चुनाव आयोग है नाकामी की नई मिसाल – मतदान का डाटा बना जी का जंजाल

भारत का चुनाव आयोग विगत कई वर्षों तक विश्व भर में अपने निष्पक्ष व चुनाव संचालन के लिए विश्व भर में आदर्शों के ने मानदंड स्थपित करता रहा है। विश्व चुनाव संचालन के लिए भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देखता रहा है। विश्व के कई देश अपने यहां के आयोगों को भारत में प्रशिक्षण के लिए भेजते रहे है। भारत के लिये भी सदा से यह गर्व की अनुभूति का विषय रहा है।

चुनाव आयोग का चयन – कपटी प्रक्रिया का सृजन

अत्यंत खेद का विषय है कि भारत सरकार ने जिस प्रकार की कपटपूर्ण प्रक्रिया का चुनाव आयोग की नियुक्तियों में प्रयोग किया उसकी भारत के इतिहास मे दूसरी मिसाल मिलना असंभव है। श्रीमान गोयल जी की चुनाव आयोग के रुप में नियुक्ति जिस विद्युत गति से की गई उससे यह प्रकट हो गया कि सरकार येन केन प्रकारेण अपने पिट्ठुओं की नियुक्ति चाहती है ताकि ये पिट्ठू समय आने पर इस ऋण का ब्याज समेत भुगतान कर सकें। गोयल जी की नियुक्ति में तो सुप्रीम कोर्ट को भी अत्यधिक आश्चर्य हुआ कि किस तरह गोयल साहब की स्वैच्छिक अवकाश की प्रार्थना रातों रात स्वीकार कर ली गई तथा दूसरे दिन उनकी नियुक्ति हो गई। यहाँ यह भी दुर्भाग्य का विषयहै किन जिस ब्यूरोक्रेसी ने संविधान की शपथ ली हो वह भी क्षुद्र स्वार्थ के कारण सरकार को चेताने के अपने दायित्व को निभाने में असफल रही।

इस सरकार ने तो कानून को कैसे तोड़ने और इसके दुरुपयोग में तो विशेषज्ञता प्राप्त है। यह तो लगता है कि गोयल साहब की अन्तरात्मा नै उन्हें कहीं झकझोरा और वह शासन की नीयत भांप गए और उन्होंने स्वास्थ्य का हवाला दे कर त्यागपत्र दे दिया पर उनका यह कदम कदाचित शासन की अन्तरात्मा को झकझोरने में असफल रहा।

शासन के कुकृत्यों का एक और उदाहरण इसी कड़ी में जुड़ा जब माननीय उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग के चयन में यह व्यवस्था दी कि चयन हेतु जो तीन सदस्यीय समिति हो उसमें प्रधान मंत्री, नेता प्रतिपक्ष व उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हों पर सरकार ने अपनी कपटपूर्ण नीयत का एक और उदाहरण, तुरन्त एक कानून लाकर प्रस्तुत किया जिसमें मुख्य न्यायाधीश की जगह प्रधानमंत्री के विश्वासपात्र मंत्री को स्थापित किया ताकि माननीय प्रधानमंत्री जी अपने टामी चुनाव आयोग का चयन करवा सकें जो उनके छू बोलते हीं भौंकने लगे।

बदनाम हुआ तो क्या, नाम तो होगा


इस श्रेणी में एक और कड़ी तब जुड़ी जब अचानक महीनों से रिक्त पदों को भरने का निर्णय लिया गया तथा चयन हेतु प्रक्रिया को धता बताते हुए न तो उम्मीदवारों की छंटनी की प्रक्रिया अपनाई, न ही आयोग के २ सदस्यों के लिए ५ उम्मीदवार प्रति आयोग के नियम का पालन किया और न ही नेता प्रतिपक्ष को सूची भेजने व अध्ययन के लिये प्रस्तावित समयावधि का पालन किया गया। स्पष्ट है कि मदान्ध सरकार ने जहाँ प्रशासन को नए उच्च मानदण्डों की स्थापना करनी थी वह तो दूर वह पहले से स्थापित मानदंडों का पालन करने में न केवल असफल रही अपितु उसने नए निम्नस्तरीय मानदंडों की स्थापना कर अपना नाम अमर कर लिया। अंततः नेता विरोधी पक्ष को अपना विरोध दर्ज कराना पड़ा।

कपटी शासन की टेढ़ी युक्ति – विनाशकाले विपरीत बुद्धि

उपरोक्त भूमिका जिससे यह स्पष्ट होता है कि नवनियुक्त चुनाव आयोग क्यों अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने को तत्पर है क्योंकि उनकी यह नियुक्तियां अनुकंपा नियुक्तियां है। चुनाव आयोग लैवल प्लेइंग फील्ड की बात अवश्य करते हैं पर उनकी हरकतें वस्तुतः स्लिपरी प्लेइंग फील्ड बनाती है जहाँ विपक्ष को प्रत्यक्ष रुप से गिराने के हर प्रयास व प्रयोग होते है। चुनाव आयोग एक तरफ विपक्ष के विरुद्ध मामले दर्ज करने में एक धावक के रूप का परिचय देता है वहीं सत्ता पक्ष के विरुद्ध वह लकवाग्रस्त मरीज बन जाता है। २०२४ का चुनाव ऐसे संदिग्ध निर्णयों से भरपूर है।

एक ओर जहाँ विपक्ष मूलतः कांग्रेस के प्रत्याशियों पर धारा १७१ पर धड़ा धड़ केस दर्ज किए जा रहे हैं वहीं सत्ता पक्ष के प्रत्याशियों को नजरअंदाज किया जा रहा है जिसमें प्रधानमंत्री तक शामिल हैं। आम जनता को यह शक है कि इसमें भी सत्ता पक्ष की बहुमत हड़पने की कोई चाल हो सकती है जहाँ निर्वाचित सदस्यों पर मुकदमा कर उन्हें जेल भेजा जाय और उनकी सांसदी छीनी जा सके।

चुनाव आयुक्तों ने प्रतिपक्ष के नेताओं से मुलाकात का सयय नहीं दिया क्योंकि वह ईवीएम के विषय में कुछ नहीं सुनना चाहते थे। जिन लोगों को कंप्यूटर की जानकारी हो वह जानते है कि कंप्यूटरीकृत सिस्टम से मनचाहा परिणाम प्राप्त करना कोई असंभव कार्य नहीं है।

चुनाव आयोग की धीमी रफ्तार – क्या यही करेगा बेड़ा पार

जहां एक ओर टेक्नोलॉजी आज त्वरित गति से संदेश भेज सकती है, प्रधानमंत्री डिजिटल इंडिया का उद्घोष करते रहते है पर चुनाव आयोग प्रधानमंत्री को तथा टेक्नोलॉजी को झूठा साबित करने पर आमादा है। जब डिजिटल इंडिया नहीं था तब मतदान के आंकड़ों का अनुमानित डेटा उसी दिन शाम तक आ जाता था और दूसरे दिन प्रातः इसका संपूर्ण विवरण प्रकाशित हो जाता था। आज आई टी के इस युग में जिस प्रकार कम्प्यूटर वायरस ग्रस्त होने पर धीमे चलने लगता है लगता है चुनाव आयोग भी किसी वायरस से ग्रस्त हो गया है और एक निर्वाचन क्षेत्र के मत दान की गणना में १ दिन के बजाय १ हफ्ते के लगभग का समय ले रहा है। क्या इस अतिरिक्त समय में कोई नई खिचड़ी पक रही है।

बकौल पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त श्री एस वाई कुरेशी, जिन्होंने दैनिक भास्कर को दिये इंटरव्यू में कहा है कि मतदान का हिसाब लगभग आनलाइन होता है और कोई वजह नहीं है कि दूसरे दिन सुबह १० बजे तक मतदान के सही आंकड़े न प्रस्तुत किए जा सकें। एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त के द्वारा कहे गए ये शब्द वर्तमान अनुकंपा चुनाव आयोग की पोल खोल कर रख देते हैं। मोबाइल व इंटर्नेट के इस तथाकथित डिजिटल इंडिया में फार्म १७ ए व १७ सी तो मतदान समाप्त होते ही चुनाव आयोग की वेबसाइट पर डाले जा सकते है जिसे जो चाहे जैसे चाहे एनलाइज़ कर सकता है, सिर्फ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। सरकार का यह रुख उनके इलेक्टोरल बांड के रुख से कतई भिन्न नहीं है और जि तरह वहाँ सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ, संभावना है कि यहाँ भी सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद किसी बड़े चुनावी अनियमितता का पर्दाफाश हो।

अंत में –  जागेगा मतदाता जमाना देखेगा 

मुझे आज यह लिखते हुए असाधारण पीड़ा का अनुभव हो रहा है कि आज इस संस्था की साख इतनी गिर गई है कि इनकी हर गतिविधि अब संदेह के दायरे में नजर आने लगी है और जिस निष्पक्षता की आशा चुनाव आयोग से की जाती थी उसकी तनिक भी परवाह चुनाव आयोग नहीं कर रहा है व पूरे मनमाने व अलोकतांत्रिक तरीके अपना कर स्वयं को हंसी का पात्र बना रहा है। आज नागरिकों का यह दायित्व है कि वे सब मिलकर चुनाव आयोग को इस बात का एहसास कराएं। देश का दुर्भाग्य है कि यह अपेक्षा अब लोग उच्चतम न्यायालय से करने लगे हैं।

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