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क्या माननीय न्यायालयों के निर्णय देश की जनता के दिलों में फैले असंतोष को और हवा दे सकते हैं !!

 माननीय न्यायालय का फैसला  - सांप भी मरा और लाठी भी नहीं टूटी चुनाव आयोग की हठधर्मिता , जिसमें उन्होंने चुनाव संबंधी जानकारी न देने का निश्चय किया था जिस
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अब यह बात हमारे हक की – अब पहली नौकरी होगी पक्की

भारत में प्रतिभाओं की भरमार - पर बेरोजगारी ले जाए सागर पारदुनियाँ के किसी भी कोने में यदि उत्कृष्ट वैज्ञानिकों, इंजीनियरों अथवा अन्य किसी प्रतिभा की तलाश होती है तो
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चुनाव आयोग है नाकामी की नई मिसाल – मतदान का डाटा बना जी का जंजाल

भारत का चुनाव आयोग विगत कई वर्षों तक विश्व भर में अपने निष्पक्ष व चुनाव संचालन के लिए विश्व भर में आदर्शों के ने मानदंड स्थपित करता रहा है। विश्व
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खुफिया रिपोर्ट एनडीए बस १९० – उखड़ गए विकास के तंबू, उखड़ गए खंबे

है ये कैसा विकास - रूंठा निवाला मिली घास चारों तरफ ढिंढोरा हो रहा है कि प्रधानमंत्री का हर तरफ डंका बज रहा है। गत १० वर्षों में विकास ने
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तीन चरणों का मतदान -फर्जी वोटों से कैसी शान

कत बिधि सृजीं नारि जग माहीं - पराधीन सपनेहु सुख नाहीं महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी उपरोक्त पंक्तियों में जहां महिलाओं की तत्कालीन परिस्थितियों को दर्शाते हैं वहीं मुझे लगता है
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सरकार का यह कैसा सिला – अंध भक्तों को क्या मिला

कहानी सत्ता के तख्तों की - कथा अन्ध भक्तों की - जन्म यूं तो भारत में गणतंत्र की स्थापना १९५० में हुई थी और पहले चुनाव १९५२ में सम्पन्न हुए।
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पिटती प्रथाएँ – अनैतिक इरादे – रुआँसा लोकतंत्र

भारत का संविधान - भारतीय लोकतंत्र की आत्मा कितना भी अच्छा संविधान हो , मगर जो लोग इसे लागू कर रहे हैं वे अच्छे नहीं हैं, तो यह बुरा साबित