क्या चुनाव आयोग 400 पार पहुंचाने की जिम्मेदारी खुद उठा रहा है ?
लोकसभा चुनाव के दो चरणों के अंतिम मतदान प्रतिशत के आंकड़े जारी करते ही केंद्रीय निर्वाचन आयोग सवालों के घेरे में आ गया है. निर्वाचन आयोग ने बताया है कि पहले चरण में 66.14 फीसदी मतदान हुआ और दूसरे चरण में 66.71 फीसदी वोटिंग हुई है.
सवाल तब उठे जब दोनों चरण के मतदान आंकड़ों में 5.75 फीसदी की बढ़ोत्तरी नज़र आई. चुनाव आयोग ने आम चुनाव के पहले चरण के 11 दिन के बाद और दूसरे चरण के मतदान के 4 दिन बाद वोटिंग परसेंटेज़ का अंतिम आंकड़ा जारी किया है. प्रतिशत में दिए गए इन आंकड़ों को लेकर चुनाव आयोग से सवाल पूछे जा रहे हैं. 21 राज्यों की 102 सीटों के लिए 19 अप्रेल को हुए पहले चरण के मतदान के बाद शाम सात बजे आयोग ने अनुमानित मतदान 63.89 फीसदी था. वहीं 26 अप्रेल को दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 सीटों पर हुए मतदान के बाद आयोग ने उसी शाम को आयोग ने आंकड़े जारी कर 60.96 फीसदी वोटिंग की जानकारी दी थी.
जबकि नए आंकड़ों के मुताबिक पहले चरण में कुल मतदान प्रतिश 66.14 फीसदी और दूसरे चरण में 66.71 प्रतिशत मतदान हुआ है.
रातोंरात वोटिंग प्रतिशत 6 फीसदी बढ़ने की वजह से चुनाव आयोग से पूछा जा रहा है कि आखिर अंतिम मतदान प्रतिशत जारी करने में 11 दिन का वक्त क्यों लगा. सेफॉलॉजिस्ट औऱ किसान नेता योगेंद्र यादव का कहना है कि पिछले पैंतीस साल के चुनाव को देखा है और उनका अध्ययन किया है. शाम को जारी डेटा और फायनल में डेटा में 3-5 फीसदी का फर्क अना कोई नई बात नहीं है. लेकिन पहले फायनल डेटा 24 घंटे के भीतर मिल जाता था. योगेंद्र यादव के मुताबिक इस बार कुछ बातें असामान्य और चिंताजनक हैं. फाइनल डेटा पब्लिश होने में 11 दिनों की देरी (पहले चरण के लिए, दुसरे चरण के लिए 4 दिन) और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र और उसके खंडों के लिए मतदाताओं और डाले गए वोटों की वास्तविक संख्या का खुलासा न करना गंभीर बात है.
जानकारों ने ये भी सवाल उठाए हैं कि पहली बार फायनल वोटिंग डेटा का सिर्फ प्रतिशत जारी किया गया है, जबकि मतदाताओं की संख्या और डाले गए मतपत्रों की संख्या की जानकारी नहीं दी गई है. ऐसे में आयोग के आंकड़ों की पुष्टि के लिए कोई आधार ही उपलब्ध नहीं है. जबकि 2019 के चुनाव में राज्यवार डाले गए मतों की संख्या और कुल मतदाताओं की संख्या का भी ब्यौरा दिया जाता था. आखिर क्या वजह है कि चुनाव आयोग के सामने ऐसी क्या मजबूरी थी कि उसे कुल संख्या को छिपाने को मजबूर हो गया ?
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा है कि हर लोकसभा में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या और उन लोकसभा क्षेत्रों में आने वाली विधानसभा क्षेत्रों को आयोग द्वारा मतदान के डेटा के साथ जारी नहीं किया गया है, जैसा कि आमतौर पर किया जाता है
साथ ही जयराम रमेश ने चुनाव आयोग से ये भी पूछा है कि न केवल वोट प्रतिशत बल्कि वोटों की संख्या का विवरण – जैसा कि आम तौर पर चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराया जाता है – अभी तक उपलब्ध नहीं है
वहीं, मतदान केंद्रों पर हो रही देरी से भी जुड़ा हुआ दूसरा सवाल उठाया जा रहा है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में चुनाव आय़ोग ने कहा था कि वीवीपैट थर्मल पेपर रोल से अधिकतम 1500 स्लिप ही निकाल सकती है. इसीलिए चुनाव आयोग ने तय किया था कि किसी भी मतदान केंद्र पर 1400 से ज्यादा मतदाता नहीं रखे जाएंगे. लिहाजा अब चुनाव आयोग से ये भी पूछा जा रहा है कि जब प्रति मतदान केंद्र अधिकतम वोटरों की संख्या 1400 तय की गई है तो कई राज्यों में ये संख्या 1500 से ज्यादा क्यों है.
इसके साथ ही तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ ब्रॉयन ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति वाली समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश को हटाए जाने को लेेकर भी सवाल खड़ा कर दिया है. उन्होंने चुनाव आयोग से पूछा है कि पहले दो चरणों में बीजेपी को अपेक्षित सफलता नहीं मिलने की वजह से क्या आंकड़ों की हेराफेरी की जा रही है?
दरअसल सिर्फ वोटिंग प्रतिशत से ही इलेक्टोरल ऑडिट संभव नहीं है. हर बूथ की जानकारी फॉर्म-17 में दर्ज की जाती है और ये जानकारी प्रत्याशी के प्रतिनिधि के पास उपलब्ध होती है. लेकिन डाले गए वोट और गिने गए वोट में खामी को सिर्फ समझने के लिए चुनाव आयोग पूरा डेटा जारी करता है. ऐसे में प्रतिशत इन आंकड़ों को छिपाने के लिए 11 दिन की देरी के साथ-साथ रिपोर्टिंग फॉर्मेट में बदलाव को लेकर आयोग की नीयत पर संदेह गहराता जा रहा है. टीएमसी सांसद साकेत गोखले ने आरटीआई दायर कर चुनाव आयोग से जवाब भी मांगा है.
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने भी हर लोकसभा क्षेत्र के कुल मतदाताओं की संख्या जारी न करने पर हैरानी जताई है. उनका कहना है कि जब तक कुल मतदाताओं की संख्या नहीं बताई जाती वोटिंग प्रतिशत के कोई मायने नहीं हैं.
चुनाव आयोग की निष्पक्षता लगातार संदेह के घरे में आती जा रही है. आयोग ने इससे पहले सक्रियता दिखा कर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के हेलीकॉप्टर की जांच तक करवाई थी. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी समेत बीजेपी के कई नेताओं के सांप्रदायिक भाषणों पर कई शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की. जबकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे औऱ राहुल गांधी के भाषण पर नोटिस जारी कर दिया है. कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवनाला के प्रचार पर भी 48 घंटे की रोक लगा दी थी. यही नहीं, चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन से जुड़ी विपक्ष की सैकड़ों शिकायतों का पुलिंद बना कर आयोग बैठ गया है. इस तरह की इकतरफा कार्रवाई इस आरोप को मजबूत कर रही है कि चुनाव आयोग पीएम मोदी और बीजेपी के पिट्ठू की तरह काम कर रहा है.
वहीं मतदान के दौरान भी चुनाव आयोग की लापरवाही पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं. इंडिया गठबंधन समर्थकों के इलाकों में मतदान में देरी की जगह जगह पर शिकायतें सामने आई हैं. कहीं आधार कार्ड की जांच, तो कही मोबाइल फोन के बहाने मतदाता को मतदान केंद्र में घुसने से रोकने की सैकड़ों शिकायतें सामने आई हैं. इससे साफ पता चलता है कि बीजेपी अपने समर्थकों के घटते वोटिंग प्रतिशत को बढ़ाने के लिए इंडिया गठबंधन के पक्ष में होने वाली वोटिंग को रोकने के लिए आय़ोग खुद भी एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहा है. घंटों-घंटों तक इतज़ार करा कर और हतोत्साहित कर मतदाता को वोट डाले बगैर लौटाने की कोशिश इस बार खुल कर कोशिश की जा रही है.
वहीं ईवीएम में गड़बड़ियों की वजह से भी काफी देर होने से भी मतदाताओं को निराश हो कर लौटना पड़ा.
इससे पहले ईवीएम-वीवीपैट को लेकर हुई सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनाव आयोग को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) की सिंबल लोडिंग यूनिट की हैंडलिंग और लोडिंग के साथ भंडारण के लिए प्रोटोकॉल को बदलना पड़ा था. कोर्ट ने ईवीएम के सिंबल लोडिंग यूनिट को 30 की बजाय 45 दिनों तक स्ट्रॉन्ग रूम में सुरक्षित और संरक्षित रखने का आदेश भी दिया है. अदालत की कार्रवाई से मतदाताओं की शंका सही साबित हुई है.
चुनाव आयोग की नीयत पर सवाल तब खड़े हुए जब इंडिया गठबंधन ने लगातार 11 चिट्ठियां लिख कर मिलने का समय मांगा. लेकिन आयोग ना तो मिलने का वक्त दिया ना ही किसी भी पत्र का जवाब ही दिया. आयोग का कहना था कि विपक्षी दलों के उठाए मुद्दों का जवाब चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं. इससे साफ है कि चुनाव आयोग किस तरह से पीएम मोदी और बीजेपी के पिट्ठू की तरह काम कर रहा है,
बीजेपी के पक्ष में घटती वोटिंग को देखते हुए अगले चरणों के चुनाव में आयोग की भूमिका को लेकर अभी से संदेह बढ़ने लगा हैै. क्योंकि चुनाव आयोग निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराने के बजाय अपने आका को खुश करने में जुट गया है.
चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था के सरकारी पिट्ठू की तरह काम कर रहा है.
सवाल ये उठता है कि आखिर कहां हैं लोकतंत्र!!