अब यह बात हमारे हक की – अब पहली नौकरी होगी पक्की

भारत में प्रतिभाओं की भरमार – पर बेरोजगारी ले जाए सागर पार

दुनियाँ के किसी भी कोने में यदि उत्कृष्ट वैज्ञानिकों, इंजीनियरों अथवा अन्य किसी प्रतिभा की तलाश होती है तो भारतवर्ष इस तलाश की एक महत्वपूर्ण मंजिल रहती है। विश्व के अनेक महत्वपूर्ण पदों पर आज भारतीय मूल के व्यक्ति सुशोभित है। यद्यपि विदेशों की ओर प्रतिभा पलायन कोई नया संकट नहीं है पर विगत १० वर्षौं में इसमें अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। यह कारनामा इस सरकार द्वारा रोजगार सृजन की लगातार की जा रही उपेक्षा की परिणिति है जिसमें लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार ने कुछ नए अध्याय जोड़ दिए हैं। इलेक्टोरल बांड के खुलासे के बाद यह निष्कर्ष और भी  प्रबल हो गया है।

भारत में प्रतिभाओं की भरमार – पर खड़े कतार में हैं बेकार

दुनियाँ के किसी कोने में यदि किसी को भीड़ अथवा निरन्तर प्रतियोगिता का माहौल देखना है तो भारतवर्ष का कोई भी कोना इसकी बानगी देने में सक्षम है। यहाँ शादी करनी है मैरिज हाल की लाइन, बच्चा हो तो मैटरनिटी होम की लाइन, बच्चा बड़ा हो तो अच्छे विद्यालय की लाईन, प्रोफेशनल कोर्स में लाइन और पढ़ने के बाद नौकरी की लाइन। आखिर हर कोई तो अमिताभ बच्चन तो है नहीं जो कह सके कि हम जहाँ खड़े होते है लाइन वहीं से शुरू होती है भारतवर्ष में जहाँ बढ़ती आबादी एक समस्या है वहीं इससे उपजी दूसरी समस्या बेरोजगारी की है। देश का दुर्भाग्य है कि इस सरकार के शासनकाल में यह एक विकराल रूप धारण कर चुकी है।

कहने को है एक बेकार – पर संकट में सारा परिवार

 हर घर इससे पीड़ित है क्योंकि वहाँ कोई न कोई ऐसा नवयुवक या युवती मौजूद है जिसकी आंखे हर दिन अपनी जीविकोपार्जन की राह देखते देखते पथरा गई हैं। इस पर पकौड़े तलने के व्यवसाय वाले वक्तव्य ने जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है। यह सलाह देने वाले भूल गए कि यदि हर कोई पकौड़े बेचेगा तो खाएगा कौन। पैसा आएगा कहाँ से। आज प्रधानमंत्री मुद्रा योजना से अपने व्यवसाय को आसमानी ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाला कोई उदाहरण विगत १० वर्षौ में कोई नहीं है। यदि औसत वितरित धनराशि के विवरण पर ध्यान दें तो पाएंगे कि यह लगभग ५५,००० रुपये  से लेकर ६२००० रुपये के आसपास है जो कि इस सरकार के पकौड़ा व्यवसाय की मनस्थिति को ही चरितार्थ करता है। अब यह यक्ष प्रश्न है कि अन्ततः वह पैसा गया कहाँ , और क्या यह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल रहा।

यहाँ से प्रारंभ होती है एक नवयुवक के जीवन की जद्दोजहद जब वह इतनी लाइनों से जूझता हुआ व्यवसाय की लाइन में पहुंचता है और धक्के खाता हुआ अपने यौवन को गुजरता हुआ देखता रहता है। एक बेरोजगार युवक स्वयं तो निराशाग्रस्त रहता ही है अपितु वह उस संपूर्ण परिवार को अवसादग्रस्त कर देता है। वृद्ध पिता जिसने अपनी जवानी का एक बड़ा हिस्सा इस बालक को युवा बनाने में लगाया, उस वृद्धा माता के ऊपर दुःखों का जैसे पहाड़ टूट पड़ा हो जिसने इस संतान के लिए अपने दिन रात एक कर दिए।

काश कि सरकार अतिरिक्त रोजगार  व्यवस्था की ओर अपनी संवेदना दिखाती।

अब यह बात हमारे हक की – पहली नौकरी अब होगी पक्की 

जनता के इस दर्द को कांग्रेस ने पहचाना और उनका पहली नौकरी पक्की एक ऐसी अवधारणा है जो वस्तुतः एक तीर से दो शिकार को चरितार्थ करती है। जहाँ एक ओर यह रोजगार का अवसर प्रदान करती है वहीं दूसरी ओर यह उन्हें एक परिपक्व उद्यमी बनने में मदद करती है। उन माता पिता को वृद्धावस्था के इस दौर में निराशा के भंवर से बाहर रखती है। यह पक्की नौकरी का वादा जो कांग्रेस अधिकार स्वरूप दे रही है वह शिक्षा के दौरान भी युवाओं को शिक्षा के दौरान उनकी एकाग्रता को और बढ़ाने में सहायक होगा।

कांग्रेस ने इस योजना के बारे में काफी सोचा होगा कि इसको कैसे अमल में लाएंगे। कांग्रेस की यही सोच युवाओं में एक नया जोश भरेगी, ऐसा कांग्रेस का मानना है जो काफी हद तक सही हो सकता है। मेरे अनुसार यह उस संपूर्ण परिवार के लिए एक संजीवनी के समान है।

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