राजगढ़ लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह को स्ट्रांग रूम के निरीक्षण से मालूम हुआ कि सिर्फ़ राजगढ़ में इस्तेमाल हुए SLU (सिम्बल लोडिंग यूनिट) स्ट्रांग रूम से ग़ायब हैं, जांच में पता चला कि निर्वाचन आयोग ने राजगढ़ के इन यूनिट्स को पड़ोसी लोकसभा गुना के स्ट्रांग रूम में भेजा गया है. इस गंभीर ऐतराज जताते हुए दिग्विजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है.
उनका कहना है कि जब अदालत ने इन यूनिट्स को लोकसभा के स्ट्रांग रूम में ही अगले 45 दिनों तक संरक्षित रखने का आदेश दिया है तब राजगढ़ के ही इन यूनिट्स को ही निर्वाचन आयोग ने कहीं और क्यों भेजा है. उन्होने पूछा है कि ये पूरी कार्यवाही किसके इशारे पर की जा रही है
यही नहीं, 19 अप्रेल से लेकर अब तक नागरिकों के दबाव के बाद निर्वाचन आयोग ने बताया है कि चार चरणों के मतदान में 45.1 करोड़ मतदाताओं ने हिस्सा लिया. जबकि हर बार मतदान खत्म होने के एक या दो दिन के भीतर चुनाव आयोग रजिस्टर्ड वोटरों की अंतिम संख्या के साथ वोट प्रतिशत जारी कर दिया करता था.
मुख्य चुनाव आयुक्त औऱ दूसरे आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को बाहर किए जाने के कानून के बाद आयोग का रवय्या पीएमओ के तहत आने वाले किसी सरकारी विभाग की तरह हो गया है.
वैसे भी मोदी सरकार को आंकड़ों से सख्त चिढ़ है. चुनाव आयोग ने भी 2019 तक चली आ रही प्रक्रिया को किसी नागरिक या राजनीतिक दल को जानकारी दिए बगैर बदल दिया.
चुनाव आयोग ने पहले चरण के मतदान के 11 दिन और दूसरे चरण के चार दिन बाद फायनल वोटर प्रतिशत की जानकारी जारी की. लेकिन संख्या नहीं बताई.
अब चुनाव आयोग ने मोटे-मोटे तौर पर बताया है कि चार चरणों के मतदान में 45 .1 करोड़ वोटरों ने मतदान किया है. जाहिर है कि निर्वाचन आयोग सभी राज्यों और लोकसभा सीटों से आंकड़े इकट्ठा करने के बाद ही वोट डालने वाले कुल मतदाताओं की संख्या बता रहा है.
चुनाव आयोग अब भी लोकसभा क्षेत्रवार कुल पंजीकृत वोटरों और वोट डालने वाले मतदाताओं के वोट प्रतिशत के अलावा अलग-अलग संख्या बताने को तैयार नहीं है.
इससे भी गंभीर बात ये सामने आई है कि पहले दौर के जो आंकड़े चुनाव आयोग ने जारी किए हैं, उनमें फायनल वोटर प्रतिशत के हिसाब से एक करोड़ मतदाताओं की अतिरिक्त तादाद बढ़ी हुई है.
पहले चरण के चुनाव में एक करोड़ अतिरिक्त वोटरों का फायनल टेली में जुड़ना सभी को रहस्यमय लग रहा है.
संदेह और सवाल करना लोकतंत्र का बुनियादी अधिकार है. जिस दिन सवाल खड़े करना बंद हो जाएंगे, लोकतंत्र ध्वस्त हो जाएगा. ऐसे में किसी भी प्रश्न और जिज्ञासा के जवाब में चुनाव आयोग को अपनी पारदर्शिता से अपनी साख की रक्षा करना पहली और अहम जिम्मेदारी है. लेकिन चुनाव आयोग का अड़ियल रवय्या भी इसी संदेह को मजबूत करता है.
आयोग ने ये संख्या भी सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई से एक दिन पहले जारी की है. आयोग का ये रवय्या अपने आप में आयोग की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है.
एलायंस फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स नामकी स्वयंसेवी संस्था ने याचिका में कहा है कि “30 अप्रैल, 2024 के पोल पैनल के प्रेस नोट में 5 प्रतिशत से अधिक के असामान्य संशोधन ने उक्त डेटा की शुद्धता के बारे में चिंताओं और सार्वजनिक संदेह को बढ़ा दिया है।”
याचिका के मुताबिक “ईसीआई द्वारा 30 अप्रैल, 2024 को अपनी प्रेस विज्ञप्ति में प्रकाशित डेटा उस दिन शाम 7 बजे तक ईसीआई द्वारा घोषित प्रारंभिक प्रतिशत की तुलना में मतदान में तेज वृद्धि (लगभग 5-6%) दर्शाता है”
इन खामियों को लेकर पांच पत्रकार संगठन- प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन वुमैन प्रेस कॉर्प,फॉरेेन करस्पांडेंट क्लब, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट और प्रेस एसोसिएशन ने भी चुनाव आयोग से संदेह दूर करने और अगले चरणों में पारदर्शिता बरतने की अपील की है. प्रेस संगठनों का कहना है कि अपने पाठकों तक पूरी और स्पष्ट जानकारी पहुंचाना प्रेस का धर्म है.
मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और दीपंकर दत्ता की बेंच में होनी है. इसी बेंच ने वीवीपैट और ईवीएम को लेकर विपक्ष और स्वंयसेवी संस्थाओं की चिंता को दरकिनार कर चुनाव आयोग पर भरोसा जारी रखने की नसीहत दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर करने वाली संस्था एडीआर पर भी प्रतिकूल टिप्पणी की थी. यहां येे बताना लाजिमी होगा कि इसी संस्था की कोशिशों से जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच ने दुनिया के सबसे बड़े वसूली घोटाले “इलेक्टोरल बांड” का खुलासा करने को सरकार को मजबूर कर दिया था.
लेकिन जस्टिस खन्ना और जस्टिस दत्ता के रुख को देखते हुए चुनाव आयोग मनमानी पर उतर आया है.
सुप्रीम कोर्ट ईवीएम-वीवीपैट मामले में दिए फैसले में कुछ अहम मुद्दों को लेकर एक रिव्यू पिटीशन भी डाली गई है.
वहीं ईवीएम को लेकर अब भी चुनाव आयोग राजनीतिक दलों से संवाद को तैयार नहीं है, बल्कि कई खामियां एक के बाद एक सामने आ रही हैं.
एक हैरानी की बात और सामने आई है.
चुनावी प्रक्रिया पर नज़र रखने वाले मुंबई के एक आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन एस रॉ़य ने पहले के मुकाबले कम ईवीएम इस्तेमाल किए जाने पर सवाल उठाए हैं. उनका कहना हैै कि पहले के मुकाबले 7 करोड़ से ज्यादा मतदाता बढ़े हैं और मतदान केंद्र भी, ऐसे में ईवीएम कम लगाने के पीछे क्या तुक है.
उनके मुताबिक “2019 की तुलना में 7.2 करोड़ मतदाताओं की वृद्धि और 15000 मतदान केंद्रों की बढ़ोत्तरी के बावजूद आयोग ने 2024 के चुनावों के लिए लगभग 2.05 लाख ईवीएम कम आवंटित किए हैं. इसके पीछे वास्तव में क्या तर्क है? क्या ईवीएम अचानक पहले से ज्यादा स्मार्ट हो गई हैं? यदि आयोग के पास इसके लिए कोई स्पष्टीकरण है, तो यह सार्वजनिक डोमेन में होना चाहिए. इस संवैधानिक संस्था से इसी प्रकार की पारदर्शिता की अपेक्षा की जाती है.”
मनोरंजन ऱॉय के मुताबिक निर्वाचन आयोग की प्रेस विज्ञप्ति से पता चलता है कि 2019 और 2024 के बीच 7.2 करोड़ मतदाताओं की वृद्धि हुई है. ऐसा लगता है कि इस बढ़ोत्तरी के आधार पर 2024 के चुनावों के लिए देश भर में कुल 15000 नए मतदान केंद्र जोड़े गए हैं, जिससे वास्तविक मतदान केंद्रों की संख्या 10.35 लाख से बढ़कर 10.50 लाख हो गई है. हालांकि, अजीब बात यह है कि इन मतदान केंद्रों पर तैनात की जाने वाली ईवीएम की संख्या में कोई आनुपातिक वृद्धि नहीं हुई है.
उन्होंने मीडिया से चर्चा के दौरान आगे बताया कि “ईवीएम के उपयोग पर 2019 की प्रेस विज्ञप्ति में, ईसीआई ने ईवीएम का गठन करने वाली विभिन्न इकाइयों का विवरण दिया था. 10 मार्च, 2019 की उस प्रेस रिलीज में निम्नलिखित विवरण के साथ कुल 57.05 लाख मशीनें सूचीबद्ध की गई थीं. बैलेट यूनिट (बीयू) – 23.3 लाख, कंट्रोल यूनिट (सीयू) – 16.35 लाख और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल्स (वीवीपीएटी) -17.4 लाख.
ईसीआई द्वारा ईवीएम पर प्रकाशित मैनुअल में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि “ईवीएम का मतलब बैलेट यूनिट, कंट्रोल यूनिट और वीवीपैट यूनिट है”। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस परिभाषा को दोबारा दोहराया है.
इस परिभाषा के अनुसार, 2019 के चुनावों में तैनात ईवीएम की कुल संख्या 57.05 लाख थी. लेकिन, ईसीआई की 2024 की प्रेस विज्ञप्ति में केवल यह बताया गया है कि 2024 के चुनावों में 55 लाख ईवीएम का उपयोग किया जा रहा है। ईसीआई की विभिन्न घोषणाओं और प्रेस विज्ञप्तियों के अवलोकन के बावजूद विभिन्न घटकों – बीयू, सीयू, वीवीपीएटी – के संदर्भ में कोई वर्गीकरण नहीं पाया जा सका.
जाहिर है कि निर्वाचन आयोग की पारदर्शिता सवालों के घेरे में है.
माना जा रहा है कि देश की संवैधानिक संस्था मोदी के दबाव में है..
जाहिर है कि लोकतंत्र खतरे में है..निष्पक्ष चुनाव नहीं तो लोकतंत्र नहीं..
और सबसे बड़ा सवाल देश के प्रधानमंत्री की साख का है…
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के झूठ, और उनकी सरकार नीति और नीयत से देश की जनता का भरोसा उठ चुका है.
ऐसे में मोदी सांप्रदायिकता फैला कर और विपक्ष की आलोचना कर जनता को एक बार फिर गुमराह करना चाहते हैं.
लेकिन जनता-जनार्दन ने मन बना लिया है-
4 जून के बाद…मोदी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे….