संविधान, आरक्षण और लोकतंत्र: समर शेष है..

                                                               2024  के आम चुनाव अपने आप में विशिष्ट हैं. ये भारत के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा चुनाव है जब इंडिया गठबंधन ने सामाजिक न्याय को व्याव्हारिक धरातल पर उतारने के रोड मैप के साथ सत्तारूढ़ दल को चुनौती दी है.

कांग्रेस ने अपने न्यायपत्र 2024 में भारतीय संविधान के दर्शन को आधार बनाया है. भारतीय संविधान में स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व, न्याय, विधि का शासन, विधि के समक्ष समानता, लोकतांत्रिक प्रक्रिया और धर्म, जाति, लिंग और बगैर किसी भी तरह के भेदभाव के सभी व्यक्तियों के लिए गरिमामय जीवन का अधिकार की व्यवस्था की गई है. दुनिया भर में तत्कालीन मुक्ति आंदोलनों,भारतीय परंपराओं और उनके आदर्शों को समाहित करते हुए डॉ. बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर ने  संविधान का मसौदा तैयार किया. संविधान का आधार तय करने में लगभग ढाई साल संविधान सभा में विचार-मंथन हुआ.

ये देखना हर भारतीय के लिए बहुत दिलचस्प होगा कि  संविधान सभा के संवाद ने किस तरह भावी भारत का रूप गढ़ा. महात्मा गांधी के आदर्श, पं.जवाहर लाल नेहरू की भविष्य दृष्टि और डॉ. अंबेडकर की समाज दृष्टि ने देश की बुनियाद रखी. जिसके कारण भारत की दुनिया भर में एक अलग पहचान बनी.

लेकिन प्रतिगामी शक्तियों ने निर्माण के समय से ही संविधान को बदनाम करने का षड़यंत्र शुरू कर दिया था. समता,समानता और बंधुत्व को धरातल पर उतरनेे देना इन शक्तियों को कभी मंजूर नहीं था. वर्चस्व रखने वाले वर्ग ने हर संभव विरोध किया. चाहे हिंदू समाज को कुरीतियों से  निकाल के लिए हिंदू कोड बिल का मामला हो या अवर्ण समाज को अधिकार और आरक्षण देने का मुद्दा. 

बीजेपी के वैचारिक पितरों ने तो संंविधान का सबसे पहले विरोध इस आधार पर किया कि ये किसी दलित का लिखा हुआ है. फिर कहा गया कि इसमें भारतीयता नहीं है. ये आयातित है. मनुसंहिता आधारित समाज व्यवस्था को आदर्श  मानने वाला ये वर्ग समता,समानता और न्याय देने वाले संंविधान के खिलाफ लगातार विमर्श गढ़ता रहा.

2014 में सत्ता मिलने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी ने मुखर हो कर संविधान को खत्म करने की साजिश शुरू कर दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार विवेक डेबरॉय ने संंविधान को बदलने की जरूरत पर बयान दे डाला. भारी विरोध होने पर बयान से किनारा कर लिया. वहीं, भारत के पूर्व मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई ने भी संसद में बुनियादी ढांचे पर बहस को लेकर भावभूमि बनाने की कोशिश की. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत भी लगभग हर चुनाव में संविधान को लेकर दो तरह की भाषा का इस्तेमाल करते रहे. संविधान में बदलाव या समीक्षा की बात कह कर सवर्ण जातियों से अपनापन दिखाते रहे हैं, वहीं अपने बयान को गलत तरीके से पेश करने की बात कह कर दलिच,वंचित और पिछड़े वर्ग को बहलाते रहे हैं.

देश का पूंजीपति वर्ग भी संसाधनों पर एकाधिकार और राष्ट्रीय संपत्तियों को औने-पौने में हथियाने के लिए हमेशा से लालायित रहा है. इस साधन संपन्न घरानों को राष्ट्रीय प्रतिष्ठान, उपक्रम और कौड़ियों के मोल बेच कर  भारतीय जनता पार्टी ने रसद हासिल की. इलेक्टोरल के जरिए दुनिया का सबसे बड़ा वसूली रैकेट चला कर दुनिया की सबसे अमीर राजनीतिक पार्टी बन गई बीजेपी. 

सरकारी उपक्रमों के निजीकरण और सरकारी सेवाओं में कमी कर आरक्षण को निष्प्रभावी बनाने का खेल शुरू हुआ. तीस लाख नौकरियां बीजेपी के चार सौ पार के लक्ष्य को ध्यान में रख कर खाली रखी गई.

लेटरल एंट्री के जरिए प्रशासन में अपने स्वयंसेवकों को बिठाना शुरू कर दिया. संवैधानिक संस्थाओं पर भी जिस तरह से कब्जा कर लिया गया है, ये किसी से छिपा नहीं है. 

आरक्षण खत्म करना क्रोनी और संसाधन संपन्न समाज दोनों के हित में रहा है. कमजोर के खिलाफ ताकतवर लोगों का गिरोह बना कर लूट का इको सिस्टम तैयार कर लिया गया.

राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के जरिए देश के नब्बे फीसदी वंचित समाज को धोखे में रख कर संविधान को खत्म करने की व्यूह रचना कर डाली. 

अंग्रेजों की तरह उनके मुखबिरों की नस्लें मुल्क को नफरत का बाज़ार बना रही हैं. कभी हिंदू-मुसलमान तो कभी सिक्ख-ईसाई, दलित-आदिवासी धमकाए-डराए जा रहे हैं.

जागरूकता के कारण संविधान की हत्या बगैर आरक्षण खत्म करना संभव नही

संविधान को बदलने के लिए लोकतंत्र को खत्म करना भी ज़रूरी समझा जा रहा है. 

देश में विरोधियों के दमन के लिए कड़े नए आपराधिक कानून एक जुलाई से लागू होने जा रहे हैं.

विरोधियों की पहचान, गतिविधि और उनकी सोशल मीडिया और फोन पर संंवाद की निगरानी के लिए टेलकॉम कानून को रिपैकेज कर पारित कर दिया गया.

चुनाव आयोग की नियुक्ति समिति से देश के मुख्य न्यायधीश को हटा दिया गया. आयोग सांप्रदायिक भाषणों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने को तैयार नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट के डर से वोटरों के आंकड़े सार्वजनिक किए गए, लेकिन फॉर्म 17-सी अपलोड ना करने पर आमादा है.  

निवर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब भी अपने पद का दुरुपयोग करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं.

पहली बार चुनाव के दौरान भारतीय थल सेना प्रमुख की सेवा विस्तार का आदेश जारी किया गया है.

मीडिया को पूरी तरह खरीद ही नहीं लिया गया, बल्कि बीजेपी के आईटी सेल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है.

सरकारी एजेंसियों, ईडी, सीबीआई और इंकम टैक्स 90 फीसदी से ज्यादा प्रतिपक्ष पर कार्रवाई कर रही है. चुनाव के बीच में प्रतिपक्ष के प्रत्याशियों और मुख्यमंत्रियों की गिरफ्तारी की जा रही है,  अभियोजन पक्ष विरोधियों के दमन के मकसद से कानूनी पेचीदिगियों का इस्तेमाल कर रहा है.

अल्पसंख्यकों को वोट डालने से हतोत्साहित करने के लिए पुलिस प्रशासन कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. 

तानाशाही को सही ठहराने के लिए  पीएम मोदी ने खुद को ईश्वर का प्रतिनिधि बताना शुरू कर दिया है.

जाहिर है कि मोदी किसी कीमत पर सत्ता छोड़ने को तैयार नहीं हैं.

दरसल नरेंद्र मोदी की सत्ता की हवस और 22 अमीर घरानों की देश की लूट की ललक के लिए लोकतंत्र सबसे बड़ी अड़चन है.

इस वर्ग को रक्षा, उड्डयन, रेल, टेलीकॉम, मीडिया, स्वास्थ्य, बीमा, कृषि और बुनियादी ढांचे जैसे हर मुनाफे वाले क्षेत्र पर कब्जा चाहिए. और मोदी को हर कीमत पर सत्ता.

वहीं सामाजिक औऱ आर्थिक वर्चस्व वाला वर्ग अपनी संप्रभुता छोड़ने को तैयार नहीं. उसे हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की आड़ में संसाधनों पर नियंत्रण बरकरार चाहिए

कहा जाता रहा है कि देश को राजनीतिक आजादी भले ही मिली हो, लेकिन आर्थिक आजादी हासिल नहीं हो पाई है.

पिछले एक दशक में पूंजीवादी ताकतों ने सीना ठोक कर कहा- कर लो दुनिया मुट्ठी में.

पूंजीपतियों के हित में युवाओं का भविष्य दांव पर लगा दिया गया. चोर दरवाजे से आरक्षण को खत्म करने की कोशिशें तेज़ कर दी गईं.

ज़ाहिर है कि कठपुतली प्रधानमंत्री किसकी महफिल में मुजरा कर रहा है. 

कांग्रेस ने समझ लिया कि लोकतंंत्र, और संविधान का असली शत्रु कौन है.

और इनके निशाने पर क्यों है आरक्षण, संविधान औऱ लोकतंत्र.

संविधान ही आम आदमी की ढाल है. जिसकी वजह से संसाधनों, अधिकारों और सत्ता पर एकाधिकार करना मुश्किल हो रहा है. 

इंडिया गठबंधन ने सामाजिक न्याय की लड़ाई राष्ट्रीय स्तर पर छेड़ दी है. 

2024 के आम चुनाव सिर्फ एक लड़ाई है, बड़ी जंग अभी बाकी है.

समता, समता और न्याय पर आधारित भारतीय संविधान के राज के  लिए

22 घरानों के साथ नफरत की सियासत करने वालों से निर्णायक युद्ध

90 फीसदी लोगों के लिए  न्याय पत्र 2024 में हैं पांच न्याय

युवा, किसान, नारी और श्रमिकों की फौरी जरूरतों के लिए हैं 25 गारंटियां

लेकिन सबसे बड़ी लड़ाई हिस्सेदारी न्याय की है.

यही, भारतीय संविधान का दर्शन एवं आदर्श है 

यही देश की भावी राजनीति का आधार है,

 2024 के चुनाव तो सिर्फ तैयारी है, सामाजिक न्याय की लंबी लड़ाई जारी है.. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां यहां मौजूं है..

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ है, समय लिखेगा उनके भी अपराध

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