कभी लोकतंत्र और वसुधैव कुटुंबकम की दुहाई देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 के आम चुनाव के पहले चरण के बाद से ही घृणा की राजनीति तेज़ कर दी है. राजस्थान के बांसवाड़ा में अल्पसंख्यकों के लिए इस्तेमाल की गई भाषा पर उनकी तुच्छ भाषा पर पूरा देश शर्मिंदा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले चरण के मतदान में ही हार के संकेत पाकर लगातार घृणा फैलाने वाले बयान तेज़ कर दिए हैं. उनमें से कुछ बयान जो देश के लोकतंत्र, संविधान और चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करते हैं उनका जिक्र यहां लाजिमी होगा.
राजस्थान में बांसवाड़ा की रैली में पीएम मोदी ने कहा कि “पहले जब उनकी सरकार थी तो उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है. इसका मतलब ये है कि आपकी मेहनत की कमाई का पैसा मुसलमानों को दिया जाएगा. क्या आपकी मेहनत की कमाई का पैसा घुसपठियों को दिया जाएगा. ये कांग्रेस का मैनिफेस्टो कह रहा है कि आपकी मेहनत की कमाई को वो जिनके ज्यादा बच्चे हैंं, उनको बांट देंगे, घुसपैठियों को बांट देंगे. वे माताओं और बहनों के सोने का हिसाब करेंगे, जानकारी लेंगे और उस संपत्ति को बांट देंगे. उनको बांटेंगे कि जिनको मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार उनका है”.
पीएम ने कहा कि “ये अर्बन नक्सल वाली सोच है, मेरी माताओं- बहनों ये आपका मंगलसूत्र भी बचने नहीं देंगे. इस हद तक चले जाएंगे”
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इसे हेट स्पीच की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि आज मोदी जी के बौखलाहट भरे भाषण से दिखा कि प्रथम चरण के नतीजों में INDIA जीत रहा है
सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की बात कह कर शांति के नोबल पुरुस्कार पर अपना दावा मानने वाले पीएम नरेंद्र मोदी के मुख मंडल पर सुशोभित होने वाले इन आशीर्वचनों की वजह जानना बेहद ज़रूरी है.
इंडिया गठबंधन का दावा है कि पहले दौर के मतदान में हार देख कर पीएम मोदी दूसरे चरण के चुनाव से ही हिंदू -मुसलमान पर उतर आए हैं. जाहिर तौर पर कांग्रेस पर नफरत के धारदार हथियारों से पीएम मोदी ने जो हमले शुरू किए हैं, उससे साफ है कि वो दक्षिण से साफ हैं और उत्तर में हाफ हैं.
ये बयान बता रहें हैं कि पीएम मोदी ने भी ये मान लिया है कि देश की जनता अब उन्हें विदाई देने पर आमादा है. लिहाजा वो सत्ता में बने रहने के लिए हर कुटिल नीति अपना रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, लिहाजा अब उन्हें अपनी सर्वमान्य छवि की कतई चिंता नहीं है. उनकी भाषा और भाव में सड़कछाप गुंडे वाला ओछापन नज़र आता है.
नरेंद्र मोदी ने मान लया है कि उनके पास मतदाताओं को अगले पांच साल उन्हें सत्ता में बिठाने के लिए विश्वास दिलाने वाला एक भी मुद्दा नहीं है
नरेंद्र मोदी को इस बात को लेकर बहुत घबराहट है कि जी भर कर हिंदू-मुसलमान और जय श्रीराम करने के बावजूद इंडिया गठबंधन बेरोजगारी, महंगाई, हिस्सेदारी,युवा,.महिला,किसान और श्रमिकों के मुद्दे पर अड़ी हुई है
सवाल ये भी है क्या वाकई पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने भाषण में कुछ ऐसा कहा था, जिसे मुद्दा बनाया जा सकता है.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 9 दिसंबर, 2006 को 11वीं पंचवर्षीय योजना और विकास पर चर्चा राष्च्री. विकास परिषद (एनडीसी) की 52वीं बैठक को संबोधित करते हुए कहा था कि
“हमारी सामूहिक प्राथमिकताएं बहुत साफ हैं.कृषि,सिंचाई,जल संसाधन, स्वास्थ्य,शिक्षा,ग्रामीण क्षेत्र के बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निवेेश, सामान्य आधारभूत ढांचे में आवश्यक सार्वजनिक निवेश, के साथ अनुसूचित जाति, जनजातियों, अन्य पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यक, महिलाओं और बच्चों के उत्थान के लिए कार्यक्रम, एससी,एसटी से जुड़ी सहायक योजनाओं मे जान डालना होगा. हमें अपनी योजनाओं के नए तरीके इजाद करने होंगे जिससे विकास का बराबर लाभ अल्पसंख्यक वर्ग और खासकर मुसलमान उठा सकें. संसाधनों पर पहला दावा उनका होना चाहिए. केंद्र के पास अनगिनत जिम्मेदारियां हैं, जिनकी जरूरतों को उपलब्ध संसाधनों से पूरा करना होगा.”
तब प्रधानमंत्री कार्यालय ने पीएम मनमोहन सिंह के बयान को तोड़मरोड़ कर पेश करने को लेकर बयान जारी किया था.
जाहिर है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के संसाधनों पर मुसलमानों के पहले अधिकार की बात कतई नहीं की, बल्कि उनमें अलगाव की भावना दूर कर उन्हें मुख्यधारा में जोड़ने की बात कही है. पीएम मोदी इसी बयान को नफरत फैलाने के लिए तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहे हैं.
अगर प्रधानमंत्री मोदी के अलावा कोई विपक्षी नेता इस तरह के नफरती बयान देता तो चुनाव आयोग उसके खिलाफ जनप्रतनिधि कानून,1951 के सेक्शन 123 & 125 और भारतीय दंड संहिता के अनुच्छेद 153A & 505(2) औऱ आचार संहिता उल्लंघन को लेकर सख्त कार्यवाही ज़रूर करता. लेकिन चुनाव आयोग मोदी सरकार के पिट्ठू की तरह काम कर रहा है. और लोकतंत्र खत्म हो चुका है.
तकलीफ की बात ये है कि न्यायपालिका से भी इस मामले में न्याय मिलने की आस खत्म हो चली है, लिहाजा कोई भी इस मामले को तूल-तवज्जो नहीं देना चाहता.
हैरानी की बात ये है कि खाड़ी देशों में जाकर वहां के शेखों का हाथ चूमने वाला शख्स देश में मुसलमानों के लिए नफरत का माहौल बनाने की कोशिश में है.
सबसे बड़ी बात ये है कि वो चाहते हैं कि गली-गली मोहल्ले-मोहल्ले और हर चाय की दुकान पर लोग हिंदू-मुसलमान करने लगे. इसके लिए हिंदी भाषी राज्यों में सड़कों पर मिनी ट्रक में डीजे लगा कर बेरोजगार युवाओं को मस्जिदों के सामने उतार दिया गया है.
आखिरी और असली कारण ये है कि चुनाव हारने पर उन्हें भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना होगा. इस आशंका से वो बुरी तरह घिर गए हैं, उसकी वजह से उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है.