इलेक्टोरल बांड को लेकर कांग्रेस का दिलचस्प प्रचार अभियान
इलेक्टोरल बांड के जरिए दुनिया के सबसे बड़े वसूली रैकेट को लेकर कांग्रेस ने एक प्रचार अभियान तैयार किया है. जिसमें चंदा दो-धंधा लो के बिजनेस मॉडल को उजागर करते हुए मोदी सरकार के इस वसूली का रेट कार्ड बनाया है. पेपीएम नामके इस प्रचार अभियान की वजह से लोगों में दुनिया के सबसे बड़े हफ्ता वसूली रैकेट को लेकर लोगों में दिलचस्पी बढ़ती जा रही है.
पेपीएम नामके इस चुनावी अभियान में कहा है कि पर्यावरण क्लियरेंस के लिए 110 करोड़ रुपए, राष्ट्रीय राजमार्ग के ठेके के लिए 176 करोड़ रुपए, सैटेलाइट स्पैक्ट्रम आवंटन के लिए 140 करोड़ रुपए, कोयला खदान के 135 करोड़, रिजर्व बैंक की नीति में बदलाव के 60 करोड़, ईडी-सीबीआई से प्रोटेक्शन के लिए 56 करोड़, मेट्रो रेल का ठेका-40 करोड़, और नकली दवाई को मंजूरी के लिए 40 करोड़ का रेट बताया गया है.
कांग्रेस ने अपने प्रचार अभियान के पोस्टर में ये भी बताया है कि इन कामों के लिए प्रीपेड और पोस्ट पे़ड सेवाए भी उपलब्ध हैं. साथ ही ये भी बताया है कि रेट और सेवाओं के लिए इलेक्टोरल बांड के साथ नजदीक के बीजेपी कार्यालय को संपर्क करें
अपने इन पोस्टरों में स्कैन बार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगाई गई है. साथ ही इसमें मतदाताओं को जानकारी देते हुए बताया गया है कि 15 फरवरी,2024 को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इलेकक्टोरल बांड को अवैध घोषित कर दिया था. वहीं एक टीवी इंटरव्यू में प्रधानंमंत्री मोदी ने दुनिया के सबसे बड़े वसूली रैकेट के लिए जिम्मेदार इलेक्टोरल बांड की खुद जिम्मेदारी ली है.
इस प्रचार अभियान के मुताबिक बीजेपी को इलेक्टोरल बांड के जरिए 8251 करोड़ रुपए का चुनावी चंदा मिला है. जिसमें से 2,004 करोड़ का चंदा प्री पेड और पोस्ट पेड स्कीम के तहत ईडी,इंकम टैक्स और सीबीआई की मदद से 3,60,265 करोड़ के धंधे के बदले में जुटाया गया है.
मजे की बात ये है कि प्रधानमंत्री मोदी एक तरफ इस अवैध स्कीम के मास्टरमाइंड होने की बात कबूल रहे हैं और ये भी बता रहे हैं कि उनकी स्कीम की वजह से आज चंदा देने और चंदा लेने वालों के नाम सामने आए हैं. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी झूठ बोल रहे हैं, पिछले छह सालों से उनकी सरकार ने दानदाताओं के नाम छिपा कर रखे हैं. हैरानी की बात ये है कि इलेक्टोरल बांड के दानदाताओं के नाम गोपनीय रखने की शर्त पर ये स्कीम तैयार की गई थी. ऐसे में सवाल ये भी है कि इन जानकारियों को सरकार ने अपने पास रखा ही राजनीतिक इस्तेमाल के लिए छिपा कर रखा है. सुप्रीम कोर्ट की लगातार फटकार के बाद जा कर एसबीआई ने इन जानकारियों को साझा किया है.