बीजेेपी को चाहिए चार सौ पार… लेकिन क्यों..

 

सरकार तो 272 पर बनती है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार सौ पार का नारा दिया हैै. कहने में क्या जाता है, कह दिया है… लेकिन मोदीजी ने कहा है तो कुछ सोच कर ही कहा होगा…थोड़ा समझने की कोशिश करते हैं.

कांग्रेस के हिस्सेदारी न्याय औऱ जाति जनगणना का खौफ आरएसएस-बीजेपी और पीएम मोदी के दिल में डर  इतना घर कर गया है कि अब वो हिस्सेदारी न्याय के लिए कांग्रेस के आर्थिक-सामाजिक जनगणना की गारंटी को लेकर मतदाताओं को डराना शुरू कर चुके हैं.

अमीरों के रॉबिनहुड नरेंद्र मोदी पिछले दस साल से  गरीब-गरीब का नारा दे कर गरीबों की हकमारी कर देश के संसाधन 22 परिवारों को  लुटाते रहे हैं, अमीरों के पंद्रह लाख करोड़ की कर्जमाफी करने वाले मोदी ने 80 करोड़ लोगों को 5 किलो अनाज पर जीने के लिए मजबूर कर दिया है.

अब वो गरीबों को भरमा रहे हैं कि उनका घर छीन लिया जाएगा, उनका मंगलसूत्र दूसरों को दे दिया जाएगा. नरेंद्र मोदी मंगलसूत्र, मुसलमान, मटन,मछली केे बहाने एक बड़ी साजिश रच रहे हैं.

मोदी के हिंदू-मुसलमान करने के पीछे की साजिश-

ये संयोग नहीं बल्कि प्रयोग है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के एक के बाद एक कई नेता खुल कर बोल चुके हैं कि चार सौ पार हो जाएंगे तो ही संविधान बदल पाएंगे.. राजस्थान में नागौर सीट से बीजेपी प्रत्याशी ज्योति मिर्धा, कर्नाटक के पूर्व सांसद अनंत हेगड़े ने संविधान बदलने की बात कही. 

13 अप्रेल, डा. अंबेडकर जयंती के मौके पर पीएम मोदी ने अंबेडकर का अपमान करते हुए मनाई. उन्होंने कहा कि खुद अंबेडकर भी आ जाएं तो संविधान नहीं बदल सकते. लेकिन अगले ही दिन अयोध्या से बीजेपी प्रत्याशी लल्लू सिंह ने भी संविधान बदलने की बात दोहराई.

पीएम मोदी और अमित शाह के संविधान को लेकर बयान देने के बावजूद एमपी में बड़वाह के बीजेपी प्रत्याशी सचिन बिड़ला ने फिर दोहराया है कि चार सौ पार संविधान बदलने के लिए ज़रूरी है.

संविधान विरोध का हिदुत्ववादियों का पुराना इतिहास-

संविधान बनते वक्त रामराज्य परिषद, जो बाद में जनसंघ में विलेय हो गई थी, उसके संस्थापक स्वामी करपात्री ने ये कह कर संविधान का बहिष्कार किया था कि ये अछूत का लिखा संविधान अस्वीकार है.

 26 नवंबर,1949 को संविधान के पारित होने पर आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर के संपादकीय में लिखा कि ‘भारत के संविधान में कुछ भी भारतीय नहीं है क्योंकि इसमें मनु की संहिताएं नहीं हैं.  इसलिए उन्हें यह संविधान स्वीकार नहीं है

सत्ता में आने तक बीजेपी ने राम मंदिर,370 और समान नागरिक संहिता के मुद्दे पीछे कर दिए थे. लेकिन 1998 में सत्ता  में आते ही तत्कालीन प्रधानमंत्री  अटल बिहारी वाजपेयी ने पूर्व न्यायमूर्ति वैंकट चेलैया के नेतृत्व में संविधान समीक्षा आयोग बनाया था.

 पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद 2017 से बीजेपी नेताओं ने संविधान बदलने के लिए माहौल बनाना शुरू कर दिया. फिर भारत के मुख्य न्यायधीश रहे रंजन गोगोई ने राज्यसभा सांसद बनते ही संविधान के मूल ढांचे को लेकर बहस शुरू कर दी.

वहीं, पिछले साल स्वाधीनता दिवस पर पीएम मोदी के आर्थिक सलाहकार बिबेक डेबरॉय ने लिखा कि अब धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, समानता, न्याय और बंधुत्व जैसे शब्दों का कोई मतलब नहीं है। संविधान औपनिवेशिक विरासत है। इसलिए इसे हटाकर नया संविधान लिखा जाना चाहिए. 

तीस लाख सरकारी नौकरियां खाली रख कर, आरक्षित सीटों पर काबिल प्रत्याशी के नाम पर जनरल कोटे से भर कर और लेटरल एंट्री के जरिए आरएसएस-बीजेपी और हिंदुत्वादियों को ऊंचे-ऊंचे पदों पर बिठा कर आरक्षण को पहले ही अधमरा कर दिया गया है.

बाबासाहब आंबेडकर ने अपनी किताब ‘पाकिस्तान, द पार्टिशन ऑफ इंडिया’ में साफ लिखा था कि हिन्दू राष्ट्र दलितों, वंचितों के लिए बड़ी आपदा साबित होगा. लिहाजा 2024 का चुनाव देश ममें लोकतंत्र,संविधान और आरक्षण के लिए निर्णायक न्याय युद्ध है.

मनुवाद हिंदू-मुस्लिम का मुखौटा लगा कर अपना मकसद पूरा कर रहा है. इस बार सत्ता पर काबिज होने पर ना तो लोकतंत्र रह जाएगा, ना संविधान और नाही आरक्षण. 

 

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