ये राहुल गांधी को नहीं, लोकतंत्र, संविधान और देश को धमकी है…

 

आम चुनाव में 240 सीटों पर सिमट जाने के बाद बैसाखियों के सहारे बनें एक तिहाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी अपनी हार को पचा नहीं पा रही है. वहीं, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भी राहुल गांधी के मिशन से घबराहट बढ़ गई है. ऐसे में राहुल गांधी पर हमलों की धमकियों के बयान जारी करवाए जा रहे हैं. हिंदुत्व और हिंदू एकता के शत्रु की छवि बनाने और राहुल  के खिलाफ लोगों को उकसाने की कोशिश की जा रही है. इसी मकसद से राहुल गांधी के बयान तोड़-मरोड़ कर पेश किए जा रहे हैं. अमेरिका में अपने भाषण का अंश जारी करते हुए राहुल गांधी ने फिर सभी से पूछा है कि मैंने गलत क्या कहा था?  किसी सिक्ख या किसी भी भारतीय को अपने देश में बगैर किसी भय के अपने धर्म के पालन की स्वतंत्रता होनी चाहिए.

राहुल गांधी के बयान के एक हिस्से को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें सिक्ख विरोधी ठहराने की कोशिश की. 11 सितंबर को बीजेपी नेता तरविंदर सिंह मारवाह ने राहुल गांधी को उनकी दादी का हश्र होने की धमकी दी.चार दिन बाद ही 15 सितंबर को कांग्रेस से बीजेपी गए केंद्रीय राज्य मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू ने तो राहुल गांधी को नंबर वन आतंकवादी कह दिया. इसके बाद यूपी सरकार में मंत्री रघुराज सिंह ने भी राहुल को आतंकवादी बताया.

राहुल गांधी के खिलाफ नफरत की आवाज़ महाराष्ट्र से भी सुनियोजित तरीके से उठाई गई. शिंदे सेना के विधायक ने जीभ काट कर लाने वाले को 11 लाख रुपए के ईनाम का ऐलान कर दिया. इसके बाद बीजेपी सांसद ने भी राहुल गांधी की जीभ जला देनी चाहिए कह कर भारतीय जननता पार्टी के मंसूबों का खुलासा कर दिया.

नफरत और हिंसा की धमकियों को सिरफिरों की बयानबाज़ी मान कर छोड़ देना सही नहीं होगा. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर कहा कि ‘भाजपा और सहयोगी दलों के नेताओं द्वारा लगातार राहुल गांधी के लिए बेहद आपत्तिजनक और हिंसक भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है। आपसे आग्रह है कि ऐसे नेताओं पर लगाम लगाएं।’

लेकिन पीएम मोदी ने मौनम् स्वीकृत लक्षणम् को सिद्ध करते हुए चुप्पी साधे रखी और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से बहुत अभद्र भाषा में जवाब लिखवाया. जेपी नड्डा ने अपने पत्र में सामान्य शिष्टाचार भूलते हुए राहुल गांधी के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया. लेकिन कांग्रेस ने नड्डा के स्तर पर उतरने के बजाय शालीनता बनाए रखी और महासचिव, संचार, श्री जयराम रमेश ने कहा कि खड़गे जी ने पीएम मोदी को पत्र लिखा था, अत: उन्हीं से जवाब की अपेक्षा की जाती है.

लेकिन मसला इतनना आसान नहीं है. आरक्षण से जुड़े सवाल पर राहुल गांधी के जवाब को पूरे संदर्भ के बगैर आधा-अधूरा हिस्सा पीएम मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी के नेता ले उड़े. देश से आरक्षण हटाने के सवाल पर राहुल गांधी ने साफ कहा कि जब इंडिया एक फेयर प्लेस यानि समान अवसर और न्यायपूर्ण हो जाएगा तो आरक्षण हटाने पर विचार किया जाएगा, लेकिन अभी ऐसे हालात नहीं हैं. बीजेपी ने राहुल गांधी पर आरक्षण हटाने की साजिश का आरोप लगा दिया. इसी बिना पर राहुल की जीभ काटने पर ईनाम और जीभ जला देने की धमकी दी गई. जाहिर है कि राहुल गांधी के जाति जनगणना का मुद्दा लगातार उठाए रखने से घबराई बीजेपी अब खुले तौर पर झूठे प्रचार का सहारा लेने को मजबूर हो गई है. आरक्षण खत्म करने का झूठा आरोप लगाते हुए बीजेपी ये भूल गई कि राहुल गांधी ने आरक्षण सीमा पचास फीसदी से बढ़ाने का भी मुद्दा उठाया है. क्या बीजेपी आरक्षण सीमा बढ़ाने के लिए तैयार है?

दरअसल वर्णाश्रम औऱ जाति व्यवस्था को कभी प्रत्यक्ष तो कभी परोक्ष रूप से समर्थन देन वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष से पहले राहुल गांधी ने जाति जनगणना का मुद्दा उठा कर संघ के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है.

येन-केन-प्रकारेण सत्ता हथियाने के बाद देश में हिंसा,भीड़, नफरत और अफवाह के सहारे आरएसएस का लक्ष्य हिंदुत्व का एजेंडा लागू करना है. धार्मिक आस्था  भुना कर हिंदू एकता का नारा देने वाला संघ महिलाओं, दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को बराबरी का दर्जा देने के लिए तैयार नहीं है. हाल ही में दिए एक बयान में फिर से महिलाओं को रसोई तक सीमित रहने की वकालत की गई है. तो जाति जनगणना का विरोध कर दमित-वंचित वर्ग के प्रति अपनी वितृष्णा भी जाहिर कर दी गई थी, लेकिन चुनावी नुकसान क देखते हुए बयान बदली किया गया और कहा कि इसका राजनीतिक इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. हिंदुत्व का राजनीतिक इस्तेमाल कर सत्ता तक पहुंची बीजपी का मातृसंगठन के इस बयान से जारी है कि आरएसएस किस हद तक तिलमिलाई हुई है.

यही वजह है कि आरक्षण पर राहुल के बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश करने से पीएम मोदी भी बाज नहीं आए. कुरुक्षेत्र की रैली में भी गांधी परिवार पर आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाया. तो अमित शाह ने भी ट्वीट कर राहुल गांधी को आरक्षण विरोधी बताया और खुद को आरक्षण का हिमायती साबित करने की कोशिश की.

आरएसएस के लिए धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े बयान से ज्यादा अहम आरक्षण का मुद्दा है, जाति जनगणना का मुद्दा है. अब बीजेपी के बैसाखी दल भी जाति जनगणना के हामी हो गए हैं. अंदरूनी सूत्रों से खबर आ रही है कि मोदी आने वाले वक्त में जाति जनगणना पर हामी भर कर चुनावी फायदा लेने की कोशिश कर सकते हैं.

यहां ये नहीं भूलना चाहिए कि आरक्षण खत्म करने के लिए मोदी सरकार ने ऐसे तरीके अपनाए हैं कि जनता उसकी मंशा पर संदेह नहीं कर सकी. पिछले दस सालों में विभिन्न मंत्रालयों, सरकारी विभागों, निगमों औऱ संस्थाओं में गवर्नेंस के नाम पर नौकरियों में छंटाई कर दी गई. केंद्र और राज्यों में इस तरह की तीस लाख से ज्यादा पद खाली रखे गए हैं. वहीं सरकारी नौकरियों को संविदा या ठेके पर दे कर मोदी सरकार ने नौकरियों से हाथ झाड़ लिया है. जाहिर है कि ठेका नौकरी में आरक्षण लागू कर पाना संभव नहीं है. वहीं जहां आरक्षित पद हैं, वहां पिछले दस सालों से भर्तियां करने में हाली-हवाली की जा रही है. इसके अलावा नॉट फॉउंड सूटेबल (एनएफएस) के नाम पर सामान्य कोटे से भर्तियों की साजिश भी सामने आ रही है.

खुद को आरक्षण के हिमायती बताने वाले मोदी-शाह के आरक्षण के खिलाफ षड़यंत्र को जनता समझन गई है. साथ ही राहुल गांधी पर भरोसा भी कर रही है. इसीलिए झूठ,नफरत,हिंसा, और अफवाह के सहारे राहुल गांधी को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है.

दरसल बीजेपी-आरएसएस लोकतांत्रिक व्यवस्था में अगर भरोसा करते तो दिखावे के लिए ही सही दोनों संस्थाओं में निर्वाचन पद्धति अपनाई जाती. यहां तक कि आरएसएस तो पंजीकरण कराने में भी विश्वास नहीं करता. खुद को संविधानेतर मानने वाली ये संस्था अपने जन्म से ही स्वाधीनता संग्राम की विरोधी और फिरंगियों की हिमायती रही है. यही नहीं, संविधान के निर्माण से लेकर उसके लागू होने तक इन्होंने कभी संविधान को स्वीकार किया ही नहीं. ये संविधान को आयातित बताते रहे और पिछले दस साल में संविधान बदलने का माहौल बनाने के लिए बहस भी कई बार छेड़ी गई.

संघ-बीजेपी के कई नेता 2024 के चुनाव के वक्त तो काफी मुखर हो कर संविधान बदलने की बात कह रहे थे और फिर औपचारिक तौर पर मुकर भी रहे थे. यह संघ की रणनीतिक चाल है. ये संघ की गोरिल्ला राजनीति है.

संविधान और आरक्षण समाप्त करने के लिए जरूरी है कि लोकतंत्र को कमज़ोर कर दिया जाए. देश की हर संवैधानिक संस्था को बुरी तरह कमज़ोर कर दिया गया है. सभी संस्थाएं सरकार की बोली बोलती दिखाई पड़ रही हैं. लोकतंत्र के चारों पाए चरमरा चुके हैं. पूरी व्यवस्था दस फीसदी लोगों के लिए काम कर रही है. 20-25 घरानों के हितों के मद्देनज़र 16 लाख करोड़ की कर्जमाफी की गई है और सरकारी नीतियां भी उन्हीं के हित में बन रहीं हैं। ऐसे में जब सरकार के दमनकारी शासन के खिलाफ कहीं न्याय की आस नहीं है. वहां राहुल गांधी सभी को न्याय ही नहीं, हिस्सेदारी न्याय दिलाने की बात कर रहे हैं. बीजेपी-आरएसएस को अब राहुल गांधी पप्पू नहीं खतरनाक नज़र आने लगा है. नज़र अंदाज करने के बजाय राहुल गांधी को रास्ते से हटाने का षड़यंत्र भी रचा जा रहा है. लेकिन चिंता की बात ये है कि राहुल गांधी अब सिर्फ कांग्रेस सांसद ही नहीं, प्रतिपक्ष के नेता हैं. उन्हें धमकी के मायने हैं विपक्ष को सरकार की धमकी. देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान को धमकी. ये नहीं भूला जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक ऐसे किसी भी बयान की भर्त्सना नहीं की है.

संघ-बीजेपी राहुल गांधी के खिलाफ वही हिंसक माहौल बना देना चाहती है, जो बंटवारे के वक्त कांग्रेस के लिए बनाया गया था. नफरत का इतना बड़ा बाज़ार खड़ा कर दिया गया था कि महात्मा गांधी की हत्या हो गई थी. आज भी हिंसक विचारधारा से जुड़े कई कायर अहिंसक महात्मा पर गोली चला कर गांधी-वध कह कर उनकी पुण्य तिथि मनाते हैं.

नफरत की ये विचारधारा वे हालात पैदा कर देना चाहती है, जिसमें किसी भी सिरफिरे को गोडसे में बदला जा सके. उसके बाद गोदी मीडिया के सहारे ये प्रचारित किया जा सके कि मैनें गांधी को क्यों मारा ?

लेकिन मुहब्बत की एक दुकान नफरत के पूरे बाज़ार पर भारी नज़र आ रही है. क्योंकि भले ही बीजेपी-आरएसएस कितना ही हिंदुत्व-हिंदुत्व कर ले लेकिन ये नहीं भूले कि आजादी की लड़ी लड़ चुका ये देश सत्तर साल में सर्वधर्मसमभाव के साथ जीने, अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ने में और मजबूत हो गया है. यही वजह है कि 2024 के चुनाव में चुनावी धांधलियां कर के भी बीजेपी बहुमत से दूर रही और आज बैसाखियों के दम पर लंगड़ाती चल रही है.

अंतिम और अहम बात- गांधी गोलियों से मरा नहीं करते, वो दुनिया भर में अमर हो जाते हैं, उनके हत्यारे विदेशों में भी उनकी मूर्तियों के सामने बेमन से ही शीश झुका कर आते हैं.

सच्चाई तो ये है कि ये राहुल गांधी को नहीं, देश को धमकी है. लोकतंत्र,संविधान और आरक्षण को बचाने वाले हर देशवासी को धमकी है.

Shares:
Post a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *