मुस्लिम ही क्यों, पिछड़े, दलित, औऱ आदिवासियों की आबादी की बात करने से क्यों डर रहे हैं मोदी?

2024 के आम चुनाव में बीजेपी की हार तय जान कर प्रधानमंत्री मोदी का कार्यालय हरकत में आ गया है. तीन चरणों के चुनाव में बीजेपी वोटरों के पोलिंग बूथ न पहुंचने से परेशान मोदी के इशारे पर “हिंदू खतरे में है” का खौफ पैदा किया जा रहा है. 

मोदी की असली तकलीफ इस बात से है कि पुलिस-प्रशासन की रोकने की हर कोशिश के बावजूद पिछड़ा वर्ग,दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यकों का बड़ी तादाद में वोट क्यों दे रहे हैं. ऐसे में उन्हें लगता है कि “सोते हुए हिंदू” को उठा कर मतदान केंद्र पर पहुंचाने के लिए झूठ बोल कर ही सही डराना ज़रूरी है. 

 खबर की सच्चाई सामने लाने के बजाय राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडिया ने इसे हेडलाइन बना दिया. तो बीजेपी आईटी सेल से करोड़ों लोगों के व्हॉट्स अप पर नफरत पैदा करने के लिए ये मैसेज भेज दिया गया.  “बार-बार बोलो-झूठ बोलो, हर बार बोलो-झूठ बोलो” के सिद्धांतकार मोदी अगले चार चरणों के चुनाव इसी झूठ से जीतने के लिए बेताब हैं.

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने एक रिपोर्ट जारी कर बताया है कि पिछले 65 साल में हिंदुओं की आबादी 8.14 फीसदी कम हुई है और मुसलमानों की आबादी 14.09 फीसदी  बढ़ी है. ‘धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी का देशभर में विश्लेषण’ नाम से पब्लिश रिपोर्ट में बताया गया है कि 1950 से 2015 केे बीच जनसांख्यिकी बदलाव के तहत भारत में हिंदुओं की आबादी 7.82 फीसदी कम हुई है. जबकि, मुसलमानों की आबादी 43.15 फीसद बढ़ी है. 

जाहिर है कि देश के इतिहास में पहली बार पीएम मोदी ने कोविड संबंधी समस्याओं की आड़ में 2021 में जनगणना नहीं कराने का फैसला लिया था. ऐसे में पीएमओ से जुड़े इस वर्किंग ग्रुप के इन आंकड़ों का देश में नफरत फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. बीजेपी ने इन्हें लेकर कांग्रेस पर मुसलमानों को आरक्षण देने का दुष्प्रचार तेज़ कर दिया है.  

 आर्थिक सलाहकार परिषद की ये रिपोर्ट आजादी के बाद 1950 से ले कर 2015 तक के आंकड़ों को आधार बना कर तैयार की गई है. ऐसे में आकंड़ों के स्रोत को संदेह जताया जा रहा है. क्योंकि आखिरी बाद जनगणना 2011 में हुई थी.

भारत सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण, 2018 में देश की आबादी में तेजी से गिरावट की बात कही गई है, लेकिन येे कहीं नहीं कहा गया है कि आबादी कम होने में मुस्लिम महिलाओं  की प्रजनन दर कोई अड़चन आई है.

आर्थिक सलाहकार परिषद की इस रिपोर्ट को लेकर पॉपुलेशन फॉउंडेशन ऑफ इंडिया ने कहा है कि मीडिया आंंकड़ों को  गलत तरीके से पेश कर रहा है. जबकि इसे व्यापक नजरिए सेे देखा जाना ज़रूरी है.

हैरानी की बात ये है कि राष्ट्रीय मीडिया फैक्ट चेक की ज़रूरत तक नहीं समझ रहा है, ना ही, राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण,2019-21 के आंकड़ों और निष्कर्षों का जिक्र किया जा रहा है. 

गोदी मीडिया देश में नफरत की राजनीति का हथियार ही नहीं है, बल्कि राजनीतिक दल के मीडिया प्रभाग की तरह अधूरी और भ्रामक तरीके से खबर को पेश कर रहा है.

 2019-21 का राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 बताता  है कि हिंदूओं में प्रति महिला 1.94 बच्चे और मुस्लिम समाज में प्रति महिला 2.36 बच्चे की औसत प्रजनन दर है. और दोनों समाजों के बीच  प्रजनन क्षमता का अंतर केवल 0.42 बच्चे प्रति महिला है.  यानि सौ महिलाएं 236 बच्चों को जन्म देती है. 

 यह 1992 की स्थिति की तुलना में एक बड़ा अंतर माना जा रहा है.  तब मुस्लिम महिलाओं के हिंदू महिलाओं की तुलना में औसतन 1.1 अधिक बच्चे होने का अनुमान लगाया गया था. वहीं इस बात को कतई नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता कि 1998-99 में यही अनुपात 3.36 था. यानि सौ महिलाएं 336 बच्चों को जन्म देती थीं.

आंकड़े ये भी बताते हैं कि 2005-6 से 2019-21  के बीच सभी अल्पसंख्यक वर्गों के मुकाबले मुस्लिम महिलाओं का टोटल फर्टिलिटी रेट यानि टीएफआर 1 फीसदी कम हुआ है, जबकि हिंदू महिलाओं में ये सिर्फ 0.7 प्रतिशत घटा है.

जाहिर है कि दो दशक के वक्त में मुस्लिम समाज में महिलाओं की शिक्षा,स्वास्थ्य, सशक्तिकरण की स्थिति में सुधार आय़ा है.

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरेशी ने अपनी किताब ‘ द पॉपुलेशन मिथ: इस्लाम, फैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया’ पर बात करते हुए दावा किया कि ये धारणा सिर्फ नफरत पैदा करने के लिए आम जनमानस में बिठाई जा रही है. उनके मुताबिक  प्रोफेसर दिनेश सिंह और अजय कुमार के गणितीय मॉडलों ने स्पष्ट रूप से दिखाया है कि 1,000 सालों तक भी मुसलमानों के हिंदुओं से आगे निकलने की कोई संभावना नहीं है.

 पीएम की आर्थिक सलाहकार समिति की रिपोर्ट से जुड़ी खबर को पढ़ने के लिए बीजेपी लोगों के बीच चुनावी चश्मा भी बांट रही है. आबादी बढ़ने या घटने का सीधा रिश्ता महिलाओं की शिक्षा, सशक्तिकरण, शिशु मृत्यु दर और दूसरे कई सामाजिक-आर्थिक कारकों से होता है.

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति अगर नफरत की राजनीति का टूलकिट नहीं बना रही थी, तो उसे इस पक्ष को भी अपने विश्लेषण का हिस्सा बनाना चाहिए था. क्योंकि उत्तर भारत और दक्षिण भारत के आबादी के आंकड़ों को बगैर हिंदू-मुस्लिम चश्में के देखा जाए तो इन कारकों की वजह से फर्क साफ नज़र आता है.

 जिस देश का प्रधानमंत्री अपने पद पर बैठ कर अपने ही देश के अल्पसंख्यकों को अपराधी मानता है और उन्हें कपड़े से पहचानता है, वहां कोई तर्क या वैज्ञानिक सोच जिंदा नहीं रह सकती.

 पीएम मोदी बगैर लाज-शरम के लगातार हर चुनावी रैली में झूठ बोल रहे हैं कि कांग्रेस मुसलमानों को आरक्षण दे देगी, आपकी भैंस, आपका कमरा, मंगलसूत्र,मछली  सबकुछ आधा-आधा उनको दे देगी जिनके ज्यादा बच्चे होते हैंं.

मीडिया के फैक्ट चेक का इंतजार किए बगैर देश के जागरूक मतदाताओं ने पीएम मोदी के झूठ को पकड़ने के लिए लाखों की तादाद में कांग्रेस के न्याय पत्र को डॉउनलोड किया है. उन्हें कही भी मुसलमान शब्द देखने को नहीं मिला है.

मजे की बात ये है कि हाल ही में बांसवाड़ा में प्रधानमंत्री मुसलमानों के खिलाफ आग उगल रहे थे, तो कुछ घंटे बाद ही मुस्लिम बहुल अमरोहा में मोहम्मद शमी के बहाने वोट के लिए अल्पसंख्यकों की खुशामद करते नज़र आए. 

पीएम मोदी,बीजेपी और आरएसएस को उसी से ठंडा,उसी से गरम करने की सियासत में महारत हासिल है.

पीएम मोदी ने हाल ही में कहा है कि दुनिया भर में मुसलमान बदल रहे हैं, यहां भी सोच में बदलाव की जरूरत है. 

 जब राजस्थान, झारखंड जैसे राज्यों में मुस्लिमों की मॉब लिंचिंग होती है तो मोदी चुप्पी साध लेते हैं. चारों तरफ से दबाव पड़ने के बाद देश के वो ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जो सख्त कार्रवाई के बजाय कहते हैं कि उसे मत मारों, मुझे  मारो.

संघ प्रमुख  मोहन भागवत भी कहते हैं मुस्लिम हमारे हैं , मुसलमानों को डरने की ज़रूरत नहीं, बदलने की जरूरत है. दलित-आदिवासी और मुसलमानों को लाठियों-तलवारों से सिखाया जाता है तो वो भी आंखें बंद कर लेते हैं.

आरएसएस-बीजेपी और मोदी को हिंदू पाखंडी और अंधविश्वासी चाहिए और अल्पसंख्यक प्रगतिशील औऱ तरक्कीपसंद

पाखंडी संघ औऱ बीजेपी पिछले सौ सालों से  हिंदू जनमानस  में मुसलमानों के खिलाफ जहर बो चुकी हैै, अगले बरस इसी घृणा की राजनीति का शताब्दी वर्ष आरएसएस स्थापना के सौ वर्ष के रूप मनाने जा रही है. इसी दौरान आरक्षणमुक्त भारत बनाने के लिए नया संविधान लाने की तैयारी है.

बीजेपी को नफरत और हिंसा की राजनीति को चमकाने के लिए अशिक्षित,अर्धशिक्षित,और धर्मभीरू युवाओं के गरम खून की जरूरत है. मनुवादी व्यवस्था के पोषक संघ-बीजेपी नेताओं के बच्चे विदेशों में शिक्षा लेकर विलासिता का जीवन जी रहे हैं. 

भोले और सरल पिछड़ा वर्ग, दलित,और आदिवासी युवा वर्ग को  उनका हक देने के बजाय हिंदुत्व का झंडाबरदार बनाने की साजिश रची जा रही है- उसे हथियार बना कर पूरे हिंदू समाज का वोट जुटाया जाता है. फिर सवर्णवादी आरएसएस सत्ता पर काबिज हो जाता है. जाहिर है ये धर्म नहीं धंधा है.

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश के शब्दों में ये राम के व्यौपारी हैं.

राहुल गांधी ने हिस्सेदारी न्याय की बात कह कर हिंदू-मुसलमान की सियासत की हवा निकाल दी. नतीजन राम मंदिर को भी बीजेपी भुनाने में नाकाम नज़र आ रही है. लेकिन जातिजनगणना का ,सवाल जब भी कांग्रेस उठाती है तो बीजेपी खेमें में चुप्पी छा जाती है. राहुल गांधी इसीलिए दोहराते हैं -गिनती करो.

पीएम मोदी-बीजेपी-आरएसएस का इको सिस्टम मुसलमानों की आबादी की बात तो करता है, लेकिन पिछड़ों,दलितों और आदिवासियों की आर्थिक-सामाजिक जनगणना के नाम भर से डर जाता है

इसीलिए समाज के सबसे बड़े वंचित-दमित इस वर्ग को गुमराह किया जा रहा है. क्योंकि अगर ये वर्ग अपने अधिकार के लिए एक बार उठ कर खड़ा हो गया तो समझो संघ और इसके नफरती एजेंडे से जुड़ा धंधा सौ बरस तक के लिए देश से खत्म हो जाएगा. इसीलिए मुसलमान को हउए की तरह दिखाया जा रहा हैै.

खतरा मुसलमान नहीं, खतरा वो हैं, जो पिछड़े,दलित,आदिवासी, गरीब वर्ग का हक छीन कर अमीरों को दे रहे हैं

हकमारी करने वाला ये वर्ग ही मुसलमान का डर दिखा रहा है…. 

इसीलिए राहुल गांधी कहते हैं- आपने 21 अरबपति बनाए, हम करोड़ों लखपति बनाएंगे

राहुल गांधी कहते हैं- जितना पैसा आपने 21 अरबपतियों को दिया, उतना पैसा हम पिछड़े,दलित,आदिवासी,गरीब वर्ग के परिवारों को देंगे.

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