वाह निर्वाचन आयोग, आयोग का भी जवाब नहीं, जो खत उसे लिखे, उसके पास उनका जवाब नहीं, जो उसे नहीं लिखे उस खत का जवाब दे दिया. लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने जवाब से लाजवाब कर दिया.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर हैरानी जताई है, पूछा है कि जो पत्र हमने इंडिया गठबंधन के साथियों को लिखा, उसका जवाब आपने दे दिया!! ताज्जुब ये है कि जो हमने पहले अपने शिकवे-शिकायतों को लेकर जो इतनी खतो-किताबत की, उसमें से आपने किसी खत को भी जवाब के काबिल नहीं समझा.
आईए समझते हैं कि आखिर माजरा क्या है.
दरसल कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने इंडिया गठबंधन के साथियों को कुल रजिस्टर्ड वोटरों की लोकसभावार, विधानसभावार और पोलिंग बूथवार आंकड़े सार्वजनिक करने को लेकर राय-मशविरे के लिए पत्र लिखा था. खड़गे ने अपने सहयोगियों को लिखे पत्र में कहा कि संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार निर्वाचन आयोग की साख पर असर पड़ा है.
उन्होंने अपने पत्र में पहले और दूसरे चरण के मतदान केे बाद वोट प्रतिशत जारी किए जाने में देरी पर सवाल उठाया था.
खड़गे ने अपने पत्र में तीसरे चरण के मतदान के लिए फायनल रजिस्टर्ड वोटरों की कुल संख्या भी जारी किए जाने की मांग उठाई थी. क्योंकि कुल पंजीकृत मतदाताओं की संख्या जाने बगैर वोटिंग प्रतिशत की जानकारी बेमानी है.
इंडिया गठबंधन को लिखे इस सार्वजनिक पत्र पर चुनाव आयोग ने तीखी प्रतिक्रिया दी.
गोदी मीडिया ने देश भर को बताया है कि चुनाव आयोग ने कांग्रेस अध्यक्ष के पत्र की आलोचना की है. आयोग ने कहा है कि कांग्रेस वोटर टर्न ऑउट को लेकर बेबुनियाद आरोप लगा रही है और मतदाताओं को भ्रमित करने की कोशिश कर रही है. लेकिन गोदी मीडिया ने चुनाव आयोग से खुद सवाल नहीं किए.
हैरानी की बात ये है कि खड़गे के पत्र का ही असर था कि तीसरे चरण के मतदान के चार दिन बाद आयोग ने कुल मतदान प्रतिशत के आंकड़े जारी कर दिए हैं. तीसरे चरण में फायनल वोटर प्रतिशत 65.68 फीसदी बताया गया है. जबकि 7 मई को मतदान के बाद सात बजे ये आंकड़ा 64.40 फीसदी थी. यानि मात्र 1.28 फीसदी की बढ़ोत्तरी अंतिम वोटर प्रतिशत में नज़र आ रही है.
वरना चुनाव आय़ोग ने पहले चरण के 19 अप्रेल को हुए मतदान के 11 दिन बाद और दूसरे चरण, 26 अप्रेल को वोटिंग के चार दिन बाद मतदान प्रतिशत जारी किए थे. वहीं, पहले 24 घंटे के भीतर ये आंकड़े जारी कर दिए जाते थे. इसे लेकर लोगों ने मीडिया और सोशल मीडिया पर भी सवाल उठाए हैं.
10 मई को इंडिया गठबंधन के नेताओं ने चुनाव आयोग से मिल कर पहले दो चरणों के फायनल वोटर टर्न ऑउट में 5.5 फीसदी की बढ़ोत्तरी को लेकर सवाल उठाए हैं. इंडिया के मुताबिक 2019 में फायनल वोटर टर्न ऑउट में हद से हद दो से ढाई फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई थी.
यही नहीं, 2019 तक चुनाव आयोग फायनल वोटर टर्न ऑउट की संख्या भी जारी करता रहा है, जबकि इस बार सिर्फ वोटिंग प्रतिशत बताया जा रहा है.
विपक्ष के नेताओं ने 11 दिन के विलंब को लेकर भी आयोग को आगाह किया.
चुनाव आयोग की निष्पक्षता एक बार फिर सवालों के घेरे में है. वो अब भी कुल पंजीकृत मतदाताओं की संख्या बताने के बजाय खड़गे के बहाने देश के जागरूक मतदाताओं को धमकाने की कोशिश कर रहा है.
जवाब में मल्लिकार्जुन खड़गे ने चुनाव आयोग को लिखे पत्र में कहा कि चुनाव आयोग नागरिकों के सवाल पूछने के अधिकार का सम्मान करता है, वहीं दूसरी तरफ उनको सलाह देने में एहतियात बरतने की धमकी भी दे रहा है. खड़गे ने आगे लिखा है कि ये काबिले तारीफ है कि आयोग निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से चुनाव कराने की अपनी जिम्मेदारी को समझता है. लेकिन सत्तारूढ़ दल के नेताओं के सांप्रदायिक और जातिवादी भाषणों के खिलाफ कार्रवाई करने को आयोग अपनी प्राथमिकता नहीं मानता.
अपने पत्र में खड़गे ने जोर दे कर कहा है कि लोकसभा क्षेत्रवार और राज्यवार कुल पंजीकृत मतदाताओं की संख्या बताना कानूनी तौर पर भले ही ज़रूरी ना हो लेकिन ये एक तथ्य है. देश के मतदाता मतदान करने वाले कुल वोटरों की संख्या चुनाव आयोग से सीधे जानना चाहते हैं.
खड़गे दुख जताते हुए कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि आपने मेरे पत्र के उन पंक्तियों का जिक्र नहीं किया, जिसमें लिखा था कि चुनाव आयोग की स्वायत्तता और लोकतंत्र की रक्षा हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है.
जाहिर है कि भारत के निर्वाचन आयोग ने काम से ज्यादा ज्ञान देना शुरू कर दिया है.
आयोग की निष्पक्षता का सच दिन में चार बार सबके सामने आ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा हर दिन अपनी चुनावी रैली में खुल कर सांप्रदायिकता फैला रहे है. हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण की कोशिश में पूरी शिद्दत के साथ जुटे हुए हैं.
इंडिया गठबंधन मोदी और शाह के इस तरह के बयानों को लेकर 11 शिकायतें चुनाव आयोग के सामने दर्ज करा चुका है.
वहीं, चुनाव आयोग कांग्रेस के न्यायपत्र को ले कर पीएम मोदी की झूठी सांप्रदायिक बयानबाजी को लेकर भी खामोश है. मछली,मांस,मटन,मुसलमान से लेकर मंगलसूत्र के जरिए भी कांग्रेस को निशाना बनाया गया.
चुनाव आयोग की हैसियत मोदी सरकार की पिट्ठू संस्था की तरह हो गई है, जिसमें इतनी हिम्मत नहीं कि वो पीएम मोदी के बयान पर जेपी नड्डा के बजाय सीधे नरेंद्र मोदी को कारण बताओ नोटिस जारी कर सके.
पीएम मोदी के सांप्रदायिक बयानों की शिकायतों को नज़र अंदाज ना कर पाने की सूरत में चुनाव आयोग ने कम से कम दो मौकों पर बीजेपी अध्य़क्ष को नोटिस जारी किया है.
योगी आदित्यनाथ के भड़काऊ भाषणों पर तो अपने ओंठ सिल लिए हैं. चुनाव आयोग को दी गई शिकायतों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई.
सच्चाई तो ये है कि आचार संहिता लागू होने के बाद कांग्रेस और इंडिया गठबंधन ने राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के नेताओं के खिलाफ संहिता के उल्लंघन की 59 शिकायतें दर्ज कराई हैं.
अगर इन शिकायतों का विश्लेषण किया जाए तो हैरान करने वाली जानकारी सामने आती है.
19 अप्रेल,2024 ,पहले चरण के मतदान से पहले 19 शिकायतों में से 10 पर चुनाव आयोग ने कार्रवाई की. लेकिन कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की गई,
इसी चरण में मोदी के सांप्रदायिकता उकसाने वाले बयान पर उनके खिलाफ नोटिस जारी न करके बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा को नोटिस जारी किया गया.
26 अप्रेल, दूसरे चरण तक 13 से ज्यादा शिकायतों में से सिर्फ 6 पर संज्ञान लिया गया, कार्रवाई भी सिर्फ दो मामलों पर की गई, वो भी बेहद हल्की-फुल्की.
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भड़काऊ भाषणों पर तो चुनाव आयोग ने चुप्पी साध ली.
7 मई को तीसरे चरण के लिए चुनाव प्रचार को लेकर 16 शिकायतों में से 8 पर कोई कार्रवाई अभी तक नहीं हुई.
20 मई को होनेे वाले चौथे चरण के लिए चल रहे प्रचार में 11 शिकायतें कांग्रेस ने दर्ज कराई हैं. जिस पर कार्रवाई होना बाकी है.
10 मई को इंडिया गठबंधन के प्रतिनिधि मंडल ने आयोग से मुलाकात कर उनसे इन शिकायतों पर गौर करने की गुजारिश की है.
अब प्रधानमंत्री मोदी हर चुनावी रैली में उकसावे वाले भाषण कर रहे हैं, लेकिन चुनाव आयोग बहरे होने का नाटक कर रहा है.
तकलीफ की बात ये है कि अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में पुलिस-प्रशासन खुल कर मतदान कम करने के लिए मतदाताओं को धमका रहा है, लेकिन चुनाव आयोग इसे चुनाव प्रक्रिया में बाधा नहीं मानता.
बीजेपी ने चुनाव आचार संहिता उल्लंंघन के अनोखे तरीके इजाद किए है.
सेना और भगवान की तस्वीरों के साथ पीएम मोदी के होर्डिंग, केंद्रीय एजेंसियों के राजनीतिक इस्तेमाल,अर्ध सैनिक बलों औऱ प्रशासनिक अधिकारियों का प्रचार में इस्तेमाल, शपथ पत्र में झूठी जानकारी दिए जाने की शिकायतें सामने आईं.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और उनके परिजनों पर निजी हमले, भद्दी और अपमानजनक टिप्पणियां तो बीजेपी की राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है.
आचार संहिता लागू होने के बावजूद सोशल मीडिया पर सरकारी विज्ञापन जारी करना, प्रधानमंत्री कार्यालय का खुद मैसेजिंग एप और सोशल मीडिया एप पर बल्क मैसेजिंग करना, मेट्रो रेल में मोदी के विज्ञापन न्यू नॉर्मल बन चुका है.
बीजेपी के कई प्रत्याशी खुले आम संविधान बदलने की बात कह रहे हैं. लेकिन चुनाव आयोग बीजेपी के संविधान विरोध को लेकर कोई ऐतराज नहीं है.
इससे पहले इंडिया गठबंधन ने 100 फीसदी वीवीपैट कॉउंटिंग की मांग को लेकर चुनाव आयोग से मिलने के लिए 11 बार खत लिखे लेकिन चुनाव आयोग टस से मस नहीं हुआ.
बाद में मामला सु्प्रीम कोर्ट पहुंचा, वहां अदालत ने देश की संवैधानिक संस्था पर भरोसा जता कर कामकाज का तरीका सुुधारने की सलाह दी. लेकिन अदालत को जब हकीकत मालूम होगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी.
पीएम मोदी ने पहले ही कानून बना कर देश के मुख्य न्यायधीश को चुनाव आयुक्तों की चयन प्रक्रिया से बाहर कर दिया.
अब लोकतंत्र भगवान भरोसे है. चुनाव आयोग देश के लोकतंत्र को खत्म करने की साजिश में शामिल नज़र आ रहा है.
मल्लिकार्जुन खड़गे ने सही कहा कि चुनाव आयोग की स्वायत्तता और लोकतंत्र की रक्षा हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है.
लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे के पत्र की आखिरी लाइन चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सबसे बड़ा सवाल खड़ा करती है- जिसने चुनाव आयोग को लाजवाब कर दिया है.
“कांग्रेस पार्टी चुनाव आयोग के साथ खड़ी है. आयोग की स्वायत्तता और उसकी दृढ़ता के लिए उसके साथ खड़ी है,
अब आयोग के अधिकारियों को तय करना है कि वो कहां खड़े हैं.”