बीजेपी ने इंदौर में रिलीज़ किया “लोकतंत्र की हत्या” का एक और ट्रेलर, 2024 के बाद कैसी होगी पूरी पिक्चर…!!

मध्य प्रदेश के इंदौर की लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने अपना नामांकन वापिस ले लिया और  भारतीय जनता पार्टी  में शामिल हो गए. बीजेपी इसे कांग्रेस और इंडिया गठबंधन पर अपनी जीत की तरह पेश कर रही है. और इस तरह बीजेपी ने इंदौर के मतदाताओं को अपनी पसंद का प्रत्याशी चुनने से महरूम कर दिया.इससे

साफहै कि मोदी को जीत के लिए जनता की भी परवा नहीं. उन्हें हर कीमत पर जीत चाहिए. 

साफ है कि 2024 के चुनाव के बाद संसदीय लोकतंत्र औऱ चुनाव तो क्या मतदान का अधिकार भी सबके पास नहीं रह जाएगा. इस मायने में 2024 का आम चुनाव देश का आखिरी चुनाव है.

 खबरों के मुताबिक अक्षय बम के कांग्रेस प्रत्याशी घोषित होने के बाद इंदौर की एक अदालत ने सतर साल पुराने एक जमीन विवाद में प्राणघातक हमले के माामले में हत्या के प्रयास की धारा 307 को जोड़ने का निर्देश दिया था. इस मामले में अदालत ने 10 मई को अक्षय और उनके पिता को अदालत में पेश होने का आदेश भी दिया है.  उसके बाद अक्षय कांति बम का हृदय परिवर्तन हो गया. उन्होंने न सिर्फ अपना नामांकन वापिस लिया बल्कि बीजेपी  में शामिल भी हो गए. समझा जा सकता है कि ब्लैकमेल,धमकी और लालच का इस्तेमाल कर आम चुनाव को बेमानी बना दिया गया. अब मोदी सरकार की नीतियों से नाराज़ मतदाता चाह कर भी मजबूत विपक्षी प्रत्याशी को वोट नहीं दे सकते. 

और इस तरह मोदी की बीजेपी ने लोकतंत्र की हत्या का एक और ट्रेलर जारी कर दिया 

उधर गुजरात के सूरत में लोकतंत्र की हत्या का मामला सामने आया. यहां कांग्रेस प्रत्याशी नीलेश कुम्भाणी का नामांकन पत्र 21 अप्रैल को खारिज कर दिया गया था, क्योंकि उनके तीन प्रस्तावकों ने जिला निर्वाचन अधिकारी को हलफनामा देकर दावा किया था कि दस्तावेज पर हस्ताक्षर उनके नहीं थे. समझा जा रहा है कि  बीजेपी के दबाव में आकर नीलेश कुंभाणी ने अपने नाममांकन से जुड़ी गड़बड़ी की थी. 25 प्रत्याशियों में से कांग्रेस समेत एक दर्जन प्रत्याशियों के नामांकन रद्द कर दिए गए, बाकी को दाबव डाल कर पर्चा वापिस करवाया गया. और इस तरह बीजेपी का मुकेश दलाल निर्विरोध चुनाव जीत गया.

इन दोनों मामलों में बीजेपी जश्न मनाती दिख रही है. वहीं जनता अवाक है. लोकतंत्र को खत्म करने के ये दो ट्रेलर बताते हैं कि 2024 के बाद रिलीज़ होने वाली पूरी पिक्चर कितनी भयावह होने जा रही है.

इससे पहले एमपी में ही खजुराहो की सीट से इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी मीरा यादव का भी नामांकन रद्द कर दिया गया था. तब समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत इंडिया गठबंधन ने इसे लोकतंत्र की हत्या बताया था.

सबसे ज्यादा क्रूरता से चंडीगढ़ के मेयर चुनाव में लोकतंत्र की हत्या की गई

रिटर्निंग ऑफिसर अनील मसीह ने खुद क्रॉस लगा कर आठ वोट अवैध घोषित कर दिए थे और बीजेपी के उम्मीदवार को जिता दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दखल पर उन सभी आठ वोटों को वैध घोषित किया गया. आम आदमी पार्टी के कुलदीप कुमार को मेयर बनाया जा सका. अदालत ने अनिल मसीह को चुनाव को  चुनाव प्रक्रिया में गड़बज़ी का दोषी माना और उनके खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया.

चंडीगढ़ मॉडल लोकतंत्र की हत्या का सबसे जघन्य उदाहरण है.

बीजेपी और पीएम मोदी को अपनी इस करनी को लेकर कतई शर्मिंदगी महसूस नहीं हुई. ना ही इससे कोई सबक लिया. बल्कि इसके बाद और नए तरीकों से लोकतंत्र का गला घोंटने की साजिशें रची जा रही हैं.

महीने पहले अरुणाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने संसदीय लोकतंत्र में अपनी आस्था का एक ट्रेलर दिखाया था. यहां दस सीटों पर बीजेेपी के विधायकों को निर्विरोध चुनवा दिया गया था. जिनमें मुख्यमंत्री पेमा खांडू और उपमुख्यमंत्री चाउना मेन भी शामिल थे. यहां ये बताना लाजिमी होगा कि 16 सितंबर 2016 को CM पेमा खांडू के नेतृत्व में सत्तारूढ़ कांग्रेस के 43 विधायक बीजेपी की सहयोगी पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल में शामिल हो गए थे.

इस तरह से चुनाव को बेमानी बनाने के तीन अनोखे तरीके बीजेपी ने इजाद किए हैं. विपक्षी प्रत्याशी का नामांकन रद्द करना, इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी से  पर्चा वापिस कराना, प्रत्याशी के प्रस्तावकों से झूठा हलफनामा दिलवाना, और दूसरे निर्दलीय उम्मीदवारों पर साम-दाम-दंड और भेद से अपने पर्चे वापिस लेकर अपने प्रत्याशी को निर्विरोध जिताना  जैसे नागरिकों के मताधिकार छीनने का तरीके पहली बार आजमाए जा रहे हैं. जाहिर है कि भारतीय जनता पार्टी इस बार लोकतंत्र औऱ संविधान को खत्म करने के लिए हर छल-छद्म और षड़यंत्र करने पर आमादा है.

वहीं मतदान को लेकर भी नए तरीके इजाद किए गए हैं. गंभीर आरोप ये है कि यूपी में भारतीय पुलिस सेवा का बड़ा अधिकारी अपने मातहतों को संदेश दे कर कहता है कि आज जुम्मा है, दोपहर बाद मुसलमान बड़ी तादाद में वोट देने निकलेंगे, उन्हें रोकने के तरीके अपनाएं जाएं.

मुस्लिम इलाकों में पुलिस कभी आधार कार्ड चेक करने के नाम पर तो कभी मोबाइल रखने के नाम पर मुस्लिम वोटरों को मतदान से हतोत्साहित करते नज़र आए. 

बीजेपी विरोधी पॉकेट्स में पोलिंग बूथ पर ईवीएम की गड़बड़ियों के बहुत से मामले सामने आए, जिनकी वजह से मतदान में दो-दो घंटे की देरी हुई. वोटर लिस्ट से संभावित मतदाताओं के नाम उड़ा देने का तरीका तो खासा आम हो गया है.

अगले चरण के चुनाव में बीजेपी और  मोदी सरकार लोकतंत्र की हत्या के और भी खतरनाक-खूंरेज  ट्रेलर जारी करेगी. 

इससे पहले मोदी सरकार संसद और संसदीय प्रकिया की हत्या का ट्रेलर दिखा चुकी है 

संसद को अपना राजदरबार बनाने के लिए विपक्ष के 145 सांसदों को निलंबित कर अपने दोस्तों के फायदे के कानून पारित कराए गए. 

विधेयकों पर बहस और चर्चा बंद कर मत विभाजन में भी घपला कर संसदीय प्रक्रिया को खत्म करने की साजिश की गई. 

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और टीएमसी की नेता महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता रद्द कर दी गई और उनसे शासकीय आवास छीन लिए गए.

अब संविधान, बीजेपी और मोदी सरकार के निशाने पर है.

नागरिकों के मूलाधिकारों के हनन को मोदी सरकार ने न्यू नॉर्मल बना दिया है. नए आपराधिक कानूनों से देश को तानाशाही के लिए तैयार कर दिया गया है.

 सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद राज्यों को अपने हिस्से का राजस्व मिल पा रहा है. सहकारी संघवाद का मुखौटा लगा कर देश की एकता-अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए संविधान में संघवाद के प्रावधान को कमज़ोर किया जा रहा है. 

संविधान के प्रस्तावना को बदलने की बार बार कोशिशें की जा चुकी हैं. संविधान के बुनियादी ढांचे को बदलने की पिछले दस साल से बहस चलाई जा रही है. 

 बीजेपी और मोदी सरकार का आखिरी निशाना है- आरक्षण 

पिछले दस साल से लगातार आरक्षण खत्म करने की बहस आरएसएस और बीजेपी के नेता छेड़ते रहे हैं. इन आम चुनाव में तो सीना फुला कर संघ-बीजेपी के नेता, सांसद और प्रत्याशी आरक्षण खत्म करने की बात खुल कर उठा रहे हैं. 

आरक्षण खत्म कर संघ-बीजेपी के लोगों के लिए तीस लाख सरकारी नौकरियों को खाली रखा गया है. 

सरकारी क्षेत्र को निजी सेक्टर के हवाले कर आरक्षण को खत्म करने का काम पहले से ही जोरों पर है.

अग्निवीर योजना भी आरक्षण खत्म करने के इरादे से ही लाई गई. सैनिक स्कूल संघ को सौंप दिए गए हैं.

लेटरल एंट्री से आरएसएस के स्वयंसेवकों को देश के प्रशासन तंत्र का नियंत्रण सौंपा जा रहा है.

चुनाव के बाद आरएसएस-बीजेपी आरक्षण को खत्म कर 2025 में संघ का शताब्दी वर्ष मनाना चाहती है.

 संसद के संयुक्त अधिवेशन में दो तिहाई बहुमत के लिए बीजेपी को 521 सांसदों की ज़रूरत है.

 बीजेपी के राज्यसभा में 117 सांसद हैं. दो तिहाई के लिए 404 सीटों की जरूरत है.

  400 पार के नारे के पीछे का राज यही है…..

अरुणाचल, सूरत, खजुराहो, और इंदौर तो लोकतंत्र, संविधान और आरक्षण खत्म करने के ट्रेलर भर हैं.

आरक्षण-संविधान और लोकतंत्र बचाने का आखिरी मौका है 2024 का आम चुनाव…

 देश में मनुवादी व्यवस्था लागू करने के लिए बीजेपी ने नारा दिया है-

एक पार्टी, एक प्रधान, एक पंथ,एक विधान

इसीलिए बीजेपी और मोदी सरकार #विपक्षमुक्तभारत, #लोकतंत्रमुक्तभारत,# संविधानमुक्तभारत और

#आरक्षणमुक्तभारत का निर्माण करने के लिए कृतसंकल्पित है.

आएगा तो मोदी ही के मायने भी यही हैं-

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1 Comment

  • Avatar Ratan Kumar nayak
    Ratan Kumar nayak
    April 30, 2024 at 4:44 am

    Ye sambodhan ko bachane wala chunavo hai ye desh ke janta jittna jald samajh Jaye uttna achha hai barna kuch nehi bachega aur ye baat unn Congress party ke nettaon par bhi lagu hai jo samajh rehe hain ye pehelle jaisa aam chunavo hai

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