पहले वोटों की चोरी, फिर सीनाजोरी.. चुनाव आयोग की कार्यशैली को लेकर यही धारणा बनती जा रही है. कांग्रेस ने निर्वाचन आयोग को याद दिलाया है कि वह एक संवैधानिक संस्था है. किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल की शंकाओं का समाधान करना उसका दायित्व है. कांग्रेस ने चुनाव आयोग को बता दिया है कि ऐसा न होने पर आयोग के खिलाफ अदालत का दरवाज़ा खटखटाने का विकल्प खुला हुआ है.
कांग्रेस ने तीन पेज का पत्र लिख कर निर्वाचन आयोग के जवाब पर अपना जवाब दिया. चुनाव आयोग ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में मतगणना में गड़बड़ी से जुड़ी कांग्रेस की शिकायत 29 अक्टूबर को खारिज कर दी थी. 13 अक्टूबर को कांग्रेस के 1600 पेज की शिकायत के जवाब में चुनाव आयोग ने आरोपों का निराधार, गलत, और तथ्यहीन बताया था.
आयोग ने कहा था मतदान और मतगणना जैसे संवेदनशील मय के दौरान गैर जिम्मेदाराना आरोप लगाने से अशांति और अराजकता पैदा हो सकती है. आयोग ने पिछले एक साल में 5 मामलों का हवाला दे कर कांग्रेस को नसीहत दी थी कि आरोप लगाने में सावधानी बरतें और चुनावी प्रक्रिया पर आदतन हमला करने से बचें.
चुनाव आयोग के इस निराशाजनक और अपमानजनक भाषा और तेवर पर कांग्रेस ने कड़ी आपत्ति जताई. अपने पत्र में आयोग को जबाव देते हुए लिखा है कि
‘सबसे पहले ईसीआई ने उठाए गए मुद्दों पर हमारे साथ जुड़ने में अपनी कृपा की ‘असाधारण’ प्रकृति बताते हुए अपना उत्तर प्रस्तुत किया. हम नहीं जानते कि माननीय आयोग को कौन सलाह दे रहा है या मार्गदर्शन कर रहा है, लेकिन ऐसा लगता है कि आयोग भूल गया है कि यह संविधान के तहत स्थापित एक निकाय है और इसे कुछ महत्वपूर्ण कार्यों – प्रशासनिक और अर्ध-न्यायिक दोनों के निर्वहन की जिम्मेदारी सौंपी गई है. यदि आयोग किसी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी को सुनवाई की अनुमति देता है या उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों की सद्भावना से जांच करता है तो यह कोई ‘अपवाद’ या ‘भोग’ नहीं है’
कांग्रेस ने अपने पत्र में अदालत का सहारा लेने का संकेत दिया है और कहा है कि
“यह एक कर्तव्य का प्रदर्शन है जिसे करना आवश्यक है. यदि आयोग हमें सुनवाई देने से इनकार कर रहा है या कुछ शिकायतों पर शामिल होने से इनकार कर रहा है, तो कानून चुनाव आयोग को इस कार्य का निर्वहन करने के लिए मजबूर करने के लिए उच्च न्यायालयों के असाधारण क्षेत्राधिकार का सहारा लेने की अनुमति देता है.”
2024 के आम चुनाव में पीएम मोदी ने 173 चुनावी भाषण दिए. ह्यूमेन राइट्स वॉच ने इन भाषणों का विश्लेषण करके बताया कि इनमें से सिर्फ 63 भाषण ऐसे थे जिनमें सांप्रदायिकता का पट नहीं था, वरना 110 भाषण अल्पसंख्यकों से नफरत और घृणा से भरे हुए थे.कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री एमित शाह के चुनावी आचार संहिता के बारंबार उल्लंघन का मुद्दा भी उठाया और कहा कि
“हम इस बात पर प्रकाश डालेंगे कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के खिलाफ सौ से अधिक शिकायतों में से ईसीआई ने शून्य शिकायतों पर कार्रवाई की है, जबकि हमारे पार्टी अध्यक्ष और पूर्व पार्टी अध्यक्ष को उनके कार्यों और भाषणों के लिए जवाबदेह ठहराया है. हम यह बताना चाहेंगे कि कैसे चुनाव आयोग ने कभी भी इस संबंध में एक पूर्व आयुक्त द्वारा असहमति नोट प्रकाशित नहीं किया, बल्कि इसे सक्रिय रूप से दबा दिया.”
पारदर्शिता का दावा करने वाले चुनाव आयोग को आईना दिखाते हुए कांग्रेस ने कहा कि
“हम यह बताना चाहेंगे कि ईसीआई ने वीवीपैट सत्यापन संख्या में पारदर्शिता के लिए कोई कदम नहीं उठाया। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट को आदेश देना पड़ा था. हम ईसीआई को उपरोक्त तथ्यों की जांच करने की चुनौती देते हैं क्योंकि उसे लगता है कि कांग्रेस की आशंकाएं काल्पनिक बातों पर आधारित हैं. हमारे पास ऐसे कई उदाहरण हैं, उन्हीं 2-3 उदाहरणों से कहीं अधिक जिन्हें ईसीआई दोहराने पर अड़ा हुआ है”
दरअसल हरियाणा में एक चरण में 5 अक्टूबर को चुनाव हुए और 8 अक्टूबर को नतीजें आए. मतगणना के समय कांग्रेस के कई प्रत्याशियों ने शिकायत की थी. तब कांग्रेस नेता और मीडिया और प्रचार प्रभारी पवन खेड़ा ने कहा था कि ये अजीब है कि कुछ ईवीएम 99 फीसदी बैटरी क्षमता पर क रही थी, उनमें कांग्रेस प्रत्याशी पिछड़ रहे थे, जबकि जो ईवीएम 60 से 70 फीसदी बैटरी क्षमता पर काम कर रही थीं, उनमें कांग्रेस आगे चल रही थी. यही पैटर्न पोस्टल बैलेट की गणना के दौरान भी देखने को मिला था. कांग्रेस ने 13 अक्टूबर को चुनाव आयोग को शिकायत की थी. श्री खेड़ा ने बताया कि करीब 20 सीटों पर मतगणना के दौरान ईवीएम में गड़बड़ी पाई गई. कांग्रेस ने ये भी कहा था कि जांच होने तक मशीनों को सील और सुरक्षित रखा जाए.
लेकिन चुनाव आयोग आरोपों को निराधार बता रहा है और भ्रम फैलाने का आरोप लगा रहा है. कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश का कहना है कि
‘चुनाव आयोग ने अपने उत्तर के पैरा 8 में जिस ‘पैटर्न’ की पहचान करने की मांग की है, वह कपटपूर्ण है. उठाए गए अधिकांश मुद्दे आदर्श आचार संहिता की घोषणा से लेकर चुनावों के समापन तक की छोटी अवधि से संबंधित हैं. वोटो की गिनती बात करें तो, कभी-कभी परिणाम घोषित होने के बाद तक स्थिति स्पष्ट होती है और कभी-कभी अन्य बूथों से जानकारी की तुलना होने के बाद ही स्पष्ट होती है. यदि हम बुरे विश्वास वाले अभिनेता होते, तो हम शुरुआत में कभी भी चुनाव आयोग के साथ नहीं जुड़ते. हम अपनी शिकायतों का बड़ी मेहनत से दस्तावेजीकरण नहीं करते.’
जिन 20 सीटों पर गड़बड़ियों की शिकायत की गई थी- पानीपत शहर, बल्लभगढ़, फरीदाबाद एनआईटी,नारनौल,करनाल,डबवाली, रेवाड़ी,होडल,कालका, इंद्री, बड़खल,नलवा, रानिया, पटौदी, पलवल,बरवाला,उचाना कलां,खरौंडा, कोसली, और बादशाहपुर
मतगणना में धांधली के संदेह में कांग्रेस ने हरियाणा चुनाव नतीजों को अप्रत्याशित और अस्वीकार्य बताया था.
सभी राजनीतिक दल पिछले कई चुनाव में ईवीएम बदलने की आशंका जताते रहे हैैं. मध्य प्रदेश, और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में ईवीएम को लेकर कांग्रेस नेताओं ने सवाल उठाए थे.
एडीआर यानि एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने चुनाव 2024 के चुनावी आंकड़ों की पड़ताल करके बताया था कि 538 सीटों पर 5,89,691 मतों का अंतर पाया गया है. इससे पहले वोट फॉर डेमोक्रेसी नामक संस्था ने भी चुनाव आयोग की कार्यशैैली पर सवाल उठाए थे. अपनी पड़ताल में संस्था ने बताया था कि मतदान के एक हफ्ते बाद अंतिम मतदान प्रतिशत 6 से 8 फीसद बढ़ने से बीजेपी को करीब 79 सीटों पर फायदा हुआ.
उस समय भी कांग्रेस ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर अंतिम मतदान प्रतिशत में उछाल को लेकर अपना संशय जाहिर किया था. लेकिन चुने गए चुनाव आयोग ने शंकाओं को निर्मूल बताया था.
ऐसे में विपक्षी दलों के पास सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने का ही विकल्प बचा है.
महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव में भी मतदाता सूचियों में भारी हेरफेर के आरोप लग रहेे हैं. यहां तक कि प्रत्येक बूथ पर अधिकतम मतदाता संख्या 1200 से बढ़ा कर 1500 किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जा चुकी है.
विपक्ष को वीवीपैट की संख्या बढ़ाने और सौ फीसदी गणना करवाने से ईवीएम को लेकर संदेह कम होने की उम्मीद थी. लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निष्पक्ष मानते हुए वीवीपैट संबंधी याचिकाएं खारिज कर दी थीं. चुनाव को लेकर कांग्रेस नेता प्रिया मिश्रा और विकास बंसल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, लेकिन अगले ही दिन अदालत ने याचिका खारिज कर दी थी. ऐसे में सवाल ये उठ रहे हैं कि कांग्रेस क्या अदालत का दरवाजा खटखटाएगी? और क्या सुप्रीम कोर्ट कांग्रेस को न्याय दे पाएगी?
या फिर ऐसे ही देश में संसदीय लोकतंत्र खत्म हो जाएगा !!!