जी जान से संसदीय लोकतंत्र को हराने में जुटा है निर्वाचन आयोग

2024 के चुनाव सही मायने में लोकतंत्र,संविधान और आरक्षण को बचाने का आखिरी चुनाव है. और क्यों ना हो, चुनाव आयोग खुद लोकतंत्र को हराने और नागरिकों के मताधिकार छीनने की हरसंभव कोशिश में जुटा है.

सत्तापक्ष को वॉकओवर दिलवाने के लिए चुनाव अधिकारी पर्चे खारिज कर रहे हैं. एक तरफ हर नागरिक को वोट देने का कर्तव्य सिखाया जा रहा है तो दूसरी तरफ मतदान केंद्र पर पहुंचे मतदाताओं को हर तरीके से हतोत्साहित किया जा रहा है. मतदान इतना सुस्त कराया जा रहा है कि लोग वोट डाले बगैर घर लौट जाएं. यही नहीं मतदान केंद्र में  चुनाव आयोग या सत्तारूढ़ पार्टी का व्यक्ति खुद ही वोट डाल रहा है और मतदाता हक्काबक्का ठगा सा वापिस लौट रहा है. 

लोकतंत्र को हराने का चुनाव आयोग का जज्बा देखिए कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की संसदीय सीट पर मतदान में 43 ईवीएम मॉक पोल में फेल पाई गईं.  ईवीएम भले ही बदल दी गई हों लेकिन इस दौरान मतदाताओं के उत्साह में आई कमी का खामियाजा तो संसदीय लोकतंत्र को ही भुगतना है.

चुनाव आयोग का कलेजा देखिए कि चुनाव के पांचवें चरण में रायबरेली में मतदान हो जाने पर मालूम हुआ है कि कांग्रेस के बूथ एजेंट्स को निर्वाचन अधिकारी 17-सी फॉर्म देने को तैयार नहीं हुए.  यही नहीं ईवीएम-वीवीपैट का मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर उठाने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील और रामपुर से उम्मीदवार महमूद प्राचा को भी 17-सी फॉर्म नहीं दिया गया.

पुलिस-प्रशासन का ये हाल है कि रायबरेली के ही खराखव गांव में बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस के बूथ एजेंट का बस्ता ही छीन लिया,  बूथ नंबर 312 314,315,316, औऱ 317 में भी बस्ते छीन लिए गए. गुरुबख्शगंज के हजीरपुर में तो कांग्रेस के एजेंट को जम कर पीटा गया. बीजेपी प्रत्याशी के भाई खुल कर मतदाताओं को धमकाते नज़र आए.  

 रायबरेली के ही लालगंज के सूदन खेड़ा गाँव में चमार और पासी समाज के लोगों को वोट डालने से रोकने, मारपीट करने और मोबाइल व पर्स छीनने की घटनाएं प्रकाश में आई है. तो जालौन और कोशांबी में तो बीजेपी कार्यकर्ताओं के दलितों के घरों में घुस कर मारपीट के वीडियो तक सामने आए.

बिहार के सारण में आरजेडी का एक कार्यकर्ता बीजेपी के गुंडों की गोलीबारी  से मारा जाता है. बीजेपी प्रत्याशी और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी टीवी चैनल में इसे सेल्फ डिफेंस बताते हैं.

वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह रायबरेली को लेकर मीडिया को भरोसा देते नज़र आते हैं कि बीजेपी प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह जीत कर ज़रूर आएंगे.

चुनाव आयोग किस तरह नागरिकों के मताधिकार की हत्या कर रहा है, इसकी जीती जाती मिसाल महाराष्ट्र में देखने को मिल रही है.

नॉर्थ  मुंबई से लेकर कई दूसरे इलाकों में मतदान केंद्रों में  लंबी-लंबी कतारें देर शाम तक नज़र आती रहीं. लोगों को दो घंटे से ज्यादा वोटिंग करने के लिए इंतज़ार करना पड़ा. शिवसेना नेेता उद्धव ठाकरे ने लोगों से सब्र रख कर वोट दे कर ही घर जाने की अपील की. यहां चुनाव आयोग की हर संभव कोशिश थी कि कम से कम मतदान हो. जानकारों का मानना है कि मतदान प्रक्रिया जानबूझ कर धीमी की गई.

 ये पहला मौका नहीं है, पहले और दूसरे चरण मेंं मुस्लिम बहुल इलाकों में भी यही रणनीति चुनाव आयोग ने अपनाई. यहां आयोग और पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत साफ नज़र आई. 

पुलिस मतदाताओं के वोटरकार्ड चेक कर रही थी. जिनके पास वोटर कार्ड है, आधार कार्ड नहीं, या जिनके पास आधार कार्ड है लेकिन वोटर कार्ड नहींं, उन्हें वापिस लौटा दिया गया था. कम ही लोग हिम्मत जुटा पाते हैं, जो पुलिस-प्रशासन से भिड़ कर  मतदान करने का दबाव बना पाते हैं. 

कुछ जगह तो पुलिस ने बुर्के उतरवा कर महिलाओं की पहचान का तरीका अपनाया गया

सत्तापक्ष विरोधी मतदाताओं की पहचान कर मतदाता सूचियों से उनका नाम हटा देना तो बहुत पुराना अंदाज़ रहा है. लेकिन अब ये काम पन्ना प्रमुख योजना के तहत खुल कर करवाया जा रहा है. जब तक वोटर जागता है और मतदान केंद्र पहुंचता है, तब तक उसका वोट कट चुका होता है. 

अशिक्षित और गरीब वर्ग का वोट हरने का काम भी जम कर हुआ है. वोटर को पोलिंग बूथ में पहुंचने पर पता चलता है कि उसका वोट कोई और डाल कर जा चुका होता है. 

“हम वोट डालने पहुँचे तो बोले हमरा वोट डाल चुका है कोई” झांसी के बड़गांव की गीता राजपूत बड़े भोलपन और लाचारी से बता रही हैं.

अब तो पीठासीन अधिकारी तक बीजेपी कार्यकर्ता की ड्यूटी करते नज़र आए. फतेहपुर संसदीय सीट के जहानाबाद इलाके के बूथ नंबर 197 पर तो एक महिला ने पीठासीन अधिकारी पर ही आरोप लगा दिया. उसका कहना था कि पीठासीन अधिकारी  ने उसका वो गलत डलवा दिया.

फर्रूखाबाद में इस्माइलपुर के बूथ नंबर 117 में तो चुनाव आयोग को बीजेपी का नौकर साबित कर दिया.

यहां बीजेपी के नेतापुत्र ने एक साथ ईवीएम में आठ वोट डालते हुए लाइव स्ट्रीमिंग कर दी, जिसे बाद में कहा गया कि ये मॉक पोल के दौरान हुआ. मॉक पोल में नेता पुत्र को किसने पोलिंग बूथ के भीतर जाने की इज़ाजत दी.

कुछ जगह पर तो मतदान एक से डेढ़ घंटे तक रुका रहा, मतदाता बगैर छांव और बगैर पीने के पानी के इंतजाम के धूप में खड़ा रहा. चुनाव अधिकारी वोटिंग ब्रेक ले कर लंच करता रहा.

बांदा के खानकाह इंटर कालेज पोलिंग सेंटर पर 3 घंटे तक वोटर्स अपनी बारी का इंतजार करते रहे. ना पानी ही था, ना शामियाना था. वहीं इसी बांदा का एक वीडियो सामने आया, जिसमें पोलिंग एजेंट खुलेआम वोटरों को बता रहा है वोट कहाँ डालना है.

बीजेपी के कार्यकर्ता बूथ के गेट पर मोदी की फोटो वाली पर्चियां बांटना तो बेहद आम हो गया है.

झारखंड के चतरा लोकसभा के लातेहार जिला के महुआडांड़ प्रखंड के मौनाडीह बूथ के गेट पर पूरे दिन ये काम धड़ल्ले से होता रहा. वीडियो सोशल मीडिया पर चलता भी रहा. ये इतनी आम बात मान ली गई कि दूसरी पार्टियों के एजेंट भी सवाल उठाने की जरूरत नहीं समझते. 

वहीं केंद्रीय चुनाव आयोग की स्थिति ये है कि पुडुचेरी का सीईओ एक आरटीआई के जवाब में लिखता है कि फायनल वोटर टर्न ऑउट के आंकड़े चुनाव  प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही बताए जा सकते हैं. ये चुनाव आयोग की सीनाजोरी की मिसाल है.

चुनाव आयोग मोदी और बीजेपी को चार सौ पार कराने के लिए खुफिया तकनीक भी अपना रहा है.

पहले चरण के 11 दिन बाद और दूसरे चरण के चार दिन बाद फानल वोटर टर्न ऑउट परसेंटेज जारी किया. जबकि हमेशा ये अगले 48 घंटों में जारी कर दिया जाता था. वो भी टोटल रजिस्टर्ड वोटर और टर्न ऑउट की संख्या के साथ. 

2024 के चुनाव में निर्वाचन आयोग ने सिर्फ वोटर टर्न ऑउट परसेंटेज बताना शुरू किया, वो भी 11 दिन के गुणा-गणित के बाद.

चुनाव विशेषज्ञ समझ नहीं पा रहे हैं कि शाम सात बजे तक जारी किए अनुमानित आंकड़ों और प्रतिशत के बाद अंतिम आंकड़े और प्रतिशत में 5 से 6 फीसदी की बढ़ोत्तरी कैसे हो सकती है.

उससे भी ज्यादा हैरान करनी वाली बात ये हैं कि जब देश के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने आयोग के वकील से पूछा कि आप 17-सी फॉर्म के आंकड़ों के आधार पर ये अनुमानित प्रतिशत निकालते हैं तो वकील का जवाब था नहीं.

संंसदीय लोकतंत्र की हत्या की वारदात तब सामने आई जब चार चरणों के मतदान के बाद निर्वाचन आयोग ने बताया कि कुल 45.1 करोड़ मतदाताओं ने वोट डाले.

जब मीडिया ने मतदान के दिन के अनुमानित वोटिंग परसेंट और अंतिम आंकड़ों का मिलान किया तो मालूम हुआ कि इन चार चरणों में एक करोड़ अतिरिक्त मतदाताओं को शामिल किया गया है. 

ये आंकड़े लोकतंंत्र की हत्या के सच्चे सुबूत हैं. आंध्र प्रदेश की 25 सीटों पर मतदान में 17.2 लाख वोटर अधिक जोड़े गए.

महाराष्ट्र की 35 सीटों पर हुए मतदान में 16.7 लाख मतदाता जोड़े गए. केरल में 11.4 लाख, असम में 10.3 लाख, प.बंगाल-7.8 लाख, कर्नाटक-7.1 लाख,गुजरात-5.5 लाख,बिहार-4.6 लाख,एमपी-4.3 लाख, तमिलनाडु-3.9 लाख,राजस्थान-3.8 लाख,तेलंगाना-3.1 लाख, उत्तर प्रदेश-2.7 लाख,छत्तीसगढ़-2.4 लाख,उत्तराखंड-1.2 लाख,मणिपुर-1.2 लाख,और ओडिशा-1.1 लाख.

चुनाव आयोग पर इतना अविश्वास बढ़ गया है कि देश भर से लोग ट्वीट कर विपक्षी दलों को हर मतदान केंद्र से 17-सी फॉर्म इकट्ठा करने की सलाह दे रहे हैं.

चुनाव के पांचवे चरण के बाद भी चुनाव आयोग ने टोटल रजिस्टर्ड वोटर और वोटर टर्न ऑउट अनुमानित प्रतिशत ही बताया है. पांचवे चरण की 49 सीटों पर हुए मतदान के बाद रात को 7.45 को चुनाव आयोग ने अपने प्रेस नोट में 57.47 फीसदी मतदान बताया था, वहीं देर रात 11.45 को आयोग ने इसे बढ़ा कर 60.09 प्रतिशत कर दिया. साथ ही ये भी कहा कि अंतिम आंकड़े बढ़ सकते हैं. 

अब स्ट्रांगरूम के भीतर से भी आवाजें आना शुरू हो गई है.

बारामती से इंडिया गठबंधन प्रत्याशी और एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने ट्वीट कर बताया है कि जिस स्ट्रांगरूम  में ईवीएम रखी गई हैं, वहां 45 मिनट तक के लिए सीसीटीवी बंद कर दिया गया था. आने वाले दिनों में इस तरह की और भी घटनाएं सामने आना लगभग तय है. 

जाहिर है कि निर्वाचन आयोग ही लोकतंत्र को हराने और जनता से मताधिकार छीन कर मोदी के चार सौ पार की साजिश में जुटा है. ऐसे में आखिरी उम्मीद देश के मुख्य न्यायाधीश पर देश की नज़रें टिकी हुई है.

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