प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी!! आपने इंडिया गठबंधन के लिए अपशब्दों के इस्तेमाल में छठे चरण तक आते आते सारी मर्यादा का त्याग कर दिया है. पता नहींं “म” शब्द से आपके खास लगाव की वजह क्या है. अगर सपाट अर्थ में देखा जाए तो घटती सीटों के साथ भाषा का घटियापन आपकी बढ़ती कुंठा और हताशा की उपज है
चुनाव के पहले चरण से मछली, मटन, मंगलसूत्र, मंदिर, मस्जिद, मुसलमान, मुल्ला, मदरसा से हो कर छठे चरण में आप मुजरा तक पहुंच गए हैं. मोदी कहते हैं कि “इंडिया गठबंधन चाहे तो अने वोट बैंक के लिए मुजरा करे”.. शायद ही किसी प्रधानमंत्री ने ऐसी स्तरहीन भाषा का प्रयोग प्रतिपक्ष के लिए पहले किया है.
आपने विपक्ष के लिए “म” शब्द से शुरू होने वाली अपमानजनक बातें करने में किसी मर्यादा का खयाल नहीं किया. लेकिन जब पलटकर उसी भाषा का इस्तेमाल कोई करता है तो आपको “म” से मर्यादा याद आ जाती है. टेसू बहाने लगते हैं. गला रुंध जाता. भावुक हो कर सहानुभूति बटोरने का मौका मिल जाता.
मोदी जी!! प्रतिष्ठा दी नहीं जाती, कमानी पड़ती है.
प्रधानमंत्री पद इसी प्रतिष्ठा का नाम है, जहां आपको देश के हर धर्म, वर्ग, समुदाय, वर्ण,लिंग भेद के बगैर सबके प्रति समान भाव रखने की जरूरत है. बदले में आपको पूरा देश आदर देेता है. आप सिर्फ हिंदू सिरफिरों के प्रधानमंत्री नहीं, देश के भी प्रधानमंत्री हैं. आप प्रतिपक्ष के लिए भी प्रधानमंत्री हैं. और प्रतिपक्ष का काम आपको पथभ्रष्ट होने से रोकना है, क्योंकि सत्ता नेता को भ्रष्ट बनाती है. इसलिए निंदर नियरे राखिए, जामें कुटी छवाय..
ये पद इतना ताकतवर है कि आपको बात-बात पर सीना ठोंकने की जरूरत नहीं, बल्कि पद की गरिमा को समझते हुए विनम्र और शालीन होने की जरूरत है. क्योंकि अभद्र शब्दों का प्रयोग व्यक्ति का चारित्रिक पतन दर्शाता है.
मोदीजी! आलोचना का सम्मान करने के बजाय आप आलोचकों पर पहले से ही हमलावर होने में भरोसा रखते हैं. छप्पन इंच की छाती तो चीनी घुसपैठ के बाद पिचक गई लेकिन आपकी छप्पनछुरी सी जुबान आपके कद को ही छोटा करती जा रही है. आलोचना करने वालों के लिए आपका हर तीसरा वाक्य अपमानित करने वाला तंज और घृणा पैदा करने वाला होता है, आपके निशाने पर विपक्ष और अल्पसंख्यक होता है.
घृणा, घृणा को बढ़ावा देती है. शाब्दिक हिंसा हर तरह की हिंसा को जन्म देती है. घृणा की राजनीति सेे दिल नहीं जीते जाते.
आपकी नीतियों का विरोध करने वालों को आप आंदोलनजीवी बताते हैं. साढ़े सात सौ किसानों की मौत को लेकर आपका नजरिया था कि ये मेरे लिए मरें हैं क्या. अब पंजाब में हाल ही में आपको साढ़े सात हजार पुलिस और अर्ध सैनिक बलों के बीच किराए की भीड़ जुटा कर चुनावी रैली करनी पड़ी न.
ये आपकी घृणा की राजनीति का ही तो परिणाम था.
तब वोट पाने के लिए किसान कानून वापिस ले लिए थे, अब आप सातवें चरण में पंजाब की 13 सीटों पर मतदान से पहले गुरु गोबिंद सिंह के पंच प्यारे में से एक को अपना अंकल बता रहे हो.
एक डरपोक आदमी की तरह पिछली बार पंजाब में बगल की सड़क से गुजरते किसानों को देख लौट आए और कहने लगे कि कह देना अपने सीएम से कि मैं जान बचा कर आ गया. ये बात तब क्यों नहीं याद आई, जब सिक्ख किसानों के लिए सड़कों पर कीलें बोई गईं. उन्हें लाठियों से पीटा गया और गोलियों से भूना गया.
इस चुनाव में पचास बार कहते सुने गए कि “मोदी किसी से डरता नहीं है”. नहीं डरता है तो आप मणिपुर जाने की हिम्मत आज तक क्यों नहीं जुटा पाए.
ये भी घृणा से जन्मी सियासत का ही तो असर है.
प्रधानमंत्री जी, आप संविधान की रक्षा की बात करते हैं, लेकिन दस सालों में आपने संसद में किसी भी सवाल का जवाब तक नहीं दिया. हर संसदीय मर्यादा को तोड़ा.
मर्यादापुरुषोत्तम राम के नारों की आड़ में आपने हमेशा मर्यादा को छला है. मोदीजी, आप भाषा की मर्यादा की हत्या कर जिस तरह का समाज गढ़ रहे हैं वो विकसित भारत कतई नहीं हो सकता.
आप समाज को बांटने के लिए हजार साल पहले की काल्पनिक गढ़ी कहानियों से समाज को भटका कर हजार साल पहले लौटा कर ले जा रहे हैं.
देखा-देखी आपकी पार्टी के नेता और समर्थक भी भाषाई हिंसा करते नज़र आते हैं. होते-होते अब आपकी पार्टी में भ्रष्टाचार, पाखंड, अभद्रता, हिंसा औऱ बलात्कार आगे बढ़ने का आसान रास्ता बन गई है. कार्यकर्ता भी जान गए हैं कि उनका काम सिर्फ दरी बिछाना रह गया है. भ्रष्टाचारियों और बलात्कारियों को आपका वरद हस्त रहता है. पार्टी में ससम्मान लाया जाता है और टिकट दिया जाता है. शुचिता, सामूहिक नेतृत्व का पाखंड भी अब खतम हो गया है.
अब आपने खुद को नॉन बॉयोलाजिकल बता दिया है. औऱ भी साफ तरीके से खुद अमर,अजर अविनाशी बता दिया है. एक तरफ गाली गलौज की भाषा, तो दूसरी तरफ आपकी आत्ममुग्धता की पराकाष्ठा है. आपकी पार्टी का प्रवक्ता भी भगवान जगन्नाथ को भी आपका भक्त बताने से नहीं हिचकता. आपकी पार्टी के नेता भी आपको अवतार यूं ही नहीं घोषित कर रहे हैं.
लेकिन, ये सच नहीं है, ये मानसिक बीमारी है और वोट बैंक को रिझाने के लिए आपका ही अपनी तरह का एक मुजरा है. लीलाधारी ये आपकी ही लीला है.
लेकिन जनता अब आपकी रासलीला को समझ रही है. कदंब से उतरिए मोदीजी…
इसी वजह से पाखंडियों की फौज ने आपके लिए चुनावी नारा गढ़ा था- हर हर मोदी, घर घर मोदी. महादेव को हटा कर हर हर मोदी कहलवाने का दुस्साहस पहली बार किसी राजनीतिज्ञ ने किया था.
आप स्वांग रचने में माहिर हैं. सिर्फ स्वांग ही नहीं, आप उसी किरदार में जीने भी लगे है. राजनीति में धर्म का इस्तेमाल करते-करते आप खुद को धर्मगुरु की तरह स्थापित करने की कोशिश करते रहे.
अब तो आप खुद ही भगवान हो गए, अपने आप को वोट के लिए खुद को नॉन बॉयोलॉजिकल बताने लगे हैं, अजर-अमर-अविनाशी खुद को कहने लगे है.
लेकिन परमात्मा का अवतार बताने के लिए ईश्वर जैसी उदारता भी चाहिए. सबके लिए दया और करुणा भाव झलकना चाहिए. भक्त के साथ गैर भक्तों के प्रति आपनत्व होना चाहिए. लेकिन आप में आस्था रखने वालों के लिए भी आप साहूकार की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं.
सातवें चरण में धर्मभीरू भोली-भावप्रवण जनता को आप डरा रहे हैं. उससे पूछ रहे हैं कि मोदी आपको मुफ्त राशन देता है. मुफ्त पांच लाख तक का इलाज देता है, लेकिन अगर उसे वोट नहीं दोगे तो पुण्य मिलेगा कि नहीं मिलेगा. क्षमा कीजिएगा मोदीजी, ( क्षमा भाव से आपका कोई लेना-देना नहीं) ये किसी पाखंडी बाबा की भाषा है.किसी अवतारी पुरुष की नहीं.
अवतारी तो आपको दुनिया मानती है. घृणा का साक्षात अवतार, नफरत तो आपके हाव-भाव, चाल-चरित्र और चेहरे से टपकती है. आप खुल कर उन्मुक्त ठहाका नहीं लगा सकते. आपको सिर्फ घृणाभाव से हंसते देखा गया है. देखते-देखते दस बरस में आपने देश को नफरत का बाजार बना दिया है. जिसमें हिंसा को वीरता माना जाने लगा है. निहत्थों पर पीछे से वार कर जीतने वाले को विजेता.
आप में देवत्व होता तो आप खुद जाति जनगणना करवाते और गरीब-दलित- आदिवासी वर्ग के साथ खड़े होते
आप में देवत्व होता तो आप गरीबों के और गरीब होने के सवाल पर ये नहीं कहते कि क्या सबको गरीब कर दूं..
आप चुनाव में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने में पूरी ताकत नहीं लगाते क्योंकि आपको मालूम हैै कि दंगों का दर्द सबसे ज्यादा गरीब के बच्चों को भुगतना पड़ता है.
आपके संसदीय जीवन की विशेषता यही रही है कि आप गालीगलौज को ही संवाद मानते रहे हैं. प्रतिपक्ष अगर चुप है तो उकसा-उकसा कर उसेी भाषा के मैदान में उतरने को मजबूर करना आपकी रणनीति का हिस्सा है.
उकसाने के लिए आपके पास बिकाऊ मीडिया की फौज है. आपके बयानों को बार बार फुला कर पेश करने वाले कथित पत्रकार प्रतिपक्ष को उकसाने में जुट जाते हैं. आपके लिए सुप्रीम कोर्ट को डराने वाले 6 सौ वकीलों की कोशिश के बाद अब चमचे पत्रकारों का “चमचा” स्वाभिमान जागने लगा है.
उनमें से कुछ राहुल गांधी से कह रहे हैं कि उन्हें चमचा क्यों कहा जा रहा है. पत्रकार का काम होता है सत्ता से सवाल पूछना. जनता और प्रतिपक्ष की आवाज बनना. आरएसएस और आपने अब परिभाषा ही बदल दी है. अब पत्रकार वही जो मोदी मन भाए.
अब टीवी पत्रकार सत्तारूढ़ दल से ज़रूरी सवाल पूछने की हिम्मत नहीं करते. बल्कि बीजेपी के आईटी सेल की तरह नैरेटिव गढ़ने में जुटे रहते हैं. सही को सही और गलत को गलत कहने की हिमाकत नहीं करते हैं. आपसे अवतारी रूप के दर्शन लाभ भर से ये कृतार्थ हो जाते हैं.
मोदीजी, आपको मालूम है कि ये मीडिया वाले किसी के सगे नहीं होते. मार्केटिंग एजेंसियों ने आपकी लार्जर देन लाइफ इमेज बना दी थी. आप उसी किरदार से निकल नहीं पा रहे है. मीडिया वाले भी आपकी उसी इमेज को फुला कर भगवान बना रहे हैं. आप बॉयलॉजिकल हो मोदीजी. आप इस साजिश को समझ नहीं पा रहे हो. दरसल आप जिन्हें काले धन का मालिक बताते हैं, वो आपकी सरकार से मुजरा करवा रहे हैं.
आपकी नीतियां 22 घरानों की महफिल में कत्थक करती नज़र आ रही हैं.
जिन्हें वेल्थ क्रिएटर कहते हैं उन्हें देश की संपत्तियां बेच कर महफिलें सजाई जा रही हैं.
जिन्हें आप सुदामा कहते हो उनके यहां जगमग-जगमग प्रीवेडिंग पार्टियां हो रही हैं,
राष्ट्रवादी सरकार की देशभक्त वायुसेना लालाजी के लिए हवाईअड्डा चला रही हैं.
संसद में मतदान की मांग को नज़र अंदाज कर खेत और खेती कॉर्पोरेट को देने के लिए किसान विरोधी बिल पास कराया गया.
दुनिया का सबसे बड़ा वसूली रैकेट चलाने के लिए इलेक्टोरल बांड के कानून को मनी बिल के रूप में पारित करवा लिया गया.
145 सांसदों को निलंबित कर प्रतिपक्षमुक्त संसद इन्हीं एक फीसदी लोगों के हित में बनाई गई.
देश में तानाशाही की स्थापना के लिए प्रतिपक्षमुक्त संसद में आपराधिक कानून और नया टेलीकॉम बिल पारित करवाया गया
मोदीजी आपको तो मालूम है कि इन बाइस घरानों की महफिल में मुजरा कौन कर रहा है.
….बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जाएगी मोदीजी!