भारतीय जनता पार्टी के लिए कांग्रेस की जाति जनगणना और हिस्सेदारी न्याय गले की फांस बन गया है. 2014 और 2019 के आम चुनाव और पिछले दस साल के सभी विधानसभा चुनाव में बीजेपी पिछड़ा राजनीति की चैंपियन बनी हुई थी. लेकिन सामाजिक न्याय को देश की राजनीति में केंद्र में लाने की कांग्रेस की रणनीति ने बीजेपी को बेनकाब कर दिया. मोदी ने खुद को पिछड़ा बताना बंद कर दिया और गरीब का मुखौटा लगा लिया. लेकिन कांग्रेस जाति जनगणना पर बीजेपी से सवाल पूछ रही है, तो पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जातिजनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने की चुनौतीृ दे दी है. हिस्सेदारी न्याय का संदेश जैसे-जैसे ज़मीन पर पहुंच रहा है, गरीबों, पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों का झुकाव कांग्रेस की तरफ बढ़ता जा रहा है.
बीजेपी की मुश्किल ये है कि वो ये कतई नहीं चाहती कि जाति-जनगणना चुनावी मुद्दा बनें. लिहाजा हिस्सेदारी न्याय को लेकर कांग्रेस के न्याय पत्र 2024 में कुछ हिस्सा उठा कर दुष्प्रचार तेज़ कर दिया है. संपत्ति के बंटवारे के नाम पर “कउआ कान ले गया” टाइप का झूठ बोला जा रहा है. यहां ये समझना लाजिमी होगा कि आखिर न्यायपत्र में इस बाबत कहा क्या गया है.
हिस्सेदारी न्याय में पहली ही गारंटी जाति जनगणना से संबंधित है. इसमें कहा गया है कि “ कांग्रेस राष्ट्रव्यापी आर्थिक-सामाजिक जाति जनगणना करवाएगी, इसके माध्यम से कांग्रेस जातियों, उप जातियों और उनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति का पता लगाएगी. आंकड़ों के आधार पर कांग्रेस उनकी स्थिति में सुधार के लिए सकारात्मक कदम उठाएगी. एक अन्य संकल्प में लिखा गया है कि कांग्रेस भूमिहीनों को जमीन वितरित करेगी.
पीएम मोदी इसे तोड़मरोड़ कर जनता को डरा रहे हैं. पिछले छह दिन में सोलह से ज्यादा रैलियों में वे संपत्ति के बंटवारे का झूठ लगातार दोहरा रहे हैं. पश्चिम बंगाल के माल्दा में अपनी रैली में पीएम मोदी ने कहा कि “कांग्रेसियों ने महिलाओं का मंगलसूत्र, आदिवासियों के गहने, हर किसी की प्रॉपर्टी जांच कराने का ऐलान किया है. इसके लिए कांग्रेस के शहजादे विदेश से एक्स-रे मशीन लाए हैं. वे पूरे देश में एक्स-रे करेंगे. कांग्रेस का इरादा सभी का पैसा, सोना-चांदी, जमीन कब्जा करने का है. उसका एक हिस्सा ये लोग अपने वोट बैंक को दे देंगे.”
कांग्रेस ने इस दुष्प्रचार का खंडन करते हुए पहले ही कह दिया है कि उस विरासत कर को लगाने का कतई कोई इरादा नहीं है, जिसे खुद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1985 में खत्म कर दिया था. इसके बावजूद पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बार-बार झूठ बोलते चले जा रहे हैं.
इसी बहाने कांग्रेस को ये भी बताने का मौका मिल गया कि इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री के अपने कार्यकाल में गरीबों को 25 लाख एकड़ ज़मीन दी थी और भोजन भी दिया था. यहां ये बताना मौजूं होगा कि यूपी में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र को पत्र लिख कर एक दलित की जमीन कब्जा छोड़ने को कहा और जांच भी करवाई थी. दो महीने बाद ही श्रीपति मिश्र से इस्तीफा भी मांग लिया था. पीएम मोदी यहां भी आधी-अधूरी जानकारी दे कर सियासत करने से बाज़ नहीं आए. उन्होंने 2022 में यूपी चुनाव के वक्त पूर्वांचल एक्सप्रेस के उद्घाटन के वक्त ये कह कर फायदा उठाने की कोशिश की कि कुछ दरबारियों की वजह से इंदिरा गांधी ने श्रीपति मिश्र से इस्तीफा लेकर उनका अपमान किया. इस पर श्रीपति मिश्र के बेटे प्रमोद मिश्र ने बयान दे कर खंडन किया और कहा कि अपमान कांग्रेस ने नहीं, बल्कि बीजेपी ने किया है.
हमेशा से संघ रहा है आरक्षण विरोधी
दरअसल 400 पार के नारे में छिपी साजिश का भंडाफोड़ खुद बीजेपी के ही नेताओं, सांसदों और प्रत्याशियों के लगातार आ रहे बयानों से होता जा रहा है. बयानों से होने वाले नुकसान के खतरे को भांप कर मोदी ने अंबडेकर जयंती पर अपमानजनक भाषा में कहा कि आरक्षण को खुद अंबेडकर भी नहीं हटा सकते. लेकिन हाल ही में मोदी के करीबी माने जाने वाले प्रमोद कृष्णन का आरक्षण खत्म करनेे का बयान वायरल हो गया. तब खुद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने सामने आ कर कहा कि संघ हमेशा आरक्षण का समर्थक रहा है. जबकि सच ये है कि संघ हमेशा आरक्षण विरोधी रहा है. हिंदुत्व के विचारक एमएस गोलवलकर ने संविधान निर्माण के समय भी आरक्षण को लेकर अपना विरोध जताया था. ये भी नहीं भूला जा सकता कि मोहन भागवत ने 2015 में भी बिहार चुनाव से पहले आरक्षण की समीक्षा की बात उठाई थी और बाद में मुकर भी गए थे. तो 2017 में संघ के दूसरे नंबर के प्रमुख नेता मनमोहन वैद्य ने आरक्षण का खुल कर विरोध किया और कहा कि आरक्षण अब आगे जारी नहीं रखा जाना चाहिए.
सामाजिक न्याय से डरता है राजनीतिक हिंदुत्व
दिलचस्प बात ये है कि मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू किए जाने पर बीजेपी ने भी सामाजिक न्याय की लड़ाई को कुंद करने के लिए मंडल राग छेड़ा था. बिहार में उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण अडवाणी को लालू प्रसाद यादव की सरकार के गिरफ्तार करने पर केंद्र की वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापिस ले लिया था.
कमंडलवादी बीजेपी जानती है कि नफरत की राजनीति से हिंदुत्व के नाम वोटबैंक बनाने की राजनीति को सामाजिक न्याय की लड़ाई हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर सकती है. इसीलिए कांग्रेस ने समाज के 73 फीसदी आबादी को समान अवसर दिलाने की लड़ाई छेड़ी है. इस लड़ाई ने अगली सदी तक देश की राजनीति की दिशा तय कर दी है.
दक्षिण भारत में पेरियार के आत्म सम्मान आंदोलन, महाराष्ट्र में फुले-अंबेडकर के आंदोलनों से हिंदुत्ववादी घबराते हैं. इसी वजह से भीमा-कोरेगांव मामले में तमाम बुद्धिजीवियों को सालों से जेल में डालेे रखने की साजिश रची गई है. कई बुद्धिजीवियों के लैपटॉप-कंप्यूटर में विदेश से हैकिंग करवाई गई. इसकी जानकारी स्वतंत्र लेबोरेटरीज़ में जांच कराने पर मिली.
ऐसे में मोदी के मन में कांग्रेस के हिस्सेदारी न्याय को लेकर इतना डर समा गया है कि वो हर संभव तरीके से समाज के गरीब,दलित-वंचित समुदायों को उनका हक दिए जाने से रोकने के लिए जहरीले झूठ का सहारा ले रहे हैं.
मनुवादी व्यवस्था के पोषक संघ आरक्षण के गुप्त शत्रु हैं. इनकी कुटिल राजनीति का तरीका हमेशा से गुमराह कर सवर्णवादी व्यवस्था को लागू करने की दिशा में बढ़ना है.
संघ-बीजेपी और मोदी का खौफ इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि कांग्रेस के न्यायपत्र में आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा खत्म करने की भी गारंटी दी गई है. इसी वजह से बीजेपी समेत सभी मनुवादी ताकतें कांग्रेस के खिलाफ एकजुट हो रही हैं.
कॉंग्रेस के दलित अध्यक्ष के ख़िलाफ़ RSS का पुराना टूलकिट:
दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस के अध्यक्ष बनना बीजेपी के लिए बहुत भारी साबित हो रहा है. वहीं राहुल गांधी ने भी साफ कह दिया है कि हिस्सेदारी न्याय सिर्फ चुनावी मुद्दा नहीं बल्कि उनके जीवन का मिशन है. खड़गे ने कहा है कि ये पहला मौका नहीं है जब संघ-बीजेपी ने सामाजिक न्याय की लड़ाई से गरीब,दलित-वंचित वर्ग को भटकाने के लिए संपत्ति के बंटवारे जैसे मुद्दे पर लगातार झूठ पर झूठ बोला जा रहा है. उन्होंने बताया कि 1970 में भी जब दलित नेता जगजीवन राम कांग्रेस अध्यक्ष थे, तब भी बीजेपी के पुरखा संगठन जनसंघ ने संपत्ति छीनने की अफवाह फैलाई थी. 18 जनवरी,1970 को कांग्रेस कार्यसमिति में ये मुद्दा उठाया गया था. तब बाबू जगजीवन राम ने अपनी पत्रिका Socialist India के 30 मई,1970 के अंक में इस साजिश का जिक्र किया था.
आरएसएस-बीजेपी के निशाने पर है आरक्षण
दरअसल संघ-बीजेपी और मोदी 2025 यानि शताब्दी वर्ष में आरएसएस के एक अहम एजेंडे को लागू कर देना चाहते हैं. और ये अहम एजेंडा है आरक्षण. लेकिन आरक्षण खत्म करना संघ और मोदी सरकार के लिए आसान नहीं हैं. क्योंकि आरक्षण की व्यवस्था पिछड़े समूहों के लोगों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को पहचानने और उन प्रावधानों को लागू करने के लिए किया गया है, जिससे उन्हें अनुच्छेद 14 में समता के सिद्धांत के मुताबिक अवसरों की समानता और न्याय मिल सके. इसी तरह मूलाधिकार से जुड़ी सभी धाराएं सैद्धांतिक रूप से आरक्षण को विधिसम्मत आधार प्रदान करती हैं.
वहीं,21 जनवरी, 2020 को संसद ने संविधान (104वां संशोधन) अधिनियम, 2019 पारित कर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण को 80 साल तक बढ़ा दिया था.
400 पार का नारा: आरक्षण खत्म करने का इशारा
आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी के नेता संविधान को औपनिवेशिक विरासत कह कर और उसमें कमियां गिना कर उसे बदलने की बहस हर मौके-बेमौके छेड़ते हैं. संघ की इस साजिश का खुलासा खुद बीजेपी समर्थक वकील अश्विनी उपाध्याय के हाल ही में ट्वीट किए अपने वीडियो से हुआ है, बकौल उपाध्याय-
संविधान में कम से कम 20 बड़े बदलाव की ज़रूरत है, जिनके लिए संविधान संशोधन करना ज़रूरी है. ये बदलाव दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से ही किए जा सकते हैं, लेकिन संयुक्त सत्र बुला कर दो तिहाई बहुमत से भी ये बदलाव संभव है. लेकिन वर्तमान में राज्यसभा में बीजेपी के सिर्फ 117 सांसद है, जो दो तिहाई बहुमत से 404 कम है. इसीलिए इस बार 400 पार का नारा दिया गया है.
जाहिर है कि आरक्षण को खत्म करने के लिए संविधान को बदलना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी का अंतिम लक्ष्य है. इस बदलाव के बाद गरीब-दमित-वंचित, पिछड़े-दलित-आदिवासी वर्ग को संविधान में सुनिश्चित किया गया समता,समानता और न्याय का अधिकार हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा.
लिहाजा फरेब-अफवाह-झूठ-लफ्फाजी औऱ तरह तरह की नाटकबाजी की सहारा लेकर प्रधानमंत्री मोदी उस वर्ग को भरमा रहे हैं, जिनके हक वो इस चुनाव के बाद छीनने जा रहे हैं. सच तो ये है कि काशी-मथुरा तो सिर्फ झांकी है, आरक्षण पर आखिरी हमला बाकी है.
प्रधानमंत्री मोदी तो कहते भी हैं- ये तो अभी ट्रेलर है, पिक्चर अभी बाकी है…