है ये कैसा विकास – रूंठा निवाला मिली घास
चारों तरफ ढिंढोरा हो रहा है कि प्रधानमंत्री का हर तरफ डंका बज रहा है। गत १० वर्षों में विकास ने वह रफ्तार पकड़ी है जो कि बीते ७० वर्षौं (😭) में न हो सकी। मैं घनघोर आश्चर्य में हूं कि यह कौन सा विकास है जो हो तो रहा है पर नज़र नहीं आ रहा है, अतः अवश्य ही यह कोई दैवीय विकास होगा जिसे अंतर्ध्यान होने का वर मिला होगा। अंततः मैने इसको ढूंढने का प्रण लिया और एक तपस्या की ओर बढ़ चला क्योंकि प्रभु व दैवीय विकास से मिलना किसी तपस्या से कम नहीं था। मैने हरआय वर्ग के लोगों से मिलकर विकास का पता खोज निकालने के प्रयास का आगाज कर दिया था ।
पैसा नहीं है पास – मेला लगे उदास
गरीबी रेखा से नीचे वालों से मिलकर हो रहे विकास का उन पर असर या हो रहे विकास का उनपर चौतरफा कहर के बारे में जानने की उत्सुकता ने मन को झकझोरा। एक गरीब की जरूरत २ वक्त की रोटी, २ कपड़े, १ छप्पर, वक्त पर दवाई और दम रहने तक रोजगार से अधिक कुछ भी नहीं है। सरकार की प्राथमिकता बड़े राजमार्ग, विशाल एयर पोर्ट तथा तेज गति की रेलगाडियों के अतिरिक्त कुछ और प्रतीत नहीं होती।
इन सबके निर्माण में विस्थापितों की परिस्थिति किसी से छुपी नहीं है। खाने के लिये पहले भी दूसरों पर निर्भर थे विकास यात्रा के दौरान कुछ अस्थायी रोजगार मिला पर वर्षदो वर्ष भर में वह भी गया। फिर वहीं पांच किलो राशन की भीख। रहने के लिए घर तो पहले भी न था और यदि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर मिला भी तो वह भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गया। उसे ऐसे राजमार्गों का कोई उपयोग नहीं नजर आता जहां वह जा न सके। 😭
कोउ नृप होय हमें का हानी – का वर्षा जब कृषि सुख
निम्न आय वर्ग की दुश्वारी। समाज का यह वर्ग समाज का सबसे मेहनतकश वर्ग है जो शारीरिक श्रम रोजगार का आधार है। सीमित आय में गुजारा करने की जद्दोजहद में जीवन गुजार देता है। सरकार की राजमार्ग आधारित विकास यात्रा का सबसे अधिक खामियाजा इस वर्ग ने भुगता है। कइयों के घर बिखर गए जो स्थाई निवास था , खेती की जमीन गई जो उनका स्थाई व्यवसाय था। सबकुछ हाथ से जाता रहा। उनकी अपेक्षा थी कि उनकी जो संपत्ति जा रही है उससे उनके लिये स्थाई व्यवसाय की व्यवस्था हो, जो हो न सकी। इनकी आय इन्हें अधिक यात्रा से वंचित रखती है। जिन कार्यों पर पैसे लुटाए जा रहे हैं वे खानाबदोश अस्थाई रोजगार तो दे सकते है पर स्थाई रोजगार के नाम पर सिफर बटे सन्नाटा। महगाई जो कमर तोड़ रही है सो अलग। 😭
विकास के जैसे सपने दिखाए – जब आंख खुली तो धोखे पाए
मध्यम आय वर्ग जो इस सरकार के आश्वासनों से सर्वाधिक प्रभावित है तथा भक्तों की श्रेणी में इनकी बहुतायत है इस विकास से अधिक प्रभावित हैं। इनमें से अधिकांश कार रखते है, वातानुकूलित रेल तथा वायुयान में यात्रा करते हैं। मध्यम व उच्च आय का यह समूह त्वरित गति से भारत की तुलना विदेशों से करते हैं बिना यह सोचे कि भारतवर्ष एक विषम आर्थिक जनसमूह है जिसमें इस समूह का हिस्सा महज १५% होगा जो आयकर देते हैं। जीएसटी का भार तो हर नागरिक वहन कर रहा है। हालांकि यह समूह भी अब दोफाड़ हो गया है क्योंकि उनमें से तुलनात्मक रूप से कम आय वाले विकास के इस प्रारूप से सहमत नहीं हैं।
क्या से क्या हुआ बेवफा तेरे………………………….
हाई स्पीड ट्रेन, एयरपोर्ट तथा एक्सप्रेस राजमार्ग एक अधिक खर्च वाले प्रोजेक्ट होते हैं तथा इनका निर्माण विवेकपूर्ण तथा तर्कसंगत होना चाहिए। भारत एक विशाल व बहुआयामी देश है जहां जनता की जेबें अलग अलग क्षमता की हैं जिसमें से कई इन प्रोजेक्ट का खर्च वहन नहीं कर सकती हैं। आखिर हर मर्ज की एक ही दवा नहीं होती। विकास की परिभाषा सिर्फ राजमार्ग या एयरपोर्ट ही नहीं है।
भारत के विकास ऐसा होना चाहिए जिसमें स्थाई रूप से रोजगार सृजन की क्षमता हो। <span;>यह एक अच्छा कदम होता यदि भारत में बेरोजगारी इतनी अधिक न होती, यह एक अच्छा कदम होता यदि भारत में आर्थिक असमानता इतनी अधिक न होती। यह एक अच्छा कदम होता यदि भारत में शैक्षणिक विषमता इतनी अधिक न होती। अन्ततः किसके लिए यह हो रहा है मात्र २० प्रतिशत जनता के लिये ताकि उनका जीवन और सुखमय हो जाय।
सरकार के दुर्भाग्य से उनके इन प्रयासों का भांडा सुप्रीम कोर्ट ने फोड़ दिया है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि क्यों सरकार इस दिशा में ओवरटाइम कार्यरत थी। चंदा दो धंधा लो इसके मूल में समाहित था जो कि इलेक्टोरल बांड के रहस्योद्घाटन से जगजाहिर हो गया है। इस सरकार ने गरीबों की परवाह क्यों नहीं की क्योंकि वे चन्दा देने में असमर्थ थे। इसका विकास हश्र भी विगत शाइनिंग इंडिया से कुछ अलग नहीं होगा।
पांच किलो का राशन रोज बनाए बेरोजगार – <span;>आखिर निकली ये सूट बूट की सरकार