यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत `
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्
श्लोक में जिस ग्लानि का उल्लेख है वह न केवल अधर्म अपितु धार्मिक कार्यों को असंवैधानिक तरीकों से करना भी है. वर्तमान में प्रशासन की छवि एक बलात्कारी समर्थक, भ्रष्टाचार समर्थक, कमीशनखोर, जनमानस विरोधी तथा मिथ्यावादियों के समूह की है जिनसे धर्मसंगत कार्य की अपेक्षा व्यर्थ है। इलेक्टोरल बांड्स के न्यायालय के निर्णय व महिला पहलवानोंं के साथ दुर्व्यवहार जैसे ज्वलंत उदाहरणों के उपरान्त यह छबि और सुदृढ हुई है।
इन दानवीय प्रवृत्तियों को समूल समाप्त कर एक श्रेष्ठ समाज का निर्माण समय की माँग है । श्रम का उचित सम्मान ही न्याय की परिभाषा है। न्याय यात्रा धर्म रक्षा का महत्वपूर्ण कदम है।
पंचमुखी न्याय का यह पैगाम
हर युवा के हाथों को काम
श्रम कौशल का उचित सम्मान
पेपर लीक अब असंभव मान
पहली नौकरी होगी पक्की
भरोसा है होगी अब भरती
गिग श्रमिकों का न होगा दोहन
युवा रोशनी से जीवन रोशन
देवाज्ञा का यह न्याय नवभारत के पुनरूत्थान को सुगम कर नवयुवकों में नया उत्साह प्रवाहित करेगा जो भारत के भविष्य व आभामंडल को उज्वल व गौरवान्वित करेगा ।