इलेक्टोरल बांड:एफआईआर दर्ज होने पर कांग्रेस ने मांगा वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से इस्तीफा

“दुनिया के सबसे बड़े वसूली रैकेट” (इलेक्टोरल बांड) के मामले में अदालत के आदेश पर एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद कांग्रेस ने केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से इस्तीफे की मांग की है. बैंगलुरु की जन प्रतिनिधि अदालत ने एक शिकायत पर सुनवाई करते हुए निर्मला सीतारमण और अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है. कांग्रेस महासचिव ( संचार प्रभारी) जयराम रमेश और पार्टी प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने प्रेस कांफ्रेंस कर केंद्रीय वित्तमंत्री पद से निर्मला सीतारमण से इस्तीफे की मांग की है. साथ ही कांग्रेस ने इस घोटाले की जांच के लिए एसआईटी और संयुक्त संसदीय समिति के गठन की मांग भी दोहराई है.

अभिषेक सिंघवी ने संवाद सम्मेलन शुरुआत करते हुए कहा कि काली कमाई और बेनामी चंदा, बीजेपी का सिर्फ यही रह गया है धंधा. उन्होंने कहा कि इलेक्टोरल बांड के मामले में अदालत के आदेश पर दर्ज एफआईआर बीजेपी की काली कमाई का खुलासा करता है. उन्होंने  इलेक्टोरल बांड को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि अब ये प्रमाणित हो चुका है कि प्रधानमंत्री “खाउँगा भी, चुराउंगा भी और वसूलुंगा भी” में विश्वास रखते हैं. 15 फरवरी,2024 को सर्वोच्च अदालत ने अपने आदेश कहा था कि इलेक्टोरल बांड संविधान के तहत दिए गए सूचना के अधिकार और भाषण एवम् अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है.

वहीं, पार्टी के महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि 25 मार्च, 2024 को ही हमने दुनिया के सबसे बड़े वसूली घोटाले का खुलासा किया था. उन्होंने इलेक्टोरल बांड से वसूली के चार तरीके फिर से गिनाते हुए बताया कि इन तरीकों में 1. चंदा दो, धंधा लो यानी प्रीपेड रिश्वत,2. ठेका लो, रिश्वत दो यानी पोस्टपेड रिश्वत, 3. हफ़्ता वसूली यानी जबरन वसूली/पोस्टरेड रिश्वत और 4. फ़र्ज़ी कंपनियों के जरिए काली कमाई की गई है.

अभिषेक सिंघवी ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अहम हिस्से को सुनाते हुए कहा कि “योगदान के विवरण का खुलासा व्यक्तियों की स्वतंत्रता को इस हद तक प्रभावित कर सकता है कि जानकारी रखने वाला राजनीतिक दल उन लोगों को मजबूर कर सकता है जिन्होंने उन्हें योगदान नहीं दिया है।

सिंघवी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा है कि “मतदाता के सूचना के अधिकार में चुनावी राजनीति (चुनावी परिणामों के माध्यम से) और सरकारी निर्णयों (टेबल पर एक सीट और अंशदाता और राजनीतिक दल के बीच क्विड प्रो क्वो व्यवस्था के माध्यम से) में धन के प्रभाव के कारण राजनीतिक दल को वित्तीय अंशदान की सूचना का अधिकार शामिल है।

सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना के अधिकार के हवाले से अपने आदेश में लिखा है “राजनीतिक संबद्धता की गोपनीयता का अधिकार उन अंशदानों तक विस्तारित नहीं होता है जो नीतियों को प्रभावित करने के लिए किए जा सकते हैं। यह केवल राजनीतिक समर्थन के एक वास्तविक रूप के रूप में किए गए अंशदानों तक विस्तारित होता है कि ऐसी जानकारी का खुलासा उनके राजनीतिक संबद्धता को इंगित करेगा और राजनीतिक अभिव्यक्ति और संघ के विभिन्न रूपों पर अंकुश लगाएगा।

….हालांकि, राजनीतिक दलों को दिए गए योगदान के बारे में जानकारी का खुलासा न करने की तुलना में ऐसे योगदानों की सूचना के अधिकार और सूचनात्मक गोपनीयता पर प्रतिबंध न्यूनतम है। इस प्रकार, यह विकल्प एक सूचित मतदाता के लिए प्रकटीकरण और राजनीतिक संबद्धता के लिए सूचनात्मक गोपनीयता को “वास्तविक और पर्याप्त तरीके से” सुरक्षित करने के उद्देश्य को पूरा करता है। चुनावी बॉन्ड योजना में उपाय सूचनात्मक गोपनीयता के उद्देश्य के पक्ष में संतुलन को पूरी तरह से झुकाता है और सूचनात्मक हितों को समाप्त करता है।

कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 182 में संशोधन को परिभाषित करते हुए अदालत ने कहा कि “जो ऐसी गतिविधि कर रहा है जिसे राजनीतिक दल के लिए सार्वजनिक समर्थन को प्रभावित करने की संभावना माना जा सकता है”। यह दर्शाता है कि प्रकटीकरण को अनिवार्य करने वाले प्रावधान का विधायी उद्देश्य कंपनियों द्वारा राजनीतिक योगदान में पारदर्शिता लाना था। कंपनियों को हमेशा अपनी विशाल वित्तीय उपस्थिति और कंपनियों और राजनीतिक दलों के बीच लेन-देन की उच्च संभावना के कारण उच्च प्रकटीकरण आवश्यकता के अधीन होना पड़ा है। धारा 182 (3) में प्रकटीकरण आवश्यकताओं को यह सुनिश्चित करने के लिए शामिल किया गया था कि कॉर्पोरेट हितों का चुनावी लोकतंत्र में अनुचित प्रभाव न हो, और यदि ऐसा होता है, तो मतदाताओं को इसके बारे में अवगत कराया जाना चाहिए।”…. धारा 182 में संशोधन करके असीमित कॉर्पोरेट योगदान (शेल कंपनियों सहित) की अनुमति देकर कंपनियों को चुनावी प्रक्रिया पर अनियंत्रित प्रभाव डालने की अनुमति दी गई है। यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और “एक व्यक्ति एक वोट” के मूल्य में निहित राजनीतिक समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है।

चुनावी चंदे के दुरुपयोग की आशंका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि “किसी कंपनी की राजनीतिक योगदान के माध्यम से चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने की क्षमता किसी व्यक्ति की तुलना में बहुत अधिक है। किसी कंपनी का राजनीतिक प्रक्रिया पर बहुत अधिक प्रभाव होता है, राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले धन की मात्रा और ऐसे योगदान देने के उद्देश्य दोनों के संदर्भ में। व्यक्तियों द्वारा किए गए योगदान में किसी राजनीतिक संघ के लिए समर्थन या संबद्धता की एक डिग्री होती है। हालांकि, कंपनियों द्वारा किए गए योगदान विशुद्ध रूप से व्यावसायिक लेनदेन होते हैं, जो बदले में लाभ प्राप्त करने के इरादे से किए जाते हैं।

इलेक्टोरल बांड को असंवैधानिक करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले के अंत में कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29सी(1) (वित्त अधिनियम 2017 की धारा 137 द्वारा संशोधित), कंपनी अधिनियम की धारा 182(3) (वित्त अधिनियम 2017 की धारा 154 द्वारा संशोधित) और धारा 13ए(बी) (वित्त अधिनियम 2017 की धारा 11 द्वारा संशोधित) अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन और असंवैधानिक हैं; और बी. राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट योगदान की अनुमति देने वाले कंपनी अधिनियम की धारा 182(1) के प्रावधान को हटाना मनमाना और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

 विशेष अदालत के आदेश पर बैंगलुरु के तिलकनगर थाने में निर्मला सीतारमण,प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों,बीजेपी के प्रदेश और राष्ट्रीय पदाधिकारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 384(जबरन वसूली), 120 बी (आपराधिक साज़िश) और धारा 34 (सामान्य इरादे से कई लोगों द्वारा किये गये कार्य) के तहत एफआईआर दर्ज कर ली गई है. अदालत ने ये आदेश जनाधिकार संघर्ष परिषद (जेएसपी) के सह-अध्यक्ष आदर्श आर अय्यर की याचिका पर दिया है. इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि आरोपियो ने चुनावी बांड के नाम पर जबरन वसूली की और 8000 करोड़ रुपए अर्जित किए. शिकायत में कहा गया है कि ये वसूली अभियान इलेक्टोरल बांड के नाम पर कई स्तर पर बीजेपी के पदाधिकारियों द्वारा चलाया जा रहा था.

गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के दबाव की वजह से 21 मार्च, 2024 को भारतीय स्टेट ने इलेक्टोरल बांड से जुड़ी सभी आंकड़े सार्वजनिक कर दिए थे. जिसके दो दिन बाद कांग्रेस ने पायथन कोड का इस्तेमाल करते हुए दुनिया के सबसे बड़े वसूली घोटाले के चार तरीकों का खुलासा किया था.

चंदा देने वालों और इसे प्राप्त करने वालों की संख्या में अंतर को लेकर भी सवाल खड़े हुए थे. दानदाताओं में 18,871 की जानकारी है, जबकि लेने वालों के आंकड़े 20,421 जारी किए गए हैं. तब कांग्रेस ने स्टेट बैंक से ये भी पूछा था कि जब योजना 2017 से शुरू हुई थी तो इसमें अप्रेल, 2019 के बाद के ही आंकड़े क्यों जारी किए गए हैं.

1,368 करोड़ का सबसे ज्यादा चुनावी चंदा बीजेपी को फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज़ से मिला था. ये कंपनी सिक्किम, नगालैंड और पश्चिम बंगाल में  लॉटरी के टिकट बेचती है. दिलचस्प बात ये है कि 2019 में कंपनी पर इंकम टैक्स और 2021 में प्रवर्तन निदेशालय ने छापे मारे थे. वहीं, इश कंपनी ने 21 अक्टूबर, 2020 से जनवरी,2024 के बीच ये चंदा दिया था. 2019 से 2024 के बीच इस तरह की 1334 कंपनियों ने करीब 16,518 करोड़  से इलेक्टोरल बांड खरीदे थे.

चौतरफा आलोचना से घिरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अप्रेल, 2024 को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर सफाई देते हुए इसे सक्सेस स्टोरी बताया था और कहा था कि “मैं यह नहीं कहता कि निर्णय में कोई कमी नहीं होती,लेकिन आज देश को पूरी तरह काले धन की तरफ ढकेल दिया गया है.जब बाद में ईमानदारी से लोग सोचेंगे तो पछताएंगे.” उस वक्त देश-विदेश मीडिया ने इलेक्टोरल बांड से भ्रष्टाचार से जुड़ी चौंकाने वाली जानकारियां प्रकाशित की थीं.

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