कत बिधि सृजीं नारि जग माहीं – पराधीन सपनेहु सुख नाहीं
महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी उपरोक्त पंक्तियों में जहां महिलाओं की तत्कालीन परिस्थितियों को दर्शाते हैं वहीं मुझे लगता है कि विगत १० वर्षों में भारत की प्रजा व नारियों की स्थिति भी कुछ भिन्न नहीं है। नारियां जहां निरंतर दुर्व्यवहार की शिकार हो रही हैं वहीं प्रजा की स्थिति भी कुछ भिन्न नहीं है।
पराधीन व्यक्ति एक ऐसे यंत्र की भाँति होता है जिसका संचालन दूसरे के हाथ में होता है. पराधीनता में रहकर व्यक्ति अपना अस्तित्व, स्वाभिमान, गौरव सब कुछ गँवा बैठता है. उसका जीवन करुण क्रंदन बनकर रह जाता है।
प्रजातंत्र में डाक्टर बाबा साहब अम्बेडकर जी ने संविधान में जहाँ हर व्यक्ति को सरकार बनाने के लिए मत देने का अधिकार दिया तथा
संविधान सभा ने उसपर अपनी स्वीकृति प्रदान की, उसके लिये भारत की आने वाली पीढ़ियां इन दोनों की ऋणी रहेंगी।
ईवीएम के माध्यम से वोटों की चोरी का जो अनोखा खेल चल रहा है उससे देश की जनता को मिले स्वतंत्र भारत के इस अधिकार का खुले आम हनन हो रहा है। जनता की इच्छा के विपरीत शासक बने रहने की इस प्रवृत्ति शाहों और तानाशाहों को जन्म देती है।
पुलिस की लाठी जिनकी भाषा – उनसे लोकतंत्र की कैसी आशा
तीसरे चरण में हुए मतदान व उसमें हुई धांधली के समाचार व अपुष्ट वीडियो देखकर ऐसा लगता है कि जैसे पहले २ चरणों में हुई गिरावट को जहां सत्ता पक्ष के लिए दुखद समाचार माना जा रहा था उसकी भरपाई के लिए तीसरे चरण में येन केन प्रकारेण जीतने के कुत्सित प्रयास का आगाज हो चुका है।
इस दौरान न केवल कुछ विशेष समुदाय के लोगों को न केवल मताधिकार से वंचित किया गया वहीं मतदाताओं पर लाठी चार्ज की घटना लोकतंत्र के दीर्घायु होने की आशा पर कुठाराघात है। इसमें संभल की घटना तथा उत्तर प्रदेश के एक बूथ अधिकारी के वीडियो, उत्तर पूर्व में १०० प्रतिशत से अधिक मतदान होना आदि का विशेष उल्लेख करना आवश्यक है जो खुले आम हो रही इस धांधली को दर्शाता है। यह स्वतंत्रता सेनानियों के स्वप्न को जहां चुरा लेने की चेष्टा है वहीं उनके बलिदान का अपमान है।
फर्जी वोटों की लूट है, ईवीएम से लूट
ईसी सोएगा उधर, तू वोटों को कूट।।
एक ओर जहां चुनाव आयोग व माननीय न्यायालय ईवीएम की वकालत करते हुए कुछ तथ्यों को नजरअंदाज करते प्रतीत हो रहे है तथा ईवीएम को आधुनिक काल की भारत की आवश्यकता बताने का प्रयास कर रहे है वहीं वर्तमान शासक कार्यपालिका के कुछ अधिकारियों से सांठ-गांठ कर हर प्रकार से चुनावों को प्रभावित करते दिख रहे हैं। मनमाने तौर पर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भी इस तानाशाही प्रवृत्ति का द्योतक है।
जहां माननीय प्रधान मंत्री जी का यह कथन कि पुरानी बैलेट पेपर की पद्धति में बूथ कैप्चरिंग होती थी वहीं यह भी सत्य है कि बूथ कैप्चरिंग में काफी संसाधनों के प्रयोग की आवश्यकता होती थी तथा बहुत प्रयासों के उपरांत भी यह एक संसदीय क्षेत्र में कुछ बूथों तक सीमित था पर ईवीएम के उपयोग ने इस बूथ कैप्चरिंग को काफी सुगम, तकनीकी व मितव्ययी बना दिया है। अब मात्र २ व्यक्ति अथवा एक प्रोग्रामर ही इसे अंजाम दे सकता है, ऐसा शक बना हुआ है। यह शक और सुदृढ़ हो जाता है जब इलेक्शन कमीशन ईवीएम को या इसके सोर्स कोड को जन सामान्य को परीक्षण हेतु देने से इंकार करता है।
ईवीएम का देते ज्ञान – बूथों पर फर्जी मतदान
एक तर्क दिया जाता है कि ईवीएम की शुरुआत कांग्रेस के शासन काल में हुई परन्तु यह भी एक सत्य है कि उन्होंने इस तकनीक का कभी दुरुपयोग नहीं किया। ईवीएम उनके हाथ होते हुए भी वह पूर्ण बहुमत न पा सके जो उनकी ईमानदारी का परिचायक है।
विगत १० वर्षों में इसके दुरुपयोग के अनेकों आरोप लगते रहते हैं व चुनाव आयोग का व्यवहार इन संदेह की जड़ों को पोषित करता है।
अब तीन चरणों के मतदान होने उपरांत जो निष्कर्ष निकाले जा रहे है उससे इस प्रकार की चुनावी धांधली की आशंकाएं बढ़ गई है। एक जाग्रत प्रजातंत्र में सभी को सजग रहने की आवश्यकता है।
तीन चरणों का मतदान -फर्जी वोटों से कैसी शान
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