यूंही नहीं बढ़ रहा आपका बिजली का बिल!!
हद है आपकी बेशकीमती सांसों का भी कर लिया इलेक्टोरल बांड से सौदा !!
मोदी सरकार ने हमारी-आपकी खून-पसीने की गाढ़ी कमाई को लूटने का लाइसेंस भी इलेक्टोरल बांड के जरिए दे दिया है. वहीं जनता की सेहत से खिलवाड़ के लिए भी पिछली सरकार के बनाए नियमों में भी ढील दी है. बिजली उत्पादक कंपनियों ने इन रियायतों के बदले 2019-2024) यानि पांच साल में भारतीय जनता पार्टी को 516 करोड़ का चंदा इलेक्टोरल बांड के जरिए दिया है.
रिपोर्टर्स कलेक्टिव की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि एसोसिएशन ऑफ पॉवर प्रोड्यूसर्स (APP) ने बीजेपी को करोड़ों का चंंदा देकर अरबों की लूट का लाइसेंस लिया है. एपीपी के मुख्य सदस्य अडानी समूह, वेदान्ता समूह, आरपी संजीव गोयनका समूह, और एस्सार समूह हैं, जिन्होंने बीजेपी को चुनावी चंदे के बदले सरकारी नीतियों में बदलाव किया. यहां तक कि कई मुद्दों पर विशेषज्ञ समूहों और सरकारी अधिकारियों ने ऐतराज जताया, लेकिन उनके विरोध को दरकिनार कर नीतियों में बदलाव किए गए.
किस पॉवर कंपनी ने बीजेपी को दिया कितना चंदा-
आरपी संजीव गोयनका समूह ने बीजेपी को दिया 1060,000,000 करोड़ का चंदा
जिंदल समूह ने बीजेपी को दिया 432,500,000 करोड़ का चंदा
टोरेंट पॉवर ने बीजेपी को दिया 1,370,000,000 चंदा
वेदांता समूह ने बीजेपी को दिया 2,301,500,000 करोड़ का चंदा
इनके अलावा इन समूहों के पांच प्रतिनिधियों ने प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट के जरिए बीजेपी को 224 करोड़ का चुनावी चंदा दिया था. वहीं रॉयटर्स की खबर के मुताबिक प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट से बीजेपी को 75 फीसद चंदा दिया गया है.
आपदा में अवसर: अडानी को फायदा
नवंबर,2021 में कोयले की कमी से देश के कई राज्यो में बिजली संकट की स्थिति की खबरें आईं थी.हालांकि कोयले की कमी से साफ इंकार कर दिया था. लेकिन इसके बाद अडानी समूह ने बाज़ार दरों से काफी ऊंची दरों पर विदेशों से कोयला आय़ात करने की खबरें आईं थी. यही नहीं राज्यों को आयातित कोयला खरीदना अनिवार्य कर दिया गया था. जिसका सीधा खामियाजा बढ़ी हुई बिजली दरों के रूप में हम-आपकों अपनी जेब से भुगतना पड़ा.
वहीं कोयला संकट को देखते हुए नए कोल ब्लॉक के आवंटन की मांग रखी गई और इसके बाद अडानी को नई कोयला खदानों का आवंटन कर दिया गया.
कैसे किया गया आपकी सांसों का सौदा
यही नहीं इलेक्टोरल बांड से बीजेपी को मिले चंदे के बाद पॉवर कंपनियों को जैसे जनता की सेहत से खिलवाड़ का अधिकार भी मिल गया. यहां तक कि पॉवर प्लांट से जुड़े वायु प्रदूषण कानूनों में ढिलाई बरती गई. पावर प्लांट से निकलने वाली खतरनाक सल्फर ऑक्साइड की रोकथाम के लिए यंत्र लगाने की 2022 तक की डेडलाइन बढ़वाने के लिए अपनी गरीबी का हवाला देकर पॉवर कंपनियां सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. उन्होंने सरकार से बात करने को कहा. बस फिर क्या था. पहले से तैयार बैठी मोदी सरकार ने डेड लाइन को दो साल के लिए बढ़ा दिया गया.
यही नहीं पर्यावरण संबंधी नियमों के तहत तयशुदा खदानों को बगैर मंजूरी बदलने की आजादी भी दे दी गई. जबकि ये मंजूरी आबादी वाले इलाकों में रहने वालों की सेहत को देखते हुए ज़रूरी हुआ करती थी.
आपकी जेब और आपकी सांसों पर डाका डालने का लाइसेंस दिया गया पॉवर कंपनियों को ?
इलेक्टोरल बांड को करप्शन की करेंसी बना कर चलाया गया दुनिया का सबसे बड़ा वसूली रैकेेट ?