घिरते जा रहे हैं पीएम मोदी,  टूटता जा रहा है लगातार आत्मविश्वास…

                                  

 घिरते जा रहे हैं पीएम मोदी,  टूटता जा रहा है लगातार आत्मविश्वास…

 

 

                             प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चार सौ पार का नारा अपने आप में टूटते आत्मविश्वास की ओर इशारा कर रहा है. अंग्रेजी में कहावत है कि बेस्ट डिफेंस इज़ गुड ऑफेंस. खबरों के मुताबिक आरएसएस का आंतरिक सर्वे भी 180 से  214 सीटों का ही आकलन कर रहा है. जाहिर है कि अपनी छवि बचाने और कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने के लिए चार सौ पार के नारे की बात कही गई है. 

   परसेप्शन की राजनीति करने वाली बीजेपी को हवा बनाए रखने के लिए भी इसी तरह का नारा देना ज़रूरी है. ये अलग बात है कि दस साल की एंटी इंकबेंसी, चालीस साल के चरम पर बेेरोजगारी, महंगाई, सौ साल में सबसे ज्यादा बढ़ी अमीर-गरीब की खाई और भ्रष्टाचार से  प्रधानमंत्री की बनाई गई लार्जर देन लाइफ की छवि पिचक चुकी है. और इसका सुबूत खुद पीएम मोदी के बेदम भाषण हैं. 

दूसरी अहम बात है कि प्रधानमंत्री अब बचाव की मुद्रा में नज़र आने लगे हैं.  क्योंकि पिछले दस साल में जिस तरह से गैर बीजेपी दलों की सरकारों, संगठन औऱ नेताओं को तोड़ा गया है, उससे मोदी की छवि निखरने के बजाय उनकी कलई खुल गई है. 

राहुल गांधी समेत विपक्ष के नेताओं के खिलाफ प्रतिशोधपूर्ण कार्रवाई, और अपमानजनक बर्ताव, सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग, संवैधानिक संस्थाओं को कठपुतली बनाने की मोदी सरकार की कोशिशों से मोदी और बीजेपी की छवि और बिगड़ी है. खुद को कड़े फैसले लेने वाला बता कर अपने तानाशाहीपूर्ण रवय्यै को सही ठहराना जनता के गले नहीं उतरा है. 

उनकी महामानव वाली छवि को सबसे बड़ा झटका इलेक्टोरल बांड के खुलासे से लगा है. चंदा दो, धंधा लो, ठेका लो, रिश्वत दो, हफ़्ता वसूली और  फ़र्ज़ी कंपनी के जरिए बीजेपी ने दुनिया का सबसे बड़ा वसूली रैकेट चलाया था. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के शब्दों में प्रधानमंत्री मोदी इस घोटाले के सरगना हैं.

पीएम मोदी के माथे पर तनाव साफ झलकने लगा है. उनकी आवाज़ में ना वो गरज नहीं रही, ना चेहरे पर चमक, राहुल गांधी पत्रकारों से कहते हैं कि आप उनकी आंखों में झांक कर देखोगे तो आपको इलेक्टोरल बांड का सच पता चल जाएगा. दरसल चोरी खुल जाने के बाद जिस तरह से एक चोर दलील देता है, बिल्कुल उसी तरह से मोदी अब इलेक्टोरल बांड पर सफाई देते नज़र आ रहे हैं.

प्रधानमंत्री की खोखली दलील है कि “ चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए वे इलेक्टोरल बांड स्कीम लाए हैं. इसका विरोध करने वालेे बाद में पछताएंगे”. बेशर्मी की हद ये है कि चोरी पकड़े जाने पर प्रधानमंत्री उसी तरह सीनाजोरी कर रहे हैं जैसे  कि एक चोर पकड़े जाने के बाद कहे कि  अगर उसने सीसीटीवी में अपना चेहरा दिखाया न होता तो चोरी पकड़ी न जाती.

सच्चाई सभी जानते हैं कि मोदी  सरकार के अटॉर्नी जनरल आर रमणी ने 31 अक्टूबर, 2023 को अदालत में साफ कहा था जनता को दानदाताओं की जानकारी पाने का कोई हक नहीं है. 

इलेक्टोरल बांड को अवैध घोषित किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को  सारी जानकारियां उपलब्ध कराने और चुनाव आयोग से उन्हें सार्वजनिक करने का आदेश दिया था. लेकिन एसबीआई ने जिस तरह हीलाहवाली की, वो किसी से छिपा नहीं है. सब जानते हैं कि ये सब पीएम मोदी के इशारे पर हुआ है.

पीएम मोदी दानदाताओं की जानकारी सुरक्षित रखने को अपनी ईमानदारी के तौर पर दिखा रहे हैं, जबकि ये उनकी निजी बेईमानी है. इलेक्टोरल बांड कानून में साफ तौर पर लिखा है कि सरकार दानदाताओं की जानकारी अपने पास नहीं रखेगी. अगर सुप्रीम कोर्ट दबाव न डालता तो दुनिया के सबसे बड़े वसूली रैकेट का खुलासा नहीं हो पाता. हालत ये है कि बीजेपी ने किन तरीकों से इस चंदे की वसूली की है, इस पर मोदी समेत बीजेपी का कोई नेता मुंह खोलने की हालत में नहीं है.

दरअसल मोदी सरकार को ये जानने में ज्यादा दिलचस्पी रही है कि विपक्ष को किस-किसने चंदा दिया. लिहाजा कानून के खिलाफ जा कर  मोदी सरकार ने सारी जानकारियां अपने पास रखी. यही नहीं, विपक्ष की रसद रोकने के इरादे से पहले भी वित्त मंत्रालय को एसबीआई ने मांगी गई जानकारियां  24 घंटे के भीतर  उपलब्ध करा दी थीं.

इलेक्टोरल बांड से बड़े-बड़े ठेकों की रिश्वत.दवा कंपनियों को छूट दिलाने की घूस, ईडी-सीबीआई की कार्रवाई से राहत की रिश्वत औऱ कालेधन से चुनावी चंदा लेने वाले इस वसूली रैकेेट की खबर ने मोदी समेत बीजेपी की छवि मिट्टी में मिला दी है.

अब मोदी, झूठ का साक्षात अवतार समझे जाने लगे हैं. झूठ बोलना, बार-बार झूठ बोलना और वादे से पलट जाना कोई उनसे सीखे. पांच राज्यो मेें चुनाव के वक्त एमएसपी की कानूनी गारंटी का वादा कर चुनाव जीतने के बाद मुकर जाने से पीएम मोदी की छवि को निजी तौर पर भी भारी नुकसान हुआ है. 

अहम बात ये है कि पिछले दस साल से अब तक अपनी हर नाकामयाबी के लिए नेहरू, इंदिरा, राजीव गांधी और राहुल गांधी  को कठघरे में खड़ा करने वाले पीएम मोदी को अब प्रायोजित इंटरव्यू के जरिए अपने ही कामों को लेकर सफाई पेश करनी पड़ रही है.

उनके अब तक के बयानों और नैरेटिव पर नज़र डालें तो  साफ है कि पीएम मोदी अब खुद को कठघरे में खड़ा पा रहे हैं. और अपनी सफाई देने के मौके तलाश रहे हैं.

यही नहीं, ध्यान बंटा कर उल्लू सीधा करने में माहिर मोदी इधर-उधर की बात कर रहे हैं, लेकिन विपक्ष साफ पूछ रहा है कि तू ये बता कि कारवां लुटा क्यों.

विकसित भारत के दावे की हवा तो पहले ही निकल चुकी है, पंद्रह लाख, और हर साल दो करोड़ नौकरियां, किसानों की आय़ दोगुना, विदेशों से काला धन, मित्रों को आर्थिक मदद के लिए सौ स्मार्ट सिटीज के वादे हवा-हवाई साबित हो चुके हैं. 

अब मोदी अगले पांच साल के रोड मैप की बात कर रहे हैं. मोदी सरकार पिछलेे दस साल में बेरोजगारी और महंंगाई जैसे जनता के जरूरी मुद्दों को नहीं साध सकी. ऐसे में जनता पर इस जुमले का असर नहीं हो रहा है. 

बीजेपी अपने विभाजनकारी  एजेंडे को साधने का दम भर रही है, जिसमें धारा 370, तीन तलाक, राम मंदिर, और सीएए को अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश कर रही है. लेकिन मोदी को सत्ता में लाने वाले युवा वर्ग को संतुष्ट करनेे के लिए ये कामयाबियां नाकाफी हैं.

पीएम मोदी की सबसे बड़ी तकलीफ ये है कि राम मंदिर को लेकर उन्हें देश भर मेें बीजेपी के पक्ष में लहर खड़ी होने की उम्मीद थी. लेकिन दो बार भावनाओं के आधार पर धोखा खा चुकी जनता इस बार मुद्दों के आधार पर वोट करने का मन बना चुकी है.

तिरासी फीसदी युवा आज  बेरोजगार है. इस युवा वर्ग को रोजगार देने के लिए मोदी के पास कोई शिगूफा बचा नहीं है. मोदी की गारंटी रोजगार पर मौन है. अग्निवीर योजना ने आग में घी का काम किया है. युवाओं का ये वर्ग मोदी सरकार का मुखर विरोधी बन चुका है. जबकि कांग्रेस ने तीस लाख सरकारी नौकरियां भरने की गारंटी दी है. हर ग्रेजुएट, डिप्लोमा होल्डर को एक लाख रुपए के सालान वेेतन पर एप्रेंटिसशिप की गारंटी भी दी है.

पीएम मोदी महंगाई पर भी चुप हैं. प्रायोजित इंटरव्यू में भी एक लफ्ज़ भी नहीं बोल पाए हैं.  जबकि महंगाई की मार ने गरीब को और गरीब बना दिया है. अगर 27 करोड़ को मोदी ने गरीबी की रेखा से निकाला है तो उनसे पूछा जा रहा है कि 80 करोड़ लोगों को पांच किलो अनाज देने की ज़रूरत क्या है.

 खेतिहर और ग्रामीण मजदूर को मनरेगा से काफी राहत थी, लेकिन दिनोंदिन राज्यों को मनरेगा का भुगतान रोक कर योजना को बंद करने के लिए मजबूर किया जा रहा है  बढ़ती  महंगाई के अनुपात में मिलने वाली  औसत मजदूरी परिवार के भरण-पोषण के लिए नाकाफी है.  कांग्रेस ने 400 रुपए औसत मजदूरी लागू करने की गारंटी दी है. इसी दर पर मनरेगा के तहत भी मजदूरी दी जाएगी.

     मोदी और बीजेपी बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार समेत  राष्ट्रीय मुद्दों पर कोई चमकदार वादा इजाद करने में नाकाम रही है. ऐसे में  क्षेत्रीय मुद्दे तलाशे जा रहे हैं. वहां भी हर कमी के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार बता रहे हैं. ठोस वादे के बजाय  हवाई वादे कर रहे हैं. अपनी चुनावी रैली में पीएम मोदी अपने भाषणों से पश्चिमी यूपी के गन्ना किसानों को कोई राहत नहीं दे सके हैं. चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने को भी लोग चुनावी कवायद मान रहे हैं. 

इसी तरह  उत्तराखंड में जनरल बिपिन रावत के सम्मान की बात कह कर भावनात्मक शोषण की कोशिश की. लेकिन जनरल रावत, उनकी पत्नी समेत कई जवानों की जान लेने वाले हैलीकॉप्टर हादसे की आधी-अधूरी जांच को लेकर भी लोगों में नाराजगी है. ओआरओपी को लेकर अभी भी भ्रम बरकरार है. राजस्थान में में पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना पर अमल का इंतजार है.

यूपी, राजस्थान और पीएम मोदी के गृह प्रदेश  गुजरात समेत हर राज्य में जनता ने बीजेपी के प्रत्याशियों का जिस तरह से विरोध होना शुरू हो गया है, उससे साफ है कि     भारतीय जनता पार्टी और सूट-बूट और लूट की सरकार के अच्छे दिन अब जाने वाले हैं.

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