उत्तर-पूर्व दिल्ली से इंडिया गठबंधन प्रत्याशी कन्हैया कुमार को एक सिरफिरा माला पहनाने आगे बढ़ता है. कन्हैया सिर झुकाते हैं. वो माला पहनाने के बाद कन्हैया को थप्पड़ जड़ता है.
हालांकि खासी मरम्मत और मजम्मत होती है इस व्यक्ति की. ये सब सुनियोजित तरीके से हुआ, कथित तौर पर एक टीवी चैनल को इसकी बकायदा जानकारी थी, और उसके वीडियो में टीवी क्रू का सदस्य बुदबुदाता हुआ सुना जा सकता है कि “अब कन्हैया पिटेेगा, अब कन्हैया पिटेगा”. इस कैमरे ने शुरू से ही अपने कैमरे पर दोनों हमलावरों का प्रोफाइल रिकॉर्ड करना पहले ही शुरू कर दिया था.
बाद में मालूम होता है कि ये हमलावर बीजेपी प्रत्याशी मनोज तिवारी के करीबियों में से एक है. यही नहीं, इस आदतन अपराधी के खिलाफ गाजियाबाद पुलिस ने भी सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने का मामला दर्ज किया है. महंगी कारों और तरह-तरह की बंदूकों के साथ दक्ष चौधरी नामके इस शख्स ने कई रील्स और पोस्ट सोशल मीडिया में अपलोड की हुई हैं.
खुद को गौरक्षक बताने वाला ये दक्ष चौधरी एक वीडियो में एक पुलिस अधिकारी से पिस्तौल नचाते हुए बात करता नज़र आ रहा है.
यहां कन्हैया कुमार पर हमले पर चर्चा से पहले और भी सवाल खड़े होते हैं. अव्वल तो ये कि अगर दक्ष चौधरी कन्हैया पर हमला करने भेजा जाता है, तो इसके माने ये हैं कि मनोज तिवारी ने कन्हैया कुमार से हार मान ली है और उनसे टकराने के लिए अपनी विचारधारा से जुड़ा एक सिरफिरा भेजना पड़ता है.
यानि बीजेपी का वैचारिक प्रतिनिधि है दक्ष चौधरी..मनोज तिवारी तो मुखौटा है…
सच्चाई भी यही है कि मनोज तिवारी तो मुखौटा है. एक राजनीतिक भांड की तरह है, जिसे अश्लील गानों की समझ होने के बावजूद समाज के संस्कार और नारी सम्मान की समझ नहीं है.
देश की सबसे “संस्कारी” पार्टी बीजेपी ने उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया है जो ऐसे अश्लील गानों पर अभिनय करते हैं कि उन गानों के बोल यहां लिखना तक लाजिमी नहीं है.
अब दिल्ली समेत देश को तय करना है कि कन्हैया कुमार और दक्ष चौधरी में से उसे किसे चुनना है.
देश को तय करना है कि उनकी अगली पीढ़ी कैसी होनी चाहिए…
लोकतंत्र का नाटक करने वाली बीजेपी ने दक्ष जैसे गुंडे को विपक्षी उम्मीदवार को डराने केे लिए भेजा. एक आदतन अपराधी हमले के बाद कैमरे पर अपना घमंड से भरा बय़ान दर्ज कराता है और कन्हैया को टुकड़े-टुकड़े गैंग का सदस्य बताता है. साथ ही उन्हें प्रचार न करने की धमकी भी देता है.
वो सामंती सोच भी है, जो तर्क औऱ लोकतांत्रिक तरीके से जीतने के बजाय हिंंसा का सहारा लेने में विश्वास करती है.
ये युवा पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर देने वाली विचारधारा है. ये धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाले 82 साल के तर्कवादी गोविंद पानसरे और उनकी पत्नी की हत्या करने वालों की सोच है.एमएम कलबुर्गी, और अंधविश्वास के खिलाफ लड़ने वाले नरेंद्र दाभोलकर की हत्या करने वालों की रणनीति है.
ये वर्णभेद, मानवभेद करने वाली विचारधारा है. जो तिहत्तर फीसदी समाज को बराबर का सामाजिक सम्मान और आर्थिक संसाधन बांटने को तैयार नहीं है.
दक्ष चौधरी जैसे युवकों की ऊर्जा का उन्हीं की आने वाली पीढ़ियों के खिलाफ इस्तेमाल करने वाली विचारधारा है.
सांप्रदायिकता, घृणा पर आधारित ये सोच ऊपर से रामनामी लपेटती है और आर्थिक संसाधनों की लूट के लिए सियासत करती है.
अदालती कार्रवाई के बाद साफ हो गया कि कन्हैया औऱ दूसरे छात्रों को एक मीडिया हॉउस की मदद से फंसाया गया औऱ जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के खिलाफ अभियान चलाया गया.
कन्हैया पर ये हमला विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता और स्वतंत्र ज्ञान-विज्ञान पर विमर्श और चिंंतन पर हमले की दूसरी कड़ी भी है.
ऋग्वेद में कहा गया है- -‘आनो भद्रा कृत्वा यान्तु विश्वतः, यानि अच्छे विचारों को हर दिशा से आने दें, लेकिन घृणा की राजनीति जल्दी और ज्यादा असरदार होती है.
अतीत की कपोल-कल्पित कहानियों को आधार बना कर तर्क से दुश्मनी कर एक काल्पनिक खलनायक गढ़ना और उसके खिलाफ षड़यंत्र कर आम लोगों को जिंदगी के असल मुद्दों से भटकाए रखना एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है.
इस राजनीतिक विचारधारा को दुनिया में अपने ज्ञान-चिंतन और विमर्श के लिए दुनिया भर में पहचान बनाने वाले संस्थान नहीं चाहिए. उन्हें सवाल खड़े करने वाला कन्हैया नहीं, हथियार उठा कर डराने वाले दक्ष चौधरी चाहिए.
इन दक्ष चौधरियों को मालूम है कि इनके वैचारिक आकाओं के बच्चे विदेशी संस्थाओं में पढ़ रहे हैं. वहीं ये भटके हुए युवा फूंक कर चिलम, “हिंदू खतरे में हैं” का परचम लहराते घूमते हैं.
अब इनका इस्तेमाल भांडों को चुनाव जिताने के लिए किया जा रहा है.
कमोवेश यही काम वाराणसी, गांधी नगर, सूरत, इंदौर, और खजुराहो में भी हुआ. वहां नामांकन के पहले डरा-धमका लिया. निर्दलीय उम्मीदवारों के नामांकन खारिज करवा दिए गए.तो किसी को बीजेपी में शामिल करवा लिया गया. शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने तो बताया कि ये काम मतदाताओंं तक के साथ हो रहा हैै, जिन पर विपक्षी प्रत्य़ाशी को वोट देनेे का संदेह है, रात में ही उनकी उंगलियों में स्याही लगवाई जा रही है.
चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट के सामने मांनना पड़ रहा है कि लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं के अंतिम आकंड़ें मतदान खत्म होने के बाद उपलब्ध हो जाते हैं. लेकिन 48 घंटे में सार्वजनिक नही किए गए. चुनाव आयोग भी अपने नागरिकों से तानाशाह की तरह बर्ताव करने लगा है. विपक्षी नेताओं के सवाल उठाने पर उन पर चुनाव प्रक्रियां में बाधा डालने के आरोप लगा रहा है. चारों चरणों के जारी किए आंकड़ों के मुताबिक एक करोड़ से ज्यादा मतदाताओं का इज़ाफा हुआ है.
जाहिर है कि लोकतंत्र बचाने का चुनाव है. अतीत को लेकर गढ़ी झूठी कहानियों की बुनियाद पर देश पर दस साल से शासन कर रही बीजेपी और मोदी सरकार का सच सामने आ गया है.
सबसे बड़ा सच ये है कि गरीब-गरीब का नारा दे कर देश के नब्बे फीसदी लोगों के हक छीना जा रहा है. वहीं, एक फीसदी अमीरों के हाथों में देश के संसाधन 20-22 परिवारों को सौंपे जा रहे हैं,
बदले में इलेक्टोरल बांड से अब तक साढ़े आठ हज़ार करोड़ से ज्यादा चंदा लिया जा चुका है.
देश के संसाधनों की लूट के इस धंधे को धर्म की रामनामी पहना दी गई है.
नौजवान युवा गौरक्षा के नाम पर दक्ष चौधरी बन जाता है. उधर इलेक्टोरल बांड के जरिए मांस बेचने वाली कंपनियों से 52 करोड़ ले लिया जाता है.
गौभक्षकों से चंदा लेकर गौरक्षा का पाखंड किया जा रहा है. तो बहुत से गौरक्षक खुद भी गौ-तस्करी के आरोप में पकड़े जा रहे हैं.
ये वो भटके हुए युवा हैं, जिनके जरिए लोकतंत्र पर आक्रमण किया जा रहा है. संविधान पर हमले हो रहे हैं. इनसे और इनकी अगली पीढ़ियों से अच्छी शिक्षा, अच्छे रोजगार और बेहतर भविष्य के सपने छीने जा रहे हैं.
दरसल ये वर्णभेद और मानव-मानव में भेद करने वाली विचारधारा है, जिसका असली मकसद आरक्षण खत्म करना है.