बीजेपी का जुमला पत्र: धोखा भी धंधा भी
तेरह दिन की तैयारी के बाद बीजेपी मोदी की गारंटी के नाम से 76 पेज का संकल्प पत्र ले कर आई है. सामूहिक नेतृत्व की बात करने वाली बीजेपी में अब मोदी नाम केवलम् का पाठ चल रहा है. बीजेपी का संकल्प पत्र अब मोदी की गारंटी में बदल चुका है. संकल्पपत्र में मोदी नाम का 65 बार जिक्र हुआ है.
हालांकि ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भय है कि उन्होंने मंच पर बीजेेपी के दूसरे नेताओं को भी मौका दिया. वरना आत्ममुग्ध प्रधानमंत्री को अपने फोटो फ्रेम में कोई भी शख्स कतई मंजूर नहीं. हाल ही में मोदी को पहनाए जा रहे विशाल माला में जब एक नेता ने अपना गला फंसाने की कोशिश की थी, तो उन्हें आंखें दिखा दी गई थी. लेकिन संकल्प पत्र समिति के अध्यक्ष के तौर पर उन्हें मंच पर चढ़ा लिया गया, तो खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. ये अलग बात है कि उन्हें राजपूतों की नाराजगी को दूर करने के लिए मंच पर चढ़ाया गया था. जिसकी आग से बीजेपी राजस्थान, यूपी और गुजरात में झुलस रही है.
लेकिन बात अगर मुद्दे की करें तो मोदी को अब खुद अपनी गारंटी पर भरोसा नहीं रहा. बहुत मशक्कत के बाद दस बड़े मुद्दे तलाशे गए, जो कांग्रेस के पांच न्याय, पच्चीस गारंटी का जवाब बन सकें. लेकिन एक मुद्दे में भी वो असर नहीं था, जो 2014 के घोषणा पत्र में था. क्या जुमले थे वो- हर साल दो करोड़ नौकरी, किसान की आय़ दोगुनी, सौ स्मार्ट सिटी, पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था वगैरह -वगैरह. इस बार आत्म विश्वास की कमी इस कदर झलक रही थी कि पांच-पांच नेताओं के मंच पर होने के बावजूद मीडिया को सवाल पूछने की ना तो इज़ाजत थी ना ही किसी ने हिमाकत ही की.
मोदी की गारंटी है कि अगले पांच साल सभी अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त पांच किलो राशन मिलेगा. यानि विकसित भारत की दिशा में मोदी सरकार का एक और कदम. लोग समझ नही पा रहे हैं कि इस बात पर अभिमान करें या शर्म महसूस करें. हालांकि पीएम मोदी ने अपने भाषण में दावा किया कि उन्होंने पिछले पांच साल के दौरान 25 करोड़ लोगों को गरीबी की रेखा से बाहर निकाला. अगर ये बात सही है तो राशन की कतारों में 80 करोड़ लोग क्यों खड़े हैं ? दरअसल 25 करोड़ लोगों को सामाजिक कल्याण की योजनाओं से बाहर करने के लिए रचा गया फरेब है.
जहां तक गरीबी की परिभाषा की बात है तो मल्टी डायमेंशनल पॉवर्टी का फार्मूला खुद नीति आयोग ने इजाद किया था. जिसे ना तो विश्व बैंक ना ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने ही माना था. जबकि 2004 से 2014 के दौरान मनमोहन सरकार ने 27 करोड़ लोगों को गरीबी की रेखा से बाहर निकाला था. जिसे वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ ने स्वीकारा था. सवाल ये है कि अगर गरीबी रेखा में 11.7 फीसदी की गिरावट आई है तो मुल्क में सिर्फ पंद्रह करोड़ लोग गरीब होना चाहिए. लेकिन मोदीजी असलियत जानते हैं, लिहाजा 80 करोड़ को राशन दे कर लुभा रहे हैं.
किसी ने सही कहा है कि तानाशाह अपनी आवाम को उन हालात में पहुंचा देता है, जिसमें लोग जिंदा रहने को भी उसी की रहमत मानते हैं. पांच किलो राशन और तीन सौ यूनिट मुफ्त बिजली को बीजेपी जनता पर बड़ा अहसान बता रही है.
तीन सौ यूनिट मुफ्त बिजली का जुमला प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना से जोड़ दिया गया है. इसका फायदा उन लोगों को मिलेगा जिनकी सालाना आय दो लाख रुपए है. जी हां, हर जगह कंडीशन एप्लाई है. लेकिन असली मुनाफा सोलर उद्योग के सबसे बड़े धंधेबाज को मिलना तय है. असल में ये गरीब को गारंटी के बजाय अपने सुदामा को दी जा रही धंधे की गारंटी ज्यादा है. जुमलापत्र में भी धंधा छुपा है.
वहीं हर घर गैस पाइप लाइन से सस्ती गैस भी मोदी की गारंटी है. देखने वाली बात ये है कि मोदी आखिर किसको गारंटी देे रहे हैं. क्या जिस दाम पर गैस उपलब्ध है, उससे कम दाम पर उपलब्ध कराई जाएगी ? अगर नहीं, तो क्या ये किसी मोटा भाई की पेट्रोलियम कंपनी को धंधे की गारंटी है?
दरअसल मोदीजी जुमलापत्र के जरिए भी अपने मालिकान का बिजनेस प्रमोशन करने से नहीं चूक रहे. आपदा में अवसर तलाशने में मोदी की कोई सानी नहीं है.
मोदीजी की गारंटी है कि गरीब की थाली सुरक्षित रखेंगे. लेकिन ये नहीं बताएंगे कि थाली में परोसा क्या जाएगा. दाल,चावल,नून, तेल, सब्जी और ईंधन में क्या महंगा नहीं हुआ. सभी जानते हैं कि अगर महंगाई दर में कोई कमी आई हैै तो चुनाव की वजह से. हालांकि लोग डरे भी हुए हैं चुनाव बाद महंगाई में उछाल के खौफ से.
खुद बीजेपी महंगाई से इतनी डरी हुई है कि मोदी की गारंटी महंगाई पर मौन है, जबकि एक सर्वेक्षण के मुताबिक देश में 23 फीसदी लोग महंगाई को चुनावी मुद्दा मानते हैं.
युवाओं को भरमाने के लिए मोदी के पास कोई ठोस गारंटी नहीं बची. जबकि सबसे ज्यादा 27 फीसदी लोग 2024 के आम चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार को मानते हैं. सबसे ज्यादा खौफ मोदी को बेरोजगारों से है. हर साल दो करोड़ नौकरी देने का जुमला जमींदोज हो गया. इसीलिए मोदी की गारंटी में नौकरी नदारद है.
आज देश में दस में से आठ युवा बेरोजगार हैं. देश में तीस लाख सरकारी नौकरियां खाली पड़ी हैं, लेकिन जुमला पत्र में उनका कोई जिक्र नहीं है. जबकि कांग्रेस ने अपने न्याय पत्र 2024 में रोजगार क्रांति को सबसे ज्यादा तवज्जो दी है. युवा न्याय के तहत पांच बड़ी गारंटियां दे कर बाजी मार ली है. पहली नौकरी पक्की, सभी तीस लाख सरकारी नौकरियों में भर्ती का भरोसा दिया है.हर ग्रेजुएट, डिप्लोमा होल्डर को अप्रेंटिस की कानूनी गारंटी के साथ एख लाख रुपए के वेतन की गारंटी दी है.
पेपर लीक के लिए कानून बनाने का वादा भी कांग्रेस की देखादेखी करना पड़ा.
वहीं, मोदी सरकार ने बेरोजगार युवाओं को देशसेवा के लिए सेना की सम्मानित स्थाई नौकरी के बजाय अग्निपथ पर उतार दिया गया है. चार साल बाद इन्हें घर लौटा कर आरएसएस की सैन्य टुकड़ी में शामिल कराया जाएगा या किसी अडानी की सुरक्षा सेवा में शुमार कर दिया जाएगा.
जुमला पत्र में कहा गया है़ कि निवेश से नौकरी पैदा करेंगे. कहना न होगा कि निवेश में लगातार गिरावट आ रही है. एफडीआई में गिरावट आई है. ना नौ मन तेल होगा,ना राधा नाचेगी. ये भी कहा जा रहा है कि मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में रोजगार बढ़ाएंगे. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में जहां 2016 में 51 मिलियन रोजगार थे, वहीं, 2023 में घट कर 36 मिलियन तक जा पहुंचे हैं. कोविड को दोष मत दीजिए, एनुअल सर्वे ऑफ इंडस्ट्रीज के मुताबिक 2021 में निर्माण क्षेत्र में सिर्फ 3.2 फीसदी की गिरावट आई थी. कोविड के बाद चीन से मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां भारत आने के बजाय दूसरे दक्षिण एशियाई देशों में चली गई.
जुमला पत्र में मोदी की गारंटी दी गई है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में रोजगार पैदा किया जाएगा. इस जुमले में भी धंधा छिपा है. इंफ्रास्ट्रक्चर में नौकरी के मायने है कि मोदीजी आगे भी बड़ी इन्फ्रा कंपनियों को पैसा देकर उनके जरिए युवाओं के लिए रोजगार पैदा करेंगे. ट्रिकल डॉउन थ्योरी के जानकार मोदी की नज़र में देश की सबसे विनम्र इन्फ्रा कंपनी अडानी की ही है, उसकी टैग लाइन भी यही है- मेरा नाम अडानी है, मैं विनम्र इंफ्रा कंपनी हूं
युवाओं को मुद्रा लोन योजना से लुभाने की कोशिश की गई है. जुमला पत्र में कहा गया है कि मुद्रा लोन को दस लाख से बढ़ा कर बीस लाख किया जाएगा. सभी जानते है कि ये योजना आरएसएस और बीजेपी के कार्यकर्ताओं के लिए ही लागू की गई है. इसी वजह से बड़े पैमाने पर लोन डिफाल्ट हुए हैं.
ग्लोबल कैपिबिलिटी सेंटर खोल कर हाई वैल्यू जॉब्स की बात जुमला पत्र में कही गई है. यहां भी कॉर्पोरेट जगत को फायदा पहुंचाने की मंशा नज़र आती है. यानि दो करोड़ सालाना नौकरी देने का जुमला देने वाली सरकार अब युवाओं को रोजगार देने से सीधे हाथ खींच लेना चाहती है.
आज आईआईएम औरआईआईटी जैसी संस्थाओं से निकल रहे तीस फीसदी छात्र बेरोजगार है. जहां एमबीए, पीएचडी,और इंजीनियरिंग जैसी पढ़ाई करके भी युवा बारहवीं पास की नौकरी का आवेदन करने के लिए मजबूर हैं. और मोदीजी की कृपा से उसके भी पेपर लीक हो जाते है. ऐसे में कांग्रेस का न्याय पत्र युवाओं के लिए उम्मीद की रोशनी की तरह है.
महिलाओं को मोदी की गारंटी इस बार भी जुमलों से ज्यादा कुछ नहीं. कांग्रेस के न्याय पत्र में हर परिवार की बुजुर्ग महिला को एक लाख रुपए सालाना देने की गारंटी दी गई है. बीजेपी ने इसकी टक्कर में महिलाओं के कौशल विकास से जुड़ी लखपति दीदी को खड़ा करने की कोशिश की गई है. कहा जा रहा है कि एक करोड़ दीदियों को लखपति बना दिया गया है, तीन करोड़ दीदियों को लखपति बनाया जाएगा.
वहीं अगला सपना महिलाओं को ड्रोन पॉयलट बनाने का दिखाया गया है. नमो ड्रोन दीदी योजना की आड़ में किसके धंधे की हिमायत की जा रही है, ये किसी से छिपा नहीं है. ड्रोन निर्माण के क्षेत्र में अडानी समूह को प्रोत्साहन किसने दिया, ये सभी को मालूम है.
किसानों को मोदी की गारंटी छल-छद्म से ज्यादा कुछ नहींं. किसानों की आय़ दोगुनी करना तो दूर, मोदी राज में उनका कर्ज दोगुना हो गया है. वहीं, एमएसपी की कानूनी गारंटी देने का वचन दे कर जुबान से पलटने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं नरेंद्र मोदी. जुमला पत्र में सिर्फ समय-समय पर एमएसपी बढ़ाने का वादा किया गया है.
किसान सम्मान निधि 6 हजार रुपए साल दे कर अन्नदाता का मान खरीद लिया है. गरीबी की मार से जूझ रहे छोटे और सीमांत किसानों की लाचारी का ये सबसे बड़ा मज़ाक है. जबकि एमआरपी पर हर सामान नकद खरीद कर खेती करने वाले किसान को भी वाजिब दाम लेने का हक क्यों नहीं . वहीं, कांग्रेस ने स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट के मुताबिक एसएसपी को कानूनी गारंटी दी है.
बीजेपी के जुमला पत्र में कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर और न्यूट्री हब बनाने की गारंटी से साफ है कि जुमला पत्र भी कॉर्पोरेट हॉउस की निगरानी में बनाया गया है. इसमें कृषि को निजी क्षेत्र को बेचने की हसरत अगले पांच साल में पूरी कर लेने का भरोसा भी दिख रहा है.
इस दिखावटी जुमला पत्र में असल मुद्दे समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दा है. जिससे चुनाव के वक्त देश में विभाजनकारी राजनीति का गंदा खेल खेला जाएगा. मोदी सरकार को लगता है कि सांप्रदायिक मुद्दा उछाल कर वो लोगों को ध्यान बंटाने में कामयाब हो जाएंगे.
औऱ सबसे बड़ी बात बीजेपी के जुमला पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संविधान को खत्म करने की साजिश है. अबेडकर जयंती पर बीजेपी सांसद ने 400 पार के नारे में छिपी संविधान बदलने के लिए नीयत का खुलासा कर दिया. इसीलिए एक देश, एक चुनाव को भी मोदी ने गारंटी बना दिया है. दरसल 2024 के आम चुनाव में बीजेपी और मोदी को हार सामने खड़ी नज़र आ रही है.
अच्छे दिन का सपना फिर पांच साल के लिए बढ़ाया जा रहा है. 2014 में अधूरे वायदे को 2019 तक और अब 2043 तक के लिए टाल दिया गया है. बीजेपी समझती है कि विश्व भर में रामायण उत्सव के आयोजन की गारंटी से देश की धर्मभीरू जनता खुश हो जाएगी और 2036 में ओलंपिक की मेजबानी की बात सुन कर भोली- भाव प्रवण जनता फूली नहीं समाएगी.
लेकिन इस बार जनता बदलाव के लिए वोट करेगी.