सितंबर,2022 को भारत जोड़ो यात्रा से न्याययुद्ध की शुरुआत हुई. नफरत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकान जैसे आसान और अराजनैतिक शब्द ने लोगों के बीच खासी दिलचस्पी पैदा की.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से कश्मीर की 4000 किलोमीटर की यात्रा की. राजनीतिक भाषा में कहा जाए तो इस दौरान राहुल गांधी के माध्यम से कांग्रेस नेतृत्व ने देश से नए सिरे से जुड़ने की कोशिश की.
इससे भी अहम बात ये है कि राहुल गांधी ने 150 दिनों तक पैदल 12 राज्यों से गुजरते हुए आम जनमानस को समझने की कोशिश की. इस दौरान छोटी-छोटी मेल-मुलाकातों, लोगों से सीधी बातचीत और समूह संवाद के सैकड़ों दौर में देश की राहुल से और राहुल की देश से जानपहचान और दिल का रिश्ता बढ़ता चला गया.
राहुल गांंधी ने राह में मिलने वाले हर राज्य, हर जिले और हर व्यक्ति की दुख-दर्द और तकलीफ को समझना शुरू किया. संचार की भाषा में कहा जाए तो ये अंतरवैयक्तिक जनसंपर्क शैली थी, जो सबसे मौलिक और प्रभावशाली मानी जाती है.
दक्षिण से उत्तर तक हुई इस भारत जोड़ो यात्रा से जनता से जुड़े मुद्दों की पहचान के बाद ये तय पाया गया कि संविधान प्रदत्त समता,समानता और न्याय से सम्मानपूर्वक जीवन के अधिकार से लोगों को वंचित किया जा रहा है. पिछले दस साल-अन्याय काल में गरीब, पिछड़े, दलित और आदिवासी वर्ग का दमन और आर्थिक दोहन बढ़ता गया.
राहुल गांधी की अगुआई में शुरू हुए इस अभियान में इस शोषण-दमन चक्र की ऐतिहासिक, सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि को समझने की कोशिश हुई. अगर ईमानदारी से कहा जाए तो कांग्रेस नेे अपनी वैचारिक स्थिति में सुधार भी किया गया. समय- काल सापेक्ष मुद्दों को प्राथमिकता में रखते हुए जनसंघर्ष की तैयारी शुरू की गई.
इसी जनसंघर्ष का उद्घोष है भारत जोड़ो न्याय यात्रा. जो पूरब में मणिपुर से पश्चिम में मुंबई तक 15 राज्यों से गुजरती हुई लगभग 6000 किलोमीटर की इस न्याय यात्रा में जनसरोकार के मुद्दों पर अधिक फोकस किया गया. न्याय यात्रा के दौरान इन मुद्दों पर राहुल गांधी ने छोटे जन गोष्ठियों के साथ बड़ी सभाएं और और रैलियों के जरिए जागरूकता अभियान शुरू किया.
जनसंवाद के इस अमृत मंथन से निकला कांग्रेस का न्यायपत्र 2024. इसमें पांच न्याय शामिल किए गए, जिनमें युवा न्याय,किसान न्याय,नारी न्याय, श्रमिक न्याय और हिस्सेदारी न्याय के लिए पांच-पांच गारंटियां जोड़ कर 2024 के आम चुनाव के लिए एक घोषणा पत्र का रूप दिया गया.
न्याय पत्र सिर्फ चुनावी घोषणापत्र नहीं, बल्कि इसे देश के पुनर्निमाण का दस्तावेज माना जा रहा है. विभाजनकारी राजनीति की आड़ में गरीब,पिछड़े,दलित और आदिवासियों की ना सिर्फ हकमारी और आर्थिक दोहन को खत्म करने के लिए रोड मैप तैयार किया गया है.
न्यायपत्र 2024 में उन ताकतों की साफ तौर पर पहचान की गई, जो अपने आर्थिक हितों के लिए आमजन की धार्मिक आस्था का दोहन कर रहे हैं. न्यायपत्र में माना गया कि एक फीसदी साधनसंपन्न और आर्थिक- सामाजिक रूप से साधनसंपन्न वर्ग देश की नब्बे फीसदी समाज के हिस्से के संसाधनों की सिस्टेमैटिक लूट में शामिल है.
इस शोषक वर्ग का सामाजिक-राजनीतिक प्रतिनिधित्व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी करती है.
न्याय पत्र ने आर्थिक रूप से ताकतवर उन 22 घरानों को इस शोषण तंत्र के लिए जिम्मेदार बताया, जिनके हित में निवर्तमान प्रधानमंत्री पिछले दस वर्ष से काम कर रहे हैं.
पीएम मोदी ने इसी वर्ग का 16 लाख करोड़ रुपए का सरकारी बैैंकों का कर्ज माफ किया है.
चंदा दो-धंधा लो की नीति पर इलेक्टोरल बांड से दुनिया का सबसे बड़ा वसूली घोटाला किया गया.
चुनाव की घोषणा के बाद भी पीएम मोदी आए दिन इसी वर्ग को सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति और संसाधनों को बांट रहे हैं या बांटने की भावी योजना पर काम करते नज़र आ रहे हैैं.
आस्थावादी देश की धार्मिक भावनाओं के चुनावी शोषण के लिए कन्याकुमारी जा कर कैमरों के सामने कथित ध्यान में जुट गए हैं.
इसी शोषणकारी शक्तियों के लिए काम कर रहा है वो सामाजिक रूप से संप्रभु और संपन्न वर्ग, जो गरीब, पिछड़ा, दलित और आदिवासी वर्ग के अधिकारों का हनन कर रहा है और इस महालूट में शामिल है. शोषण के ये इको सिस्टम कभी खुल कर तो कभी छिप कर संविधान प्रदत्त आरक्षण को खत्म करने में जुटा है या फिर विरोध कर रहा है.
मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस के नाम पर निजी क्षेत्र को राष्ट्रीय परिसंपत्तियां बेची जा रही हैं, तीस लाख से ज्यादा सरकारी नौकरियां खाली कर नौकरियां ठेकों पर दी जा रही हैं. सेना में रेगुलर भर्ती बंद कर देशभक्त युवाओं के सपनों की हत्या करने वाली अग्निवीर जैसी योजना लागू की जा रही हैं.
इसी सुनियोजित लूट के तहत पर्यावरण नियमों की हत्या की जा रही है. जिसकी वजह से क्लाईमेट चेंज के दुष्प्रभावों को पूरा देश भुगत रहा है. वहीं, वन और खनिज संपदा की लूट के लिए आदिवासियों को जल,जंगल और जमीन से बेदखल किया जा रहा है.
किसानों को यथोचित मुआवजा और पुनर्वास के जमीनों का अधिग्रहण किया गया. जिसका सबसे पहले राहुल गांधी ने संंसद में पर्दाफाश किया था और आंदोलन छेड़ा था.
मनरेगा जैसी ग्रामीण और खेतिहर मजदूर और सीमांत किसानों की राहत वाली योजनाओं को सुखा दिया गया.
किसानों के खेत और खेती पर डाके के लिए किसान विरोधी कानून संसद में पारित कराए गए. मोदी ने वोट के लिए एमएसपी का झूठा वायदा किया
साढ़े सात सौ किसानों की मौत के बाद भी पीएम मोदी का दिल नहीं पसीजा, आज भी एमएसपी की मांग को लेकर किसान आंदोलन जारी है.
नोटबंदी से श्रमिकों की आजीविका के संसाधन खत्म हो गए. एमएसएमई तबाह हो गईं. चीन आयात इतना बढ़ गया कि लघु उद्योग से जुड़े सामान, छोटी मशीनरी, से जुड़े कारोबार बैठ गए.
महंगाई अब न्यू नॉर्मल हो गई है. महिलाओं के लिए घर चलाना दूभर हो गया है. आर्थिक गतिविधि में लगी महिलाएं बड़ी तादाद में बेरोजगार हो चुकी हैं. उज्वला योजना के खाली सिलेंडर घरों में सजे हुए हैं
युवा वर्ग बेरोजगारी की महामारी का शिकार है. दस में से आठ युवा बेरोजगार हैं.
समाज के इन पांच वर्गों के विकास के लिए सबसे जरूरी है हिस्सेदारी न्याय. समाज की यही तिहत्तर फीसदी सबसे ज्यादा शोषण का शिकार है, जिसे उसकी आबादी के हिसाब से योजनाओं में हिस्सेदारी देना ज़रूरी है.
जनसरोकार के एफर्मेटिव एक्शन के लिए आर्थिक और जाति जनगणना ज़रूरी है.
आर्थिक सर्वेक्षण और जाति जनगणना से ऐतिहासिक अन्याय की पोल खुलने से वो वर्ग डर रहा है, जो दो हजार साल से इनका सामाजिक और आर्थिक रूप से दोहन कर रहा है.
पांचों न्याय की बुनियाद में है ये हिस्सेदारी न्याय. जो देश में व्यापक रूप से सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाएगा.
2024 के आम चुनाव तो सिर्फ ट्रेलर है, असली न्याययुद्ध 2025 में लड़ा जाएगा.
जब अमीर और ताकतवर वर्ग अपने शोषण तंत्र को मजबूत करने के लिए देश भर में व्यापक अभियान चलाएगा.
ये अभियान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शताब्दी वर्ष के जश्न के तहत चलाया जाएगा.
राजनीतिक हिंदुत्व की व्यापक स्तर पर प्राण प्रतिष्ठा कर न्याय यात्राओं और न्यायपत्र से आई जागरूकता को मिटाने की भरपूर कोशिश होगी.
एक तरफ होगा क्रोनी कैपिटलिस्टों की रसद और मीडिया की मदद से मजबूत हुआ आरक्षण विरोधी मनुवादी समाज
दूसरी तरफ दस साल-अन्याय काल का दर्द लिए संसाधनविहीन गरीब,पिछड़ा,दलित और आदिवासी समाज
ऐसे में हिस्सेदारी न्याय का हथियार ही काम आएगा, बहुसंंख्यकवादी राजनीति का जवाब तिहत्तर फीसदी आबादी वाला वर्ग ही देे पाएगा.
2025 नैरेटिव वॉ़र का निर्णायक साल होगा. बेरोजगारी,महंगाई,गरीबी,अशिक्षा, कुपोषण, स्वास्थ्य जैसे जुड़े मुद्दों पर शोषक और शोषित केे बीच होगा सीधा न्याय युद्ध
फिरंगियों की मुखबिरी करने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सदियों से चले आ रहे शोषण तंत्र की रक्षा में पूरी ताकत लगाएगा.
2025 होगा न्याय युद्ध का निर्णायक साल,.