ये देश नहीं बिकने दूंगा कहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में कुछ भी नहीं छोड़ने की कसम खा ली है. आजादी के बाद जनता के खून-पसीने से बनाई गई सरकारी संपत्तियां मोदी सरकार अपने दोस्तों के नाम करती जा रही है. इन दोस्तों के मुनाफे के लिए नियम-कानून ताक पर रखे जा रहे हैं. काले धन को विदेेशों में फर्जी कंपनियां बना कर वापिस निवेश किया जा रहा है और मुनाफा दिखाया जा रहा है.
अडानी समूह पर एक शॉर्टसेलर फर्म हिंडनबर्ग ने बेहद गंभीर आरोप लगाए थे. अडानी समूह धमकी देने के बावजूद उसके खिलाफ अदालत नहीं जा पाई थी. सुप्रीम कोर्ट के दबाव में 25 अगस्त, 2023 को विशेषज्ञों की समिति को बताया था कि वो 13 संदिग्ध लेनेदेन की जांच कर रही है. वहीं अमेरिका में भी अडानी के व्यवसायिक तरीकों पर पड़ताल जारी है. अब ये आरोप सही साबित होते नज़र आ रहे हैं.
हाल ही में अडानी समूह से जुड़ी 6 कंपनियों को रिलेटेड पार्टी ट्रांजेक्शन, लिस्टिंग नियमों के उल्लंघन और ऑडिटर के सर्टिफिकेशन की वैलिडिटी को लेकर सेबी ने नोटिस जारी किया है. जिन कंपनियों से पूछताछ की जा रही हैं वो अडानी की मुनाफा कमाने वाली कंपनियां हैं, अडानी इटरप्राइसेज़, अडानी पोर्ट्स एंड इकॉनॉमिक जोन अडानी पॉवर. अ़ानी एनर्जी सॉल्यूशन्स, अ़डानी विल्मर और अ़डानी टोटल गैस.
कांग्रेस का कहना है कि इन कंपनियों के ऑडिटर्स ने कई संदिग्ध लेनेदेन पर अपना क्वाॉलीफाइड ओपिनियन दिया था. इन्हीं में से एक अडानी पोर्ट्स की ऑडिटिंग फर्म नेे मई, 2023 में क्वॉलीफाइड ओपीनियन दिया था, लेकिन हिंडनबर्ग के आरोपों के बाद अगस्त,2023 में इस्तीफा भी दे दिया था.
कांग्रेस ने फिर दोहराया है कि अडानी को सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिलने का दावा झूठ है. कांग्रेस का आरोप है कि अडानी के करीबी सहयोगियों चांग चुंग-लिन और नासिर अली शाबान अहली ने अडानी की कंपनियों में बेनामी फंड से हिस्सेदारी ली है. इन लोगों ने अडानी पॉवर,अडानी इंटरप्राइसेज, अडानी पोर्ट्स,अडानी ट्रांसमीशन में 8 फीसदी से 14 फीसदी की हिस्सेदारी हासिल की है. जिसके कारण, कथित रॉउंड ट्रिपिंग और ओवर इनवॉयसिंग से अडानी की कंपनियों में बेनामी 20 हजार करोड़ रुपए का निवेश हुआ.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी से बार-बार यही सवाल पूछते हैं- वो बीस हज़ार करोड़ रुपए किसके हैं
रॉयटर्स की खबर के मुताबिक मोडानी की कंपनियों का कलेजा इतना बढ़ चुका है कि एक दर्जन से ज्यादा अडानी से जुड़ी कंपनियों ने न सिर्फ डिस्क्लोज़र नियमों और निवेश सीमा का उल्लंघन किया है , बल्कि जवाब मांगने पर सेबी से अपनी गलती माने बगैर पेनाल्टी लेकर मामला रफा-दफा करने को कहा है. अडानी की सरकार में मोडानी की कंपनियों का जिगरा देखने लायक है कि ये अपना अपराध स्वीकार किए बगैर पैसे के दम पर दामन साफ कर लेना चाहती हैं.
हर दूसरे दिन अडानी की कंपनियां जिस तरह पैर फैला रहीं हैं, उससे साफ नज़र आता है कि ये अडानी की सरकार है और ये मोडानी की कंपनियां हैं.
खबरों के मुताबिक एक दिन पहले ही अडानी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई लिमिटेड ने पॉइंटलीप प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड (PPPL) में 13.15 करोड़ रुपये में 100 प्रतिशत हिस्सेदारी के अधिग्रहण कर लिया है. वहीं 32 हज़ार करोड़ के घाटे में चल रही केएसक महानदी थर्मल पॉवर प्लांट को औने-पौने में खरीदने के लिए चल रही होड़ मे भी मोडानी की कंपनी शामिल है. इस कंपनी को इनसॉल्वेंसी की प्रक्रिया के तहत नीलाम किया जा रहा हैै.
वहीं, इलेक्टोरल बांड से भी बड़ा घोटाला साबित होने जा रहा है इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड. एनसीएलटी ने कर्ज समाधान के मामलों में 43 फीसदी की उछाल का दावा किया है. ट्रिब्यूनल के सामने 21 हजार 205 मामले लंबित हैं.
अडानी पर विदेेशों से खरीदेे कोयले को महंंगे दाम पर खरीदने के लिए राज्य सरकारों पर दबाव डाला गया था, और देश को 14 हज़ार करोड़ से ज्यादा का चूना लगाया गया था. तब इसके लिए बकायदा मोदी सरकार ने इस कोयले की खरीद को नियम ही बना दिया था. इसके बाद सरकार के जरिए महंगी बिजली बेच कर मोडानी का मुनाफा आम आदमी की जेब से निकाला जाता है.
मोदी की गारंटी का हाल 2024 के आम चुनाव के पहले ही देखने को मिलने लगा है. पीएम मोदी ने हाल ही में उत्तराखंड में चुनाव प्रचार के वक्त दावा किया था कि सूर्यघर बिजली योजना के तहत जनता को मुफ्त बिजली मिलेगी. मतदान होने के तुरंंत बाद उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने बिजली के दाम बढ़ा दिए हैं.
वहीं, मोदी सरकार पिछले दस साल से सरकारी कंपनियों को पहले बीमार साबित कर अपने 20-22 मित्रों को कौड़ियों के मोल हवाले कर रही है. जाहिर है कि इन कंपनियों के खत्म होनेे के साथ-साथ तक नौकरियां भी खत्म की जा रही हैं.
देश में सत्तर साल में 188 पब्लिक सेंक्टर कंपनियां तैयार की गईं. ये पब्लिक सेंक्टर कंपनियां मुनाफे से ज्यादा रोजगार स्रजित करने के मकसद से बनाई गईं थीं. क्योंकि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जानते थे कि निजी क्षेत्र अपने मुनाफे के लिए ज्यादा काम करता है. जबकि जनता के लिए रोजगार के अवसर मुह्य्या कराना सरकार का दायित्व है. पूंजी और श्रम के इस रिश्ते को समझते हुए ही उनकी मिश्रित अर्थव्यवस्था की परिकल्पना को दुनिया के बहुत से देश अपनाते जा रहे हैं.
लेकिन भारतीय जनता पार्टी की सरकार जब भी बनीं, उन्होंने जनता के पैसे से सत्तर साल में खड़ी कई गई इन कंपनियों को निजी क्षेत्र को बेचने का काम किया जा रहा है. घाटे मे चल रही पीएसयू को निजी क्षेत्र को देने के नाम पर ये योजना शुरू हुई. लेकिन इसके साथ ही पूंजीपतियों की मिलीभगत से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को कमज़ोर कर अपने पसंदीदा उद्योगपतियों को बेचने का खेल भी तेज़ हो गया है.
वहीं निजी क्षेत्र को फायदा पहुंचाने के बदले बकायदा चंदे का धंधा भी किया जाने लगा. दुनिया के सबसे बड़े वसूली रैकेट के खुलासे से पता चला है कि इलेक्टोरल बांड के जरिए इन्हीं कंपनियों से 8 हजार करोड़ रुपए का चंदा प्री-पेड, पोस्ट-पेड,आफ्टर रेड और फर्जी कंपनियों के जरिए वसूला गया गया है.
मामला यहीं तक नहीं रुका. इन पीएसयू की अब तक की कमाई को भी अडानी को देने के लिए कानून बदले गए. भारतीय जीवन बीमा निगम जनता के खून-पसीने की कमाई में से अडानी की सात कंपनियो में 74 हजार 142 करोड़ रुपए का निवेश कर चुका है. अब आम आदमी की मेहनत की ये कमाई अडानी के शेयरों के उतार-चढ़ाव के दांव पर लगा दी गई. एलआईसी को बीच में हुए भारी नुकसान के बाद शेयर मार्केट मे हेराफेरी कर जनता का पैसा हड़पने के आरोप भी लगे.
प्रधानमंत्री मोदी के दस साल, अन्याय काल में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का कुप्रबंधन कर इन्हें बेचनेे के लिए मजबूर किया जा रहा है. यहां तक कि कई अच्छा मुनाफा कमाने वाली कंपनियों को भी निजी क्षेत्र के हवाले किया जा रहा है.
देश की सार्वजनिक संपत्ति को बेच कर चंद उद्योगपति मित्रों को फायदा पहुंचाया जा रहा है, वहीं पीएसयू कंपनियों में रोजगार के अवसर घटाए जा रहे हैं. इन कंपनियों में काम कर रहे कर्मचारियों को वीआरएस दे कर इन स्थाई नौकरियों को हमशा-हमेशा के लिए खत्म किया जा रहा है.
2014 में मोदी सरकार के आने के वक्त पब्लिक सेक्टर की कंपनियों में दिहाड़ी और ठेका कर्मचारी 19 फीसदी थे. 2022 में इनकी संख्या बढ़ कर 42 फीसदी से ज्यादा हो गई है.
पब्लिक इंटरप्राइसेज़ सर्वे के मुताबिक 2013 के बाद से केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से 2 लाख सत्तर हज़ार नौकरियां कम कर दी गई है. मार्च, 2022 तक 248 केंद्रीय पीएसयू में कुल कर्मचारी संख्या 17 लाख,30 हज़ार से घट कर 14 लाख 60 हज़ार रह गई है. जबकि इसी दौर में ठेका मजूरी में 36 फीसदी का इज़ाफा हुआ है. इनमें से 7 कंपनियों से 20 हजार नौकरियां घटाई गई हैं.
वहीं बीएसएनएल से अकेले एक लाख 80 हज़ार नौकरियां खत्म कर दी गई हैं. BSNL को अलग तरीके से बेचा जा रहा है, उसकी बेशकीमती संपत्तियां लीज़ पर दी जा रही हैं, दस हजार टॉवर मॉनेटाइज़ेशन के नाम पर बेचे जा रहे हैं. और तो और कुप्रबंधन इस स्तर पर है कि बीएसएनल के लैंडलाइन यूज़र्स का डेटा डॉर्क वेब पर बेचा जा रहा है. वहीं, एमटीएनएल और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया से कुल 30 हजार नौकरियां खत्म कर दी गई हैं.
जाहिर है कि अडानी की सरकार और मोडानी की कंपनियां बेरोजगारी के लिए सीधे जिम्मेदार हैं.
सरकारी टेलीकॉम कंपनियों और उनकी परिसंपत्तियां कौड़ियों मोल लेकर निजी क्षेत्र की टेलीकॉम कंपनियां मुनाफा बढ़ा रही हैं. यूपीए सरकार के समय सस्ते डेटा के बल पर आरएसएस औऱ बीजेपी ने यूपीए के खिलाफ सोशल मीडिया और व्हॉट्सअप पर खूब कुप्रचार किया. लेकिन अब बेरोजगार युवाओं के लिए इंस्टाग्राम के वीडियों देखने के लिए डेटा खरीदने को मोहताज हो गए हैं.
गरीबी का नकाब लगा कर मोदी सरकार ने पिछले पांच साल में बड़े पूंजीपतियों का 16 लाख करोड़ का कर्ज माफ किया है. लेकिन इससे भी निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा होने के बजाय कम ही हुए हैं. यही नहीं, आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक मोदी सरकार के पहले और दूसरे कार्यकाल में कुल 25 लाख करोड़ रुपए राइट ऑफ किए गए हैं. वहीं रोजगार और देश की जीडीपी में निजी क्षेत्र से ज्यादा हिस्सेदारी निभाने वाले एमएसएमई सेक्टर नोटबंदी के बाद बरबाद हो गया है. जिससे करोड़ों मजदूर-कर्मचारी बरबाद हो गए हैं. इनकी बरबादी का फायदा चीन से बने उत्पादों और उनको आयात करने वाले इंपोर्टरों ने उठाया है. बिजली,खिलौने, और घरेलू इस्तेमाल से जुड़े उपकरण बनाने वीला छोटी कंपनियां तबाह हो गई हैं. इनसे जुड़े कारीगर, तकनीशियन अपना काम-धंधा छोड़ फेरी लगाने को मजबूर हो गए हैं.
ऐसा नहीं है कि सरकारी संपत्तियों को बेच कर निजी क्षेत्र का विकास हुआ है. आज भी निजी क्षेत्र के मुकाबले युवा सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियां पसंद कर रहे हैं. ये निजी क्षेत्र के लिए शर्मनाक है. श्रम कानूनों को पूंजीपतियों के हित में बदल कर, छंटनी की सुविधा, वेतन और स्वास्थ्य समेत अन्य सुविधाओं में कटौती का अधिकार दे दिया गया. जिसकी वजह से युवा प्रतिभाओं को आज भी निजी क्षेत्र आकर्षित नहीं कर पा रहा है.
इससे ये भी साबित होता है कि मोदी सरकार देश के संसाधनों को ऐसे हाथों में सौंप रही है, जो इसका सिर्फ अपने मुनाफे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.
इस तरह आपकी बेरोजगारी और महंगाई का अडानी की सरकार और मोडानी की कंपनियों से सीधा रिश्ता है..
राहुल गांधी ने बेरोजगारी और महंगाई के खिलाफ लड़ाई को इसीलिए अडानी की सरकार बनाम हिंदुस्तानी की सरकार बना दिया है.